सत्ता का सेमीफाइनलः पंचायत चुनाव में बीजेपी को उसी के दाव से चित करने की तैयारी में विपक्ष!

2022 के मद्देनजर अति पिछड़ो व अति दलितों पर होगा विशेष फोकस
गांवों में साफ दिखने लगी है चुनावी सरगर्मी, प्रत्याशी घर-घर दे रहे है दस्तक

<p>त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव</p>

आजमगढ़. यूपी की सत्ता के सेमीफाइनल के रूप में देखे जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज हो गयी है। एक तरफ प्रशासन बूथ से लेकर मतदाता सूची तक दुरूस्त करने में जुटा है तो दूसरी तरफ राजनीतिक दल पंचायत चुनाव जीत 2022 के लिए मजबूत जमीन तैयार करने की तैयारी कर रहे हैं। अगर बीजेपी पहली बार पंचायत चुनाव में जोर आमजाने का प्रयास कर रही है तो विपक्ष भाजपा को उसी के दाव से चित करने की रणनीति बना रहा है। संभावित दावेदार बडे़ राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल करने की कोशिश के साथ ही घर-घर दस्तक दे रहे है।

अभी कोई त्योहार भले ही नहीं है लेकिन गांव का माहौल बदला-बदला से दिख रहा है। वर्तमान प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य से लेकर जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत प्रमुख तक अंतिम समय में खुद को सबसे बेहतर साबित करने के साथ ही उपलब्धि गिनाने में जुटे हैं तो नए दावेदार कमियां उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। पंचायत प्रतिनिधियों का भंडाफोड़ करने के लिए जनसूचना अधिकार के तहत उनके कामों का हिसाब किताब एकत्र कर घर-घर तक कमियों को पहुंचाने की कोशिश हो रही है। इससे गांव में विवाद भी तेजी से बढ़ने लगे है। गोलबंदी भी चरम पर पहुंच गयी है।

वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक दल जातीय गुणा-गणित बैठाने में व्यस्त है। बीजेपी 2022 के विधानसभा चुनाव को दखते हुए पंचायत में सभी जाति व धर्म के लोगों को प्रतिनीधित्व का मौका देकर सत्ता विरोधी लहर और अति पिछड़ों तथा अति दलितों की नाराजगी को दूर करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसके लिए ग्राम पंचायत के हिसाब से जातीय समीकरण बैठाया जा रहा है कि कहां किसे टिकट देकर जीत हासिल की जा सकती है।

वहीं दूसरी तरफ सपा-बसपा और कांग्रेस बीजेपी को उसी के दाव से चित के करने की तैयारी में हैं। बीजेपी वर्ष 2014, 2017 व 2019 के चुनाव में अति पिछड़ों और अति दलितों को अपने पक्ष में लामबंद कर विपक्ष को बड़ी मात देने में सफल रही थी। अब विपक्ष का फोकस भी इन्हीं वर्गों पर है। विपक्षी दल इन वर्गो के अधिक से अधिक लोगों को पंचायत चुनाव में मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे है। साथ ही गांव में आरक्षण, बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है। विपक्ष को मानना है कि अगर एक बार अति पिछड़े और अति दलितों को वह बीजेपी से दूर करने में सफल रही तो न केवल पंचायत चुनाव में भाजपा का बिस्तर गोल कर देगी बल्कि 2022 में बीजेपी का खेल खत्म हो जाएगा।


इससे पंचायत चुनाव काफी दिलचस्प हो जाएगा। राजनीति के जानकार रामजीत सिंह, त्रिपुरारी यादव कहते हैं कि यूपी की राजनीति हमेंशा से अति पिछड़ों और अति दलितों के ईद-गिर्द घूमती रही है। सभी दलों को सत्ता हासिल करने के लिए अपने अपने वोट बैंक के साथ ही इनकी जरूरत पड़ती है। पिछले तीन चुनाव से अति पिछड़े और अति दलित भाजपा के पक्ष में लामबंद है जिसका फायदा उसे मिला है कि वह 2019 में सपा बसपा गठबंधन को भी मात देने में सफल रही। विपक्ष जानता है बिना इनके साथ के 2022 जीतना उनके लिए मुश्किल है। यही वजह है कि सभी दल पंचायत चुनाव में एक बड़ा प्रयोग करने की कोशिश कर रहे है।

BY Ran vijay singh

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