तालिबान के प्रवक्ता का दावा, सालों तक काबुल में अमरीका और अफगान सेना की रेकी की

एक साक्षात्कार में जबीउल्लाह मुजाहिद (Zabihullah Mujahid) ने गर्व से स्वीकार करा है कि यह उसकी गुप्त रेकी थी, जिसने अफगानिस्तान (Afghanistan) की सेना के खिलाफ तालिबान को बढ़त दी।

<p>Zabihullah Mujahid</p>

तेहरान। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद (Zabihullah Mujahid) ने एक साक्षात्कार में दावा किया उनकी रेकी की वजह से ही आज तालिबान सेना (Taliban Army) अफगानिस्तान पर कब्जा लिया है। उनका कहना है कि पहले उनके नाम को काल्पनिक समझा जाता था। इसका उन्हें भूरपूर फायदा मिला।

जब भी उन्होंने व्यक्तिगत रूप से प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया, तो कई मीडिया हस्तियों ने अविश्वास व्यक्त किया क्योंकि वे सोचते थे कि जबीउल्लाह एक बना हुआ नाम है और वास्तविक व्यक्ति नहीं है।

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इस धारणा ने जबीउल्लाह को सालों तक काबुल में अमरीका और अफगान सेना की नाक के नीचे रहने में सहायता की। मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में तालिबान नेता ने गर्व से स्वीकार करा है कि यह उनकी गुप्त रेकी है, जिसने अफगानिस्तान की सेना के खिलाफ तालिबान को बढ़त दी।

लंबे समय से काबुल में रहा

तालिबान के प्रवक्ता ने कहा “मैं लंबे समय तक काबुल में रहा, सबकी नाक के नीचे। मैं देश भर में घूमा करता था। मैं उन फ्रंटलाइनों तक भी प्रत्यक्ष रूप से पहुंचने में सफल रहा, जहां तालिबान ने अपने कार्यों को अंजाम दिया और जानकारी प्राप्त की। यह हमारे विरोधियों के लिए काफी हैरान करने था।

मुजाहिद ने बताया कि वह अमरीका और अफगान राष्ट्रीय बलों से इतनी बार भागे कि वे मानने लगे कि जबीउल्लाह मुजाहिद सिर्फ एक भूत है, एक बना हुआ चरित्र है, न कि एक वास्तविक व्यक्ति।

कभी अफगानिस्तान नहीं छोड़ा

43 वर्षीय तालिबान नेता ने कहा कि उन्होंने कभी अफगानिस्तान नहीं छोड़ा। उन्होंने मदरसे में भाग लेने के लिए कई जगहों की यात्रा की, यहां तक कि पाकिस्तान भी गया लेकिन अमरीका और अफगान बलों के लगातार शिकार के बावजूद, देश को हमेशा के लिए छोड़ने के बारे में कभी नहीं सोचा।

प्रवक्ता ने कहा कि अमरीकी सेना स्थानीय लोगों को उसके ठिकाने के बारे में जानने के लिए अच्छी रकम देती थी लेकिन वह किसी तरह उनके रडार से बचने में सफल रहा।

धार्मिक शिक्षा के रास्ते पर चला

अपने बचपन को याद करते हुए, प्रवक्ता ने बताया कि उन्होंने रुआत में एक सामान्य स्कूल में दाखिला लिया था, लेकिन जल्द ही उन्हें एक मदरसे में स्थानांतरित कर दिया गया और वे धार्मिक शिक्षा के रास्ते पर थे। वह खैबर-पख्तूनख्वा के नौशेरा में हक्कानी मदरसा में भी रहे। वह 16 साल की उम्र में तालिबान में शामिल हो गए और उसने संस्थापक मुल्ला उमर को कभी नहीं देखा।

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