कानून के अनुसार अपचारी बालकों के मामले में अभिरक्षा से फरार (Child Accused escaped) होने के बाद भी उन पर दूसरी एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। शायद यह कानून गांधीनगर पुलिस के अधिकारियों को मालूम नहीं था और उन्होंने एफआईआर दर्ज कर दी।
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गौरतलब है कि सूरजपुर जिले के झिलमिली थाना क्षेत्र अंतर्गत एक अपचारी बालक को हत्या के आरोप में 20 मई को बाल संप्रेक्षण गृह अंबिकापुर भेजा गया था। 2 जून की दोपहर करीब 3 बजे अपचारी बालक हाउस कीपर को धक्का देकर फरार हो गया था।
इस दौरान संप्रेक्षण गृह की ओर से गांधीनगर थाने में सूचना दी गई थी। इस मामले में पुलिस ने अपचारी बालक की खोजबीन किए बिना उसपर धारा 224 के तहत अपराध दर्ज कर लिया था। इस मामले को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान में लिया है।
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एसपी को भेजे नोटिस में ये लिखा-
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उक्त मामले को सीआरपीसी एक्ट की धारा 13 (1)(जे) के तहत संज्ञान में लिया है। सरगुजा एसपी को भेजे गए नोटिस में आयोग ने लिखा है कि सोशल मीडिया पर प्राप्त शिकायत के अनुसार-
‘अंबिकापुर के गांधीनगर थाने में बाल संप्रेक्षण गृह से भागे हुए बाल अपचारी पर धारा 224 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
जबकि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 26 (4) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि संप्रेक्षण गृह से भागे बाल अपचारी को पकडऩे के बाद किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।’
नोटिस के माध्यम से यह भी पूछा गया है कि आपके द्वारा किस आधार पर संप्रेक्षण गृह (Bal Samprekshan Grih) से भागे बाल अपचारी पर आईपीसी 1860 की धारा 224 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। नोटिस का जवाब 3 दिन के भीतर मांगा गया है।