जिला अस्पताल में महिला को भर्ती तो कर लिया गया, लेकिन उसकी ठीक से न तो देखरेख की गई और न ही उसे खून ही मिल सका, जिसकी वजह से महिला के शरीर मे सूजन आ गई और अंत मे जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला को रेफर करते हुए जबरन बीती रात अस्पताल से डांट कर भगा दिया।
इलाज के लिए पिता ने दूसरे को सौंपा नवजात बेटी सब्जी का ठेला लगाने वाले शब्लू की हालत पहले से ही लॉक डाउन के कारण खराब थी। जो कुछ उसके पास पैसा था, वह डिलेवरी के समय ही खर्च हो गया था। पत्नी की जान बचाने के लिए शब्लू को कोई रास्ता नजर नही आया तो लोग बताते हैं कि एक दंपति ने उसकी बेटी को गोद लेने की इच्छा जाहिर की और बदले में 6 हजार रुपये की मदद की। हालांकि शब्लू बेटी को दूसरे दंपति को सौंपे जाने को तो स्वीकार कर रहा है, लेकिन पैसा मिलने की बात से इनकार कर रहा है।
अस्पताल से भगाये जाने के बाद प्रसूता की और बिगड़ी हालत बेरहम जिला अस्पताल प्रशासन को इस गरीब पर कोई दया नही आई और अस्पताल से जब भगा दिया तो शब्लू अपनी पत्नी को लेकर घर आया, जहां उसकी हालत और खराब होती गई। पहले से ही दो मासूम बेटियों और पत्नी का बोझ उठा रहा शब्लू बदहवास हालत में कभी अपनी पत्नी तो कभी दोनो मासूम बेटियों को देखकर सिर्फ रोये जा रहा है। उसे अपनी नवजात बेटी को दूसरे दंपति को सौंपे जाने का भी बड़ा गम है, जिसे उसके आंसू खुद बखुद बयान कर रहे हैं। दिल को दहला देने वाला यह मंजर देखकर तो ऐसा लगता है कि करोड़ो रूपये का सालाना बजट गरीबों के स्वास्थ के नाम पर सरकार भले ही खर्च करने का दावा कर रही हो, लेकिन हकीकत में यह रकम स्वास्थ विभाग की जेब मे ही जा रहा है और गरीब के हिस्से ऐसे ही ठोकरें खाना नसीब बन चुका है।