जानकी के हुए भगवान जगन्नाथ, चर्तुभुज रूप में लिए फेरे, जयकारो से गूंजा मंदिर परिसर

देवशयन एकादशी को भगवान के विवाह की परम्परा निभाई जाती है। देवशयन एकादशी भगवान विष्णु के लिए विशेष होती है। इसलिए साल में यही एक दिन होता है जब भगवान जगन्नाथ श्रद्धालुओं को चर्तुभुज रूप में दर्शन देते हैं और इसी रूप में जानकी मैया के साथ फेरे की रस्म पूरी करते हैं।

<p>जानकी के हुए भगवान जगन्नाथ, चर्तुभुज रूप में लिए फेरे, जयकारो से गूंजा मंदिर परिसर</p>
अलवर. देवशयन एकादशी पर मंगलवार को शुभ मुहूर्त में भगवान जगन्नाथ व जानकी विवाह की परम्परा पुराना कटला स्थित जगन्नाथ मंदिर में संपन्न हुई। इससे पूर्व माता जानकी को घंटे घडियाल और शंखनाद के स्वरों के साथ गर्भगृह से बाहर लाया गया। इस दौरान महंत परिवार की महिलाए फूलों से बनी चादर के साथ माता जानकी को पुष्पक विमान तक लेकर गईं। जानकी मैया के विहार करने पर मंडप तक उन्हें फू लोंं की चादर के साथ ही ले जाया गया। इस दौरान जय जानकी, जय जगन्नाथ के जयकारे मंदिर परिसर में गंूजते रहे। समय के साथ विवाह आयोजन में बदलाव करते हुए यह परंपरा शुरु की गई है। जिसे श्रद्धालुओं ने बहुत पसंद किया। देवशयन एकादशी को व्रत होने से महंत परिवार की महिलाओं ने व्रत रखा। भगवान जगन्नाथ को कलाकंद, बर्फी, अखरोट की बर्फी, मेवा, दूध रबड़ी का भोग लगाया गया।भगवान जगन्नाथ व जानकी के विवाह के मौके पर मंदिर में हवन हुआ। जिसमें यजमान ने सपत्नीक आहूति दी।साल में एक बार होते हैं चर्तुभुज रूप के दर्शन
मंदिर के महंत पंडित राजेंद्र शर्मा ने बताया कि देवशयन एकादशी को भगवान के विवाह की परम्परा निभाई जाती है। देवशयन एकादशी भगवान विष्णु के लिए विशेष होती है। इसलिए साल में यही एक दिन होता है जब भगवान जगन्नाथ श्रद्धालुओं को चर्तुभुज रूप में दर्शन देते हैं और इसी रूप में जानकी मैया के साथ फेरे की रस्म पूरी करते हैं। इस दिव्य रूप के दर्शन करने के लिए दिन भर श्रद्धालुओं का मंदिर में तांता लगा रहा। भगवान जगन्नाथ ने देवशयन एकादशी पर श्रद्धालुओं को चर्तुभुज रूप में दर्शन दिए और जानकी के साथ विवाह की रस्म भी इसी स्वरूप में सम्पन्न हुई। श्रद्धालुओं ने माता जानकी व भगवान जगन्नाथ के चरणों के दर्शन कर जीवन में सुख समृद्धि की कामना की।
श्रदलुओं ने किए ऑनलाइन दर्शन

वर्षों से भगवान जगन्नाथ व जानकी मैया के विवाह रस्म के साक्षी बनने वाले श्रद्धालु इस बार वरमाला महोत्सव में शामिल नहीं हो पाए। इसके चलते भगवान के वरमाला महोत्सव का ऑनलाइन प्रसारण अलग अलग चैनलों पर देखा गया।
रूपबास के ग्रामीणों ने किया माता जानकी का कन्यादान

अलवर में पिछले डेढ सौ सालों से अधिक समय से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जा रही है। यह रथयात्रा पुराना कटला जगन्नाथ मंदिर से निकलकर शहर से पांच किलोमीटर दूर रूपबास में पहुंचती है। यह जानकी मैया का पीहर कहा जाता है। हर साल रूपबास के लोग वरमाला महोत्सव में पहुंचकर कन्यादान करते हैं। इस बार भी सुबह से ही मंदिर में रूपबास के ग्रामीण कन्यादान के लिए आते रहे। रात को विवाह के दौरान भी रूपबास के लोगों ने कन्यादान कर विवाह की परंपरा को निभाया।
पहनाई कंपनी बाग के फूलों की माला

अलवर में जब से यह रथयात्रा निकल रही है तब से लेकर अब तक कंपनी बाग के फूलों से बनी माला से ही वरमाला महोत्सव आयोजित किया जाता है। इस बार भी इस परंपरा को निभाया गया। वरमाला महोत्सव के लिए कमल, गुलाब, नवरंग, मोगरा, रजनी गंधा के फूलों से वरमाला तैयार करवाई गई। इसके अलावा सात अन्य मालाएं भी वरमाला महोत्सव के दौरान आई। साथ ही छत्तीसगढ़ से एक, इंदौर से एक, वृदंावन से एक, जयपुर से एक माला आई। इसमें एक चांदी की माला भी शामिल थी।
आज होंगे जगन्नाथ व जानकी के दर्शन

जगन्नाथ महोत्सव के दौरान वरमाला महोत्सव मंगलवार को संपन्न हुआ। बुधवार को मंदिर में श्रद्धालु विवाह के बाद भगवान जगन्नाथ व जानकी के दर्शन कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन करने से श्रद्धालुओं के पारिवारिक जीवन में खुशहाली आती है।
कल होगी रथयात्रा की वापसी

अलवर में आयोजित जगन्नाथ महोत्सव का समापन 22 जुलाई को होगा। इस अवसर पर शाम को भगवान जगन्नाथ व जानकी मैया मंदिर परिसर में ही पुष्पक विमान में विहार कर वापस गर्भगृह में विराजमान हो जाएंगे।
श्रद्धालुओं ने किए बूढ़े जगन्नाथजी के दर्शन

भगवान जगन्नाथ को गर्भगृह से निकालने के बाद उनके स्थान पर भगवान बूढ़े जगन्नाथ के दर्शन होते हैं। इस बार भी श्रद्धालु जगन्नाथ व जानकी मैया के साथ बूढ़े जगन्नाथजी के भी दर्शन कर रहें है। यह दर्शन साल में एक ही बार होते हैं।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.