श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि गोनंदी का विवाह श्रेष्ठतम पुण्य कार्य माना गया है। जिस प्रकार मानव जाति में वर और कन्या के गुण के गुण मिलान किए जाते हैं, उसी प्रकार गोनंदी विवाह भी बछिया और नंंदी के चयन में गुण मिलान का वर्णन भी मत्स्य पुराण मेंं मिलता है। पिछले दिनों अलवर जिले के रामगढ़ कस्बे में गोनंदी विवाह हुए जिसमें 34 जोड़ों ने गाय को अपनी बेटी मानकर उनका विवाह किया। इसके लिए उनके घरों में लग्न पत्रिका लिखी गई। यहां समारोह स्थल पर गोनंदी को वाहन में बैठाकर लाया गया। यहां श्रद्धालुओं ने गोनंदी को कंधे पर बैठा लिया और फिर तोरण मारने की रस्म हुई। हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में ग्रामीण पूरे जिले से इस विवाह को देखने पहुंचे। कई दशकों बाद अलवर में इस तरह गोनंदी का विवाह हुआ। विवाह से पूर्व पंडित विष्णु दत्त शर्मा यहां श्रीमद् भागवत कथा कर रहे थे। इनका कहना है कि गाय और गोवंश दोनों की महत्ता का संयुक्त रूप से प्रकटीकरण गोनंदी विवाह में व्यक्त होता है। गोनंदी विवाह हमारे ऋषियों की ओर से वर्णित मोक्ष दायक सत्कर्म है। इसके माध्यम से गाय की महत्ता उन लोगों को बताना है जो भूल गए हैं। गाय यज्ञ विज्ञान की अधिष्ठात्री है।
अब और जगह होंगे गौनंदी विवाह गौसंवर्धन व संरक्षण समिति के पदाधिकारी सौरभ कालरा और जितेन्द्र सैनी का कहना है कि अलवर जिले की सभी गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जाएंगे। इसके तहत गौनंदी विवाह होंगे। गाय के गोबर से बनी गणेश की मूर्तिंया घर की चोखट पर लगाने से सभी नकारात्मक शक्तियां भागती हैं जिससे सकारात्मक ऊर्जा आती है। ऐसे गणेश जी की मूर्तियां पूरे प्रदेश में लगाने की शुरुआत अलवर जिले से होगी , इसके लिए गौशालाओं में ऐसी मूर्तियां बनेंगी जिससे गौशालाओं की आय बढ़ेगी और गाय की महत्त का पता लगेगा। यदि गाय को हमने उपयोगी बना दिया तो वे सडक़ पर नहीं घूमेंगी।