कभी इनके नाम पर बजती थी तालियां, आज गुमनाम जिंदगी जी रहे कलाकार रिक्शा चलाने और कबाड़ी बनने को मजबूर हैं यह कलाकार

कभी इनके नाम पर बजती थी तालियां, आज गुमनाम जिंदगी जी रहे कलाकाररिक्शा चलाने और कबाड़ी बनने को मजबूर हैं यह कलाकार

<p>कभी इनके नाम पर बजती थी तालियां, आज गुमनाम जिंदगी जी रहे कलाकार रिक्शा चलाने और कबाड़ी बनने को मजबूर हैं यह कलाकार</p>
अलवर. शहर में निकलने वाली किसी समाज की शोभायात्रा हो या फिर जन्माष्टमी और महाशिवरात्रि जैसे बड़े आयोजन, किसी स्कूल का बड़ा उत्सव या कोई बड़ा सांस्कृतिक समारोह इन कलाकारों की कला को देखकर कद्र दानों का जमघट लग जाता था। हर प्रस्तुति पर तालियां बजती थी। अपनी पीड़ा को भूल कर दूसरों को खुशी देने वाले यह कलाकार इन दिनों गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। यह कलाकार है झांकियों में प्रस्तुति देने वाले लोक कलाकार जिनका गुजर बसर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति देकर होने वाली आय से ही चलता था।
पिछले 5 माह से न तो कोई शोभायात्रा निकली है और न ही कोई धार्मिक आयोजन हुआ है। ऐसे में इन कलाकारों की रोजी-रोटी छिन गई है आज यह कलाकार भूख के चलते रिक्शा चलाने और कबाड़ी का कार्य करने को मजबूर हैं। इन्हें इंतजार है तो इस बात का की लॉकडाउन खत्म हो और फिर से इनका काम शुरू हो।अलवर जिले में विभिन्न समूहों और मंडलों में प्रस्तुति देने वाले करीब 700 कलाकार हैं जो इस समय बेरोजगार हैं। इनमें से कुछ तो रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर चुके हैं और जो बचे हैं वह जिंदगी की तलाश में जुटे हुए हैं।
पेट भरना हुआ मुश्किल
&मैंने 25 साल पहले लोक कला को अपनाया और जयपुर घराने के रूप सिंह राठौड़, अंतरराष्ट्रीय कलाकार ओम राणा और अलवर के गिर्राज बांबी ग्रुप में भी काम किया। मैंने पहली बार अलवर में फायर डांस की प्रस्तुति दी। इसके बाद और भी लोग इससे जुड़ गए। 25 साल में यह पहला मौका है जब मैं काम के लिए भटक रहा हूं। 5 महीने पहले तक मेरे पास 15 ग्रुप थे जिनमें डेढ़ सौ से 200 कलाकार थे। काम बंद होने से पेट भरना मुश्किल हो गया है। आज मैं ठेली लगाकर अपना पेट भर रहा हूं। हमें सरकार मदद करने करें तो बहुत से कलाकारों की कला बच जाएगी।
बबलू राजा, कलाकार
&जन्माष्टमी हो या महाशिवरात्रि कोई त्योहार खाली नहीं जाता था। समाज के सामाजिक आयोजनों में भी बढ़ चढ़कर प्रस्तुति दी जाती थी। लेकिन न जाने किसकी नजर लगी कि सब कुछ पीछे छूट गया। नृत्य कला मेरी पहचान थी। इससे मेरी रोजी-रोटी चलती थी। लॉकडाउन ने सब कुछ छीन लिया। मैंने अपना कबाड़ी का काम छोड़ दिया था, लेकिन आज मैं फिर से वही काम करने लगा हूं।क्योंकि परिवार को चलाने की जिम्मेदारी मुझ पर है। पिता का साया भी नहीं है। मैंने राधा-कृष्ण शिव-पार्वती कृष्ण सुदामा की नृत्य नाटिका दिखाकर लोगों का खूब मनोरंजन किया। लेकिन आज पेट भरना मुश्किल है। कबाड़ी का काम भी नहीं चल पा रहा। सरकार ने हमारे जैसे कलाकारों के लिए आज तक कुछ नहीं किया।
घनश्याम वर्मा, कलाकार
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.