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गांव की पगडंडियों से चलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहुंची एथलेटिक्स सुधा सिंह की कुछ ऐसी है कहानी

locationअमेठीPublished: Aug 28, 2018 05:51:29 pm

Submitted by:

Ruchi Sharma

गांव की पगडंडियों से चलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहुंची एथलेटिक्स सुधा सिंह की कुछ ऐसी है कहानी

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गांव की पगडंडियों से चलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहुंची एथलेटिक्स सुधा सिंह की कुछ ऐसी है कहानी

अमेठी. सोमवार को इंडोनेशिया में चल रहे एशियन गेम्स में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव कि एथलेटिक्स सुधा सिंह ने देश का सिर फिर गौरान्वित किया। सुधा ने 3 हजार मीटर स्टीपल्चेज में सिल्वर ख़िताब जीता है। कल हुए खेल से पूर्व यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने उसे शुभकामना संदेश भी भेजा था। इससे पूर्व 2016 में रियो ओलंपिक में सुधा ने 3 हजार मीटर की दौड़ में पार्टिसिपेट करके देश का नाम रोशन किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर सुधा को पुरस्कृत भी किया था।
सुधा के एथलेटिक्स गेम्स की शुरुआत लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज से हुई थी


अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर देश का नाम रोशन करने वाली सुधा रायबरेली ज़िले से 114 किमी. पूर्व दिशा में भीमी गांव में एक मध्यम वर्ग के परिवार की बेटी है। सुधा ने एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता, फिर शिकागो में नेशनल एथलेटिक चैंपियनशिप में अपना दबदबा कायम किया। सुधा को एशियन गेम्स में पदक मिलने के बाद रियो ओलंपिक में खेलने का भी मौका मिला, लेकिन वहां जाकर उन्हें स्वाइन फ्लू हो गया, इस कारण उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। बचपन से ही खेल की शौकीन रही सुधा ने अपनी शिक्षा रायबरेली जिले के दयानंद गर्ल्स इंटर कॉलेज से पूरी की। एथलेटिक्स के क्षेत्र में सुधा की शुरुआत साल 2003 में लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज से हुई।

ट्यूशन पढ़ने न जाना पड़े इसलिए 10 मिनट पहले निकल जाती थी दौड़ने


ओलंपियन सुधा सिंह ने बताया कि बचपन से ही उनका मन पढ़ाई से ज्यादा स्पोर्ट्स में लगता था। गांव में बच्चों से रेस लगाना, पत्थर फेंकना, पेड़ों से कूदना उन्हें पसंद था। कभी-कभी तो घर में सब परेशान हो जाते थे, फिर भी वो उनके स्पोर्ट्स को बढ़ावा देते थे। लेकिन एक बेसिक पढ़ाई तो सभी को करनी होती है, इसलिए उन्हें फोर्स किया जाता था। वो कहती हैं कि ट्यूशन पढ़ने न जाना पड़े इसलिए वो उसके 10 मिनट पहले ही दौड़ने निकल जाती थीं। पढ़ाई से बचने के लिए भागने की आदत ने कब मुझे एथलीट बना दिया मालूम ही नहीं चला। मैं तो सबको पीछे करने का लक्ष्य लेकर दौड़ती हूं, मेडल मिलेगा या नहीं इस बात पवर ध्यान नहीं देती।
नहीं दिया 3 साल तक मेडल तो नौकरी से बाहर

वो कहती हैं कि जब 2009 में चाइना में मैंने एशिया कप के लिए 3000 मीटर स्टेप चेस रेस दौड़ी, तो उसमें मेरी सेकेंड पोजिशन थी। तभी रेलवे में नौकरी का ऑफर मुंबई से आया, तो मैंने असिस्टेंट टीसी की पोस्ट पर ज्वाइन किया। फिर 2010 में चाइना में एशिया कप में पहली रैंक आई, तो रेलवे ने प्रमोट करके असिस्टेंट स्पोर्ट्स ऑफिसर बना दिया। इसके बाद लगा कि अब नौकरी के साथ अपनी रेस जारी रखूंगी। लेकिन तभी बताया गया कि रेलवे में एक बॉन्ड होता है, जिसमें 3 साल तक रेलवे को मेडल दिलाने के लिए खेलना होता है। नहीं दिला पाने पर नौकरी से बाहर कर दिया जाता है।
देश के लिए दौड़ना अच्छा लगता है

जापान में एशिया कप होने वाला था, मैंने तैयारी शुरू की और सेकेंड पोजिशन मिली। मुझे अपने देश के लिए दौड़ना अच्छा लगता है। खास तौर पर जब देश के बाहर बुलाया जाता है। ‘सुधा सिंह फ्रॉम इंडिया’, तो लगता है कि मैं वाकई स्पेशल हूं। बस यही सुनने के लिए बार-बार खेलने का मन करता है। मेरा परिवार बहुत बड़ा है। हम 4 भाई-बहन हैं। मैं तीसरे नंबर पर हूं। कई बार घर पर सब आते हैं कि शादी कब कराएंगे लड़की की। तो मां बोलती हैं उसके पास जब समय होगा तब करेगी। घर में सभी मुझे टीवी पर देखकर खुश होते हैं, वो जब भी देखते हैं तो पड़ोस में सभी को बुलाकर बताते हैं, कि आज सुधा टीवी पर आई थी। मेरी ख्वाहिश यूपी के बच्चों को ट्रेनिंग देने की है, इसके लिए मैंने कोशिश भी की है। लेकिन इसके लिए कि‍सी और विभाग में नौकरी करने के लिए मुझे यूपी आना पड़ेगा। कई बार वन विभाग और अन्य जगहों से कॉल आई, लेकिन मैंने मना कर दिया। मुझे सिर्फ खेल विभाग में ही आना है। जिससे बच्चों को सही गाइड कर सकूं। अब सीएम योगी जी से उम्मीद है।
जानें देश-विदेश में कब-कब जीती प्रतियोगिताएं

वर्ष 2003 — शिकागों में जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक।

वर्ष 2004 — कल्लम मे जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक।

वर्ष 2005 — चीन में जूनियर एशियन क्रॉस कंट्री प्रतियोगिता में चयन।
वर्ष 2007– नेशनल गेम्स में पहला स्थान ।

वर्ष 2008 — सिनियर ओपन नेशनल में पहला स्थान।

वर्ष 2009 — एशियन ट्रैक एंड फील्ड में दूसरा स्थान।

वर्ष 2010 — एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक।
वर्ष 2014 — एशियन गेम्स में कांस्य पदक।

वर्ष 2015 — रियो ओलंपिक में चयन।

वर्ष 2016 — आईएएएफ (आईएएएफ) डायमंड लीग मीट में नेशनल रिकॉर्ड (9:25:55) को तोड़ते हुए इतिहास रचा ।
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