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येरुशलम को इस्राइली राजधानी की मान्यता मामले में अकेला पड़ा अमरीका, UN में लगी फटकार

Published: Dec 10, 2017 09:52:09 am

Submitted by:

Mohit sharma

तमाम देशों के बीच केवल निक्की हेली ही ऐसी प्रतिनिधि रहीं जो येरुशलम पर ट्रंप के फैसले का समर्थन में दिखी।

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नई दिल्ली। येरुशलम को बतौर इस्राइल की राजधानी की मान्यता देने को लेकर अमरीका घिरता नजर आ रहा है। यही कारण है कि इस अपने फैसले के बाद अमरीका संयुक्त राष्ट्र में अलग-थलग सा पड़ गया है। यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की इमरजेंसी मीटिंग में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस्राइल में अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से स्थानांतरित करने के फैसले पर यूई देशों ने इसको लेकर फलस्तीन और इस्राइल से वार्ता करने की बात कही। यही नहीं मीटिंग के दौरान फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्वीडन व जर्मनी आदि ने भी अमरीका के फैसले पर असहमति जाहिर की।

यूएन बताया इस्राइल विरोधी

दरअसल, यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में मौजूद फ्रांस व ब्रिटेन अमरीका के काफी नजदीकी व सहयोगी माने जाते हैं, बावजूद इसके ट्रंप को इस फैसले को लेकर दोनों देशों ने अमरीका को बुरी तरह से लताड़ लगाई। हालांकि यूएन में अमरीकी राजदूत निक्की हेली ने कहा है कि इस्राइल व फलस्तीन के बीच शांति प्रयासों को नुकसान पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र जिम्मेदार है। हेली ने यह भी कहा कि यूएन इस्राइल के प्रति शत्रुता का भाव रखता है। बता दें कि मीटिंग के दौरान तमाम देशों के बीच केवल निक्की हेली ही ऐसी प्रतिनिधि रहीं जो येरुशलम पर ट्रंप के फैसले का समर्थन में दिखी।

बता दें कि इससे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों ने जेरूसलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के अमरीका के फैसले की आलोचना करते हुए चेताया था कि इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा। हालांकि, अमरीका अपने इस फैसले का दृढ़ता से बचाव कर रहा है। फ्रांस के स्थाई प्रतिनिधि फ्रांस्वा डेलाट्रे ने शुक्रवार को आपात बैठक में बताया कि जेरूसलम पर राजनीतिक टकराव धार्मिक टकराव में तब्दील हो सकता है।

उन्होंने सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों का हवाला देते हुए कहा कि शहर (जेरूसलम) के दर्जे में किसी तरह का एकतरफा बदलाव अमान्य होगा। उन्होंने एक बयान में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सिर्फ दोनों पक्षों की ओर से स्वीकार किए गए 1967 सीमा समझौते में बदलाव को ही मान्यता देगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1980 के एक प्रस्ताव में सदस्य देशों से अपने राजनयिक मिशन जेरूसलम में नहीं खोलने को कहा गया था। संयुक्त राष्ट्र के रुख से विपरीत 1995 में कांग्रेस में पारित विधेयक के अनुरूप दूतावास को जेरूसलम स्थानांतरित करने को लेकर अमरीका में व्यापक सहमति है।

अमेरिका के इस फैसले के विरोध में शुक्रवार शाम को न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वायर पर फिलीस्तीन के लगभग 1,000 समर्थकों ने प्रदर्शन भी किया। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थाई प्रतिनिधि निकी हेली ने शांति प्रक्रिया और द्वी-राष्ट्र समाधान के लिए ट्रंप प्रशासन की प्रतिबद्धता दोहराई। हेली ने कहा कि अमरीका ने सीमाओं को लेकर कोई रुख अख्तियार नहीं किया है। जेरूसलम की संप्रभुता के आयाम अभी भी इजरायल और फिलीस्तीन की जनता आपसी विचार विमर्श से निर्धारित करेंगे। हेली ने कहा कि इजरायल में अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से जेरूसलम ले जाने का फैसला एक सरल सामान्य फैसला था क्योंकि विश्व के हर देश में अमेरिका के दूतावास उनकी राजधानियों में स्थित हैं। संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के स्थाई प्रतिनिधि मैथ्यू रायक्रॉफ्ट ने कहा कि जेरूसलम इजरायल और फिलीस्तीन दोनों की संयुक्त राजधानी होनी चाहिए और अमेरिका के फैसले से इसमें मदद नहीं मिलेगी।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे के समाधान में इजरायली बस्तियों का विस्तार विशेष रूप से पूर्वी जेरूसलम में, आतंकवाद और हिंसा बाधक हैं। संयुक्त राष्ट्र में चीन के उपस्थाई प्रतिनिधि वु हेताओ ने कहा कि जेरूसलम के दर्जे पर किसी तरह की एकपक्षीय कार्रवाई नए विवाद पैदा कर सकती है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के मध्यपूर्व शांति प्रक्रिया के विशेष समन्वयक निकोले म्लाडेनोव ने बताया कि ट्रंप ने कहा था कि सीमाओं सहित जेरूसलम के अंतिम दर्जे के मुद्दे को निर्धारित किया जाना है।

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