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संविदा के सहारे चल रहा यहां का विश्वविद्यालय, 10 साल में भी नहीं हो सकी नियमित नियुक्ति

locationअंबिकापुरPublished: Jan 17, 2019 01:09:31 pm

सरगुजा में शिक्षा व्यवस्था का ये है हाल, प्राध्यापकों की कमी से बिगड़ा उच्च शिक्षा का सपना

Surguja university

University

डॉ. अजय तिवारी
अंबिकापुर. सरगुजा विश्वविद्यालय से संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय तक का सफर संविदा पर ही गुजर गया। स्थापना के 10 वर्ष बाद भी विश्वविद्यालय के पास नियमित कर्मचारी, अधिकारी के नाम पर कुलसचिव विनोद एक्का, सहायक कुलसचिव शोभना सिंह, सहायक कुलसचिव राजेन्द्र चौहान, सीमा पांडेय, आदर्श सिंह और अजय सिंह ही है।

4 अक्टूबर 2008 को बने सरगुजा विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, सह प्राध्यापक तथा सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति तो हुई लेकिन कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई। शिक्षकों की नियुक्ति में कुलपति के पसंद और क्षेत्र का असर दिखा तो तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया अधर में है।
तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया 2013 में हुई थी लेकिन विश्वविद्यालय उस प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सका। तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के लिए अभ्यर्थियों ने परीक्षा भी दी थी लेकिन सरगुजा विश्वविद्यालय (संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय) प्रशासन ने आयोजित परीक्षा का न तो परिणाम जारी किया और न ही उस सन्दर्भ में कोई आदेश दिया।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने आयोजित परीक्षा को गोपनीय अंदाज में निबटाते हुए नई भर्ती प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी। नई भर्ती प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन प्रदेश स्तर पर नियुक्ति करने पर आमादा है तो स्थानीय और संविदा कर्मचारी आदिवासी अंचल होने का लाभ चाहते हैं।
ज्ञात हो कि सरगुजा और बस्तर संभाग आदिवासी अंचल होने के कारण तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में स्थानीय अभ्यर्थियों की नियुक्तियां होंगी। सेटअप के अनुसार विश्वविद्यालय 10 वर्ष में रेग्यूलर नियुक्ति नहीं कर सका है।

विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए 227 का सेटअप मिला था। शिक्षकों की नियुक्ति दो चरणों में हुई, फिर भी शिक्षकों के पद रिक्त हैं। कर्मचारियों, तकनीकी सहायकों की नियुक्ति नहीं होने से पठन-पाठन भी बाधित है।

संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय को स्थापना के साथ तीन स्तर पर सेटअप मिला। प्रथम सेटअप 20 जून 2008 को मिला, जिसमें फार्मेसी विभाग को 19 तथा कम्प्यूटर विभाग में 12 पद थे। 29 अगस्त 2012 को 24 पद मिले तथा २६ अगस्त 2013 को 9 पद मिले।

वर्ष 2013 के परीक्षार्थियों को है परिणाम का इंतजार
सरगुजा विश्वविद्यालय ने तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए ६ फरवरी 2013 को प्रतियोगी परीक्षा आयोजित कराई थी। परीक्षा की उत्तर पुस्तिका को दो माह जिला कोषागार में रखा गया। प्रथम कुलपति डॉ. सुनील कुमार वर्मा के जाने के बाद कोषागार से उत्तर पुस्तिका विश्वविद्यालय मंगा ली गई।
परीक्षा का न तो परिणाम जारी किया गया और न ही परीक्षा निरस्त करने की सूचना प्रतियोगियों को दी गई। सवाल तो यह भी उठता है कि उस परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों को नई प्रक्रिया में शामिल किया गया या नहीं।

यूटीडी को है नयी नियुक्ति का इंतजार
संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय में वर्तमान में पर्यावरण विज्ञान विभाग, जैव प्रोद्यौगिकी विभाग, कम्प्यूटर विज्ञान विभाग, प्रक्षेत्र वानिकी विभाग, प्रयोजनमूलक हिन्दी विभाग, विधिक अध्ययन विभाग और फार्मेसी विभाग संचालित है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी विभाग, विधिक अध्ययन विभाग और कम्प्यूटर विज्ञान विभाग एक-एक सहायक प्राध्यापकों के सहारे संचालित है। शिक्षकों की कमी का असर पठन-पाठन पर पड़ रहा है। ऐेस में अबाधित अध्ययन-अध्यापन के लिए शिक्षकों की नियुक्ति कब हो पाती है, इसका इंतजार है।

इंजीनियरिंग कॉलेज पर आश्रित हो गया है विश्वविद्यालय
गोपनीय विभाग में कार्यरत डॉ. नेहा शर्मा, ऑनलाइन कम्प्यूटर विभाग कम्प्यूर डॉ. एससी गजभिए तथा दो और सहायक प्राध्यपक नियमित रूप से विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन में सेवायेें दे रहे हैं। विश्वविद्यालय ने नैक निरीक्षण के दौरान विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज से कम्प्यूटर, फर्नीचर मंगवाया था।

उद्देश्यों से दूर हो गया विश्वविद्यालय
सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना आदिवासी अंचल के शैक्षिक, सामाजिक स्तर के उन्नयन के उद्देश्य किया गया था लेकिन विश्वविद्यालय व्यक्तिगत स्वार्थों, महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया। शैक्षिक स्तर पर विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के रोजगार में सहायक नहीं हो सका। विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थी कैम्पस सलेक्शन के लिए तरस गये।
रोजगार उपलब्ध कराने के स्तर पर विश्वविद्यालय स्थानीय युवाओं को संविदा के नाम पर शोषण करता रहा। संविदा पर काम कर रहे लोगों को विश्वविद्यालय कभी दैनिक वेतनभोगी, कभी कलक्टर दर पर नियुक्त वेतनभोगी दर्शाता है। विश्वविद्यालय फिलहाल सेवानिवृत्त अधिकारियों का अखाड़ा बन चुका है।
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