2019 के विधानसभा उपचुनाव में जलालपुर में कुल मतदाताओं की संख्या 3,93,104 है, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 2,11,885 व महिला मतदाताओं की संख्या 1,81,628 है। वहीं 32 हजार ब्राह्मण, 1.5 लाख एसी, 20-25 हजार निषाद, 18 से 20 हजार कुर्मी, 13 हजार ठाकुर व 55 हजार मुस्लिम मतदाता हैं।
2017 के विधानसभा चुनाव जलालपुर से बसपा प्रत्याशी रितेश पांडेय 37.75 प्रतिशत यानी 90027 मत पाकर पहले स्थान पर, भाजपा के राजेश सिंह 32.30 यानी 77133 मत, सपा के शंखलाल माझी को 24.56 प्रतिशत यानी 58479 मत पाकर दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन ने बड़ा असर दिखाते भाजपा से यह सीट छीन ली थी, जिसमें जलालपुर के मतदाताओं का बड़ा रोल माना जाता है। इस बार के उप चुनाव सपा और बसपा अलग होकर चुनाव लड़ रही हैं। खास बात यह भी है बसपा ने इस बार सवर्ण जाति को टिकट देने के बजाय पिछड़ी जाति की डॉ. छाया वर्मा को मैदान में उतारा है। इसलिए यह माना जा रहा है कि सवर्ण जाति के मतदाता इस बार बसपा के बजाय अन्य पार्टियों को मतदान कर सकते हैं।
भाजपा इस सीट डॉ राजेश सिंह को फिर से मैदान में उतारा है। 2017 में भी राजेश सिंह ही भाजपा प्रत्याशी रहे हैं। इस बार जीत सुनिश्चित कराने के लिए भाजपा के कई कद्दावर मंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष, उप मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री तक जलालपुर का दौरा कर चुके हैं। वहीं समाजवादी पार्टी ने सुभाष राय को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा में स्थानीय नेताओं में पूर्व मंत्री राम मूर्ति वर्मा और कई दिग्गज तो प्रचार में जुड़े हुए हैं। इसके अलावा पार्टी हाई कमान मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक गायिका का भी सहारा लिया है।
बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री लालजी वर्मा की पुत्री डॉ छाया वर्मा बसपा प्रत्याशी हैं। डॉ छाया वर्मा मेडिकल कालेज में सर्जन रही हैं, जिन्होंने इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में बसपा का परचम लहराने का इरादा बनाया है, जबकि भाजपा का प्रदेश नेतृत्व पूरी ताकत से इस सीट को अपने पाले में करने के लिए सारे हथकंडे अपना रही है। इस क्षेत्र में ब्राम्हण मतदाताओं की सबसे ज्यादा संख्या को देखते हुए भाजपा सरकार के कानून मंत्री बृजेश पाठक ब्राम्हण मतदाताओं के बीच दिनरात संपर्क साधने में जुटे हुए हैं। अलग अलग जाति के अन्य कई मंत्री भी क्षेत्र में जाति फैक्टर साधने में जुटे हुए हैं। ब्राम्हण मतदाताओं के बाद दूसरे नंबर पर दलित और मुस्लिम जातियों की संख्या है। उसके बाद कुर्मी और यादव के अलावा अन्य कई पिछड़ी जातियों की संख्या है, जो किसी पार्टी के बदल देने की कूबत रखते हैं।