ड्रेक्सल यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन, फिलाडेल्फिया, अमेरिका के डॉ. अखिल वैद्य ने नई एंटीमलेरियल दवाओं के द्वारा सोडियम आयन (Na+) और लिपिड होमियोस्टैसिस (संतुलन) को भंग करने के परिणामों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि मलेरिया परजीवी में सोडियम आयन संतुलन को भंग करने वाले कई यौगिकों में, परजीवियों के ब्लड स्टेज पर ही सफाया करने की क्षमता है जिसका औषधि अनुसंधान में उपयोग किया जा सकता है।
मेडिसिन फॉर मलेरिया वेंचर (एमएमवी), जिनेवा, स्विट्जरलैंड के ड्रग डिस्कवरी प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. जेरेमी एन. बुरुज़, ने मेडिसिन फॉर मलेरिया वेंचर (एमएमवी) के काम को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए बताया की उनकी संस्था किस तरह से मलेरिया पीड़ित देशों में मलेरिया के बोझ को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के सहयोग से नई, प्रभावी और सस्ती एंटीमलेरियल दवाओं के अनुसंधान एवं विकास द्वारा मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए दवा की खोज एवं वितरण द्वारा अपने मिशन को पूरा कर रही है।
सीटीडीडीआर-2019 के दूसरे दिन, दूसरा सत्र, “लीशमैनिया थेरेप्यूटिक्स की समस्याएं तथा नए दृष्टिकोणो” को समर्पित था यूनिवर्सिटी ऑफ ऑकलैंड, न्यूजीलैंड के डॉ. एंड्रयू एम. थॉम्पसन ने कहा कि वर्तमान में वीएल के लिए कुछ उपचार विकल्प उपलब्ध हैं, परंतु उनमें से अधिकांश में विभिन्न कमियों भी हैं, जिन्हें दूर करने के लिए विसरल लिश्मेनियासिस (वीएल) के उपचार हेतु अधिक सुरक्षित और प्रभावकारिता के साथ सस्ती, कम अवधि तक चलने वाली (शॉर्ट-कोर्स) तथा मुख से ली जाने वाली दवाओं की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने विसरल लिश्मेनियासिस के लिए एक नई नैदानिक प्रत्याशी दवा DNDI-0690 के बारे में अपनी नवीनतम जानकारी साझा की। उन्होंने बताया, 14 दिनों के चूहे के विषाक्तता अध्ययन में इस नई प्रत्याशी दवा (DNDI-0690) का आकलन किया जा चुका है, और अब इसे एडवांस डेवलपमेंट के लिए चुना गया है जिसके सफल होने पर यह बाजार में आ जाएगी।
बर्नहार्ड नोहट इंस्टीट्यूट फॉर ट्रॉपिकल मेडिसिन, जर्मनी के डॉ. जोआचिम क्लोस, ने लीशमैनिया के लिए दवा विकास में सिस्टम बायोलॉजी के उपयोग के बारे में प्रतिभागियों के साथ अपने विचार साझा किए। जबकि, सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ से डॉ. सुशांत कार ने लीशमैनिया परजीवी में मैक्रोफेज एम1 / एम2 के ध्रुवीकरण द्वारा एपिजेनेटिक रिप्रोग्रामिंग में होस्ट की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर चर्चा की।
एमटीबी, वर्तमान में संक्रामक बीमारी से मौत का सबसे बड़ा एक कारण है: प्रोफेसर रसेल तीसरा सत्र “बैक्टीरियल संक्रमणों में मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस (बहु-दवा प्रतिरोध) का मुकाबला” पर आधारित था। कॉर्नेल विश्वविद्यालय, यूएसए के प्रो. डेविड जी. रसेल ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के उपचार के लिए अत्याधुनिक होस्ट-डिपेंडेंट एंटी-बैक्टीरियल्स की पहचान के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान में एमटीबी, संक्रामक बीमारी से मौत का सबसे बड़ा एकल कारण है। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता, बैक्टीरिया की वृद्धि के पोषण संबंधी प्रतिबंध इत्यादि रोग की प्रगति को सीमित करने हेतु महत्वपूर्ण साधन हो सकते हैं जो संक्रमण के चिकित्सीय नियंत्रण के लिए एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करते हैं।