ये है पूरा मामला टांडा तहसील के राजस्व गांव बसखारी के खसरा नंबर 1282 में जानकी देवी पत्नी मैकूलाल ने वर्ष 1979 में त्रिलोकी पुत्र मथुरा से बैनामा लिया था। बैनामे के बाद नामांतरण आदेश पारित होकर जब महिला जानकीदेवी पत्नी मैकूलाल का नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज हुआ तो गलती से पति के स्थान पर मैकूलाल के बजाय मैनूलाल दर्ज ही गया। इस बात की जानकारी महिला को अब उस समय पता चली जब वह अपनी इसी जमीन पर बन चुके अपने आवास के आधार पर जमीन को आकृषक घोषित कराने का आवेदन किया। महिला के आवेदन पर लेखपाल ने यह कहते हुए रिपोर्ट लगाने से इनकार कर दिया कि खतौनी में पति के नाम में त्रुटि है और जब तक यह त्रुटि दुरुस्त नहीं हो जाती महिला का काम नहीं होगा।
तहसील दार के त्रुटि दुरुस्त किये जाने की है संस्तुति सरकारी कर्मचारियों की चूक के कारण जानकी देवी के पति मैकूलाल का नाम गलत अंकित हो जाने की सूचना महिला ने 4 जुलाई 2018 को टांडा तहसीलदार को दी, जिसके साथ उसने उस अभिलेख की प्रमाणित प्रति भी दी, जिसमें उसके पति का नाम त्रुटिपूर्ण ढंग से लिखा गया। प्रमाण को सही मानते हुए तत्कालीन तहसीलदार टांडा मेवालाल ने नाम दुरुस्त किये जाने की अपनी संस्तुति सहित आख्या 16 अगस्त 2018 को उपजिलाधिकारी को प्रेषित की, लेकिन आरोप है कि अवैध धन न मिलने के कारण उपजिलाधिकारी ने तहसीलदार को पुनः जांच के लिए भेज दिया।
इसी बीच पुराने तहसीलदार का प्रमोशन हो गया और नए तहसीलदार के रूप में सुदामा वर्मा ने एक बार पुनः अपनी संस्तुति सहित आख्या 5 अक्टूबर को उपजिलाधिकारी को प्रेषित की। आरोप है कि इस बार भी सुविधाशुल्क न मिलने के कारण उपजिलाधिकारी कोमल यादव ने पत्रावली पुनः तहसीलदार के यहां रिपोर्ट में भेज दी और सरकारी गलतियों के कारण जानकी देवी कई महीने से तहसील के चक्कर लगाने को मजबूर है।
तहसील में भ्रष्टाचार चरम पर तहसील में भ्रष्टाचार के कारण पीड़ित होने का जानकी देवी का यह कोई अकेला मामला नहीं है। ऐसे बहुत सारे मामले हैं, जिनकी सुनवाई करने के बाद उपजिलाधिकारी महीनों से पत्रावली आदेश में लगाये बैठे हैं और सुविधाशुल्क के इंतजार में आदेश पारित नहीं हो रहा है। सामान्य तौर पर खेती की भूमि पर आवास बनाने के लिए बैंक तबतक ऋण नहीं देता है, जबतक कि उस जमीन को खातेदार आकृषक न दर्ज करा लें, दर्जनों ऐसी पत्रावलियां उपजिलाधिकारी कार्यालय में सुविधाशुल्क के अभाव में धूल फांक रही हैं और फरियादी दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। तहसील के कोई भी ऐसा काम नहीं है जिसके लिए फरियादियों को सुविधा शुल्क न देना पड़े।