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जानिए सरिस्का में टाइगर क्यूं हो रहे गुम

locationअलवरPublished: Mar 18, 2018 11:27:33 pm

Submitted by:

Prem Pathak

अलवर. देश दुनिया में ख्याति पा चुके सरिस्का बाघ परियोजना में टाइगर क्यूं गुम हो रहे हैं। इसकी वजह जाननी है तो सुरक्षा तंत्र को खंगालना जरूरी है।
 

Know how tiger is missing in Sariska
सरिस्का बाघ परियोजना की सुरक्षा के वर्तमान में हालत यह है कि करीब 1213 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा मात्र 108 वनकर्मियों पर है। इनमें भी वायरलैस, कंट्रोल रूम सहित अन्य कार्यों का जिम्मा भी वनकर्मियों को उठाना पड़ता है। नतीजतन सरिस्का की ज्यादातर वनचौकियां खाली रहती हैं और नाकों पर सख्त निगरानी नहीं हो पाती। इसका सीधा असर शिकारियों व अन्य आपराधिक प्रवृति के लोगों की सरिस्का में आसान पहुंच के रूप में दिखाई पड़ चुकी है। वहीं बाघ व अन्य वन्यजीवों की मॉनिटरिंग पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है, तभी तो बाघिन एसटी-5, इकलौते भालू जैसे वन्यजीव गायब हो गए।
वर्तमान में सरिस्का की सुरक्षा के हालात


सरिस्का की छह रेंजों की 102 बीटों पर वर्तमान में कुल 108 वनकर्मी तैनात हैं, इनमें करीब एक तिहाई महिला वनकर्मी भी शामिल हैं। वहीं सरिस्का में वनकर्मियों के पास आधुनिक हथियारों का अभाव है। नियमानुसार हर चौकी पर दो वनकर्मियों की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन वनकर्मियों के अभाव में ज्यादातर खाली पड़ी हैं।
दो वर्ष पूर्व की थी गठन की घोषणा

राज्य सरकार की ओर से दो वर्ष पूर्व बजट में सरिस्का टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के गठन की घोषणा की गई थी, लेकिन वह अब तक अस्तित्व में नहीं आ सकी है। पिछले साल सरिस्का में पैंथरों के हमले के दौरान रणथंभौर से कुछ दिनों के लिए यह फोर्स बुलानी पड़ी थी। एसटीपीएफ की कमी का सीधा असर सरिस्का में शिकार की बढ़ती घटनाओं के रूप में पड़ा है।
सरिस्का में 14 बाघ व 100 से ज्यादा पैंथर


सरिस्का में वर्तमान में 14 बाघ व 100 से ज्यादा पैंथर हैं। वहीं अन्य वन्यजीवों की संख्या हजारों में है। इस कारण सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम जरूरी है, लेकिन सरिस्का में पर्याप्त संख्या में वनकर्मी ही नहीं है, जिससे उनकी सही तरह मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही है।
वनकर्मी बढ़ाने को भेजा पत्र


सरिस्का में वनकर्मियों की नफरी बढ़ाने के लिए सरकार को पत्र भेजा गया है। सरिस्का का क्षेत्र बड़ा है, एेसे में सुरक्षा के लिए वनकर्मियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है।
-डॉ. गोविंदसागर भारद्वाज,

सीसीएफ, सरिस्का बाघ परियोजना।

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