यूं देते हैं चोरी की वारदात को अंजाम घोड़ासन गैंग के सदस्य पहले बड़े शहर व कस्बों में रेलवे स्टेशन के आसपास बड़े मोबाइल शोरूमों की रैकी करते हैं। फिर गिरोह के 8 से 10 सदस्य ट्रेन से देर रात या फिर तडक़े वहां पहुंचते हैं। पहले दो से तीन के ग्रुप में चिह्नित वारदात स्थल के आसपास घूमते हैं। पुलिस की गश्त खत्म होते ही शोरूम की शटर के आगे चादर लगाकर शटर को तोड़ते हैं और अपने एक सदस्य को शोरूम के अंदर घुसा देते हैं। इसके बाद चादर समेटकर बाकी सदस्य इधर-उधर घूमने लग जाते हैं। शोरूम से मोबाइल समेटने के बाद अंदर वाला शख्स शटर बजाता है। फिर गिरोह के अन्य लोग वापस शटर के आगे चादर लगाकर उसे बाहर निकाल लेते हैं। इसके बाद वापस पैदल या अन्य साधन से रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं और ट्रेन में बैठकर रवाना हो जाते हैं।
मोबाइल समेटने वाला होता है ‘प्लेयर’ अंतरराष्ट्रीय मोबाइल चोर गिरोह ने वारदात में शामिल होने वाले हर व्यक्ति का उसके काम के हिसाब से नाम रखा हुआ है। शटर तोडऩे के बाद शोरूम या दुकान के अंदर जाकर मोबाइल समेटने वाले सदस्य को ‘प्लेयर’ के नाम से बुलाते हैं। गिरोह का प्लेयर शोरूम के अंदर से महंगे मोबाइल को डिब्बे से बाहर निकालकर बैग में भरता है।
नेपाल से नहीं हो पाती मोबाइल की बरामदगी गिरोह के सदस्यों की नेपाल में पूरी सैटिंग है। भारत से चोरी मोबाइलों को एजेंट के माध्यम से नेपाल में दुकानों पर बेच देते हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक भारत के मोबाइल का नेपाल में आईएमईआई नम्बर भी ट्रेस नहीं हो पाता है। पुलिस चोरों को पकड़ भी लेती है तो उनसे मोबाइल की बरामदगी संभावना ना के बराबर होती है।