मेले में गूंजे बाबा भर्तृहरि के भजन
मेले के दौरान आस्था और भक्ति का संगम नजर आया। एक ओर जहां जोगी बाबा भर्तृहरि के भजन गा रहे थे तो दूसरी तरफ भजन मंडलियां भी लोक देवता की महिमा का गुणगान कर रही थी। जगह-जगह पर बाबा भर्तृहरि के लोक भजनों की धूम मची हुई थी। इससे भक्तिमय माहौल बना हुआ था। श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए दंडौती लगाते हुए मंदिर तक पहुंच रहे थे। रास्ते में आने जाने वाले श्रद्धालु भी भर्तृहरि बाबा का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। जगह-जगह पर दानदाताओं की ओर से भंडारा और प्याऊ लगाई गई थी। जहां भीड़ लगी हुई थी। मेले में आने वाले श्रद्धालु पैदल जा रहे थे, वहीं कुछ निजी वाहनों से भी पहुंच रहे थे।
अलवर है बाबा भर्तृहरि की तपोभूमि
अलवर को भर्तृहरि बाबा की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। सरिस्का के जंगलों में बाबा भर्तृहरि ने बरसों तक तपस्या की थी, इसलिए यह जगह तपोभूमि के नाम से जानी जाती है। किसी भी शुभ कार्य से पूर्व लोक देवता बाबा भर्तृहरि के जयकारे जरूर लगते हैं।
एक दिन पहले ही पहुंच गए श्रद्धालु
पदमचंद गुर्जर (मुंशी ) का कहना है कि भर्तृहरि बाबा उज्जैन के राजा थे, जिन्होंने यहां आकर तपस्या की थी और वर्तमान में अलवर की जनता के दिलों पर राज करते हैं। उन्होंने बताया कि मेले से एक दिन पहले ही श्रद्धालु यहां आ जाते हैं। मेले में चारों ओर लाइट लगाई गई। श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था की गई। जगह-जगह भजन कीर्तन और भर्तृहरि बाबा की कथा सुनाते हुए लोक कलाकार नजर आए।
राजस्थान रोडवेज की ओर से भर्तृहरि मेले के लिए विशेष इंतजाम किए गए। अलवर केन्द्रीय बस स्टैण्ड से मेले के लिए 80 रोडवेज बसें चलाई गई। रोडवेज बसों में यात्रा कर भर्तृहरि मेले में पहुंचने के लिए बस स्टैण्ड पर श्रद्धालुओं का मेला लगा रहा। यात्रीभार के अनुसार बसों का संचालन किया गया। मेले में जाने वाले श्रद्धालुओं को किराए में 50 प्रतिशत की छूट दी गई।
अलवर. जिला प्रशासन एवं पर्यटन विभाग राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में भर्तृहरि मेले के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन मेला स्थल पर किया गया। पर्यटक अधिकारी संजय कुमार ने बताया कि मेले में आने वाले धार्मिक पर्यटकों के लिए पहली बार स्थानीय लोक कला को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रम करवाए। मेले के दौरान राम प्रसाद व ग्रुप ने कच्छी घोड़ी नृत्य, मयूर नृत्य व फूलों की होली, बने ङ्क्षसह प्रजापत ने रिम भवाई, जयपुर से आए दयाल सपेरा ने कालबेलिया, भपंग के साथ चरी नृत्य, मटका भवाई एवं खारी नेहडी इत्यादि कार्यक्रमों भी प्रस्तुत किए। कार्यक्रम के संचालक खेमेन्द्र ङ्क्षसह ने भर्तृहरि के जीवन के महत्वपूर्ण भागों से दर्शकों का परिचय करवाया।
इससे पहले मंदिर परिसर में पर्यटन विभाग की और से मतदाता जागरूकता और चुनाव आयोग की ओर से डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराई जा रहीं सुविधाओं का प्रचार भी किया गया।
मेले के दौरान दोपहर में बारिश आने लगी, लेकिन भक्तों में आस्था इतनी अधिक थी वो लगातार दर्शनों के लिए आते रहे। श्रद्धालुओं ने बाबा भर्तृहरि के लगाई ढोक, मेले में गूंजे बाबा के जयकारे
अलवर. भादो मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लोक देवता बाबा भर्तृहरि का लक्खी मेला भरा। मेले के अवसर पर घर-घर में भर्तृहरि बाबा की ज्योत देखी गई। दाल, बाटी चूरमा का भोग लगाया गया। भर्तृहरि धाम में भरने वाले मेले में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। मंदिर के अंदर व बाहर का परिसर खचाखच भरा हुआ था। जहां देखो वहां श्रद्धालु ही नजर आ रहे थे। मेले में अलवर जिले के अलावा जयपुर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश आदि से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आए। बाबा के दर्शन किए और मनोकामना मांगी। भर्तृहरि बाबा की सेवा पूजा व भोग लगाने का काम जोगी परिवार कर रहा था। मंदिर परिसर भर्तृहरि बाबा के जयकारों से गूंज रहा था। इसी के साथ ही दिन दिवसीय मेले का समापन हो गया।
बाबा भर्तृहरि नाथ संप्रदाय के थे, इसके चलते मेले में देशभर से नाथ संप्रदाय के साधुओं का जमावडा लगा हुआ था। इसके साथ ही संत व संन्यासी भी मेले में आए। मेले में भीड़ को देखते हुए पुलिस की ओर से सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए गए थे।