इससे पहले भी रामगढ़, नौगावां, किशनगढ़बास आदि क्षेत्रों में गोमांस मिल चुका है। अथवा ये कहें कि जिले के रामगढ़, नौगावां, गोविन्दगढ़ आदि क्षेत्र गोमांस की गुप्त मंडी के रूप में विकसित हो रहे है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सकील ने भी पुलिस पूछताछ में बताया कि वह हरियाणा सहित आस-पास के मेवात क्षेत्र में गोमांस बेचता था। गोमांस की होम डिलीवरी भी करता था।
221 खालों से लगता है सहज अंदाजा जिले में गोमांस का कारोबार कितने बड़े पैमाने पर है, इसका अंदाजा गोविन्दगढ़ में गोदाम में मिली 221 गायों की खालों से लगाया जा सकता है। पशु चिकित्सकों के अनुसार यह खालें ज्यादा से ज्यादा 15-20 दिन पुरानी थी। यानि केवल एक पखवाड़े में इतनी गायों को मारकर गोमांस बेचा गया।
सीमा पार से भी जुड़े हैं तार गोमांस का कारोबार करने वालों के सीमा पार के लोगों से भी सम्पर्क जुड़ा हुआ है। दरअसल, रामगढ़, गोविन्दगढ़, नौगावां से हरियाणा के मेवात क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा लगता है। यहां गोमांस की काफी डिमांड है। ऐसे में इन इलाकों में गोमांस आसानी से बिक जाता है। पुलिस पूछताछ में सकील ने भी बताया कि वह हरियाणा के मेवात क्षेत्र में भी गोमांस की सप्लाई करता था।
ज्यादा मुनाफे ने बढ़ाई गोकशी गोमांस के धंधे के फलने-फूलने का एक कारण अधिक मुनाफा भी है। दरअसल, इस धंधे से जुड़े लोगों को गोमांस के लिए गोवंश ढूढने में ज्यादा दिक्कत नहीं आती। गोमांस के लिए वे ज्यादातर आवारा गोवंश को शिकार बनाते हैं। ऐसा गोवंश उन्हें आसानी से अथवा सस्ते दामों पर सहज मिल जाता है। ऐसे गोवंश में रिस्क फैक्टर भी कम रहता है। जानकारों की मानें तो एक गोवंश में आसानी से एक से डेढ़ क्विंटल गोमांस निकल जाता है, जो सहज 80 से 100 रुपए किलो बिक जाता है। यानि एक गोवंश से 10 से 15 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। जबकि अन्य पशुओं के मांस की बिक्री में इतना मुनाफा नहीं होता।