संगम के तट पर कल्पवासियों को न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक ,मानसिक और शारीरिक लाभ भी मिलता है। कल्पवास में मनुष्य जीवन ,मृत्यु के बंधनों से मुक्त की कामना लेकर कुंभ में पहुँचते हैं और यहाँ आने वाले भक्त तमाम अलौकिक शक्ति बटोर कर ले जाते है। सोमवार को मौनी अमावस्या पर लाखों श्रद्दालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई।
कल्पवास के महाव्रत दौरान कल्पवासी अपने-अपने अपने शिविर में तुलसी का पौधा रोपते हैं जौ बोया जाता है, जो शांति और समृद्धि का प्रतीक हैं। वैदिक संस्कृति में तुलसी और जौ को सबसे ज्यादा पूजनीय माना जाता है। तुलसी रोपण के साथ ही कल्प वासियों के टेंट में चूल्हे जलेंगे। कल्पवास के इस महाब्रत में 24 घंटे में एक बार अन्न ग्रहण करते हैं। संध्या स्नान करके अपने आराध्य की साधना करते हैं।
पंडित आचार्य राम मिलन मिश्रा के अनुसार वानप्रस्थ का समय कल्पवास के लिए सबसे उपयुक्त होता है।इस अवस्था में व्यक्ति घर की जिम्मेदारियों से लगभग मुक्त हो चुके होते हैं । उनके पुत्र या परिवार के उत्तराधिकारी परिवार की जिम्मेदारियां ले लेते हैं। बताया कि शास्त्रों के अनुसार विवाहित स्त्रियों के पति को अपनी पत्नियों के साथ कल्पवास करना चाहिए। जिसका लाभ पूरे परिवार को मिलता है ।
आचार्य के मुताबिक कल्पवास करने से मन को पवित्रता मिलती है। कल्पवास से पितृदोष का नाश हो जाता है। कल्पवास के दौरान दिनचर्या बदल जाती है। आचार्य राम मिलन ने बताया कि हमारी वैदिक परंपरा में जिस जीवन को बताया गया है। उसके अनुसार यहां हवा पानी और भोजन तीनों शुद्ध मिलता है। इससे न केवल आध्यात्मिक बल्कि शारीरिक शुद्धि भी होती है। वहीं उन्होंने बताया हिमालय से आने वाले जल जिसमे करोङो औषधीय गुण मिलें होते है। जो लाखों की दवाइयों से भी ज्यादा लाभकारी होते हैं। यहां तक की रेत पर चलने से डिप्रेशन और जोड़ों में दर्द भी खत्म हो जाता हैं।