डॉ. चारुदत्त पिंगले ने एक बार जब अध्यात्म की ओर कदम रखा तो सबसे पहले हिंदू धर्म में स्वस्थ रहने के लिए बताए गए तरीकों पर शोध का कार्य किया। अच्छे परिणाम मिले तो 1999 में चिकित्सकीय पेशे को छोड़ दिया।
डॉ. पिंगले ने सबसे पहले हिंदू जनजागृति समिति की स्थापना की। महाराष्ट्र के रत्नागिरि में आश्रम स्थापित किया। अब देश के 22 राज्यों में 100 से अधिक प्रचार-प्रसार केंद्र आध्यात्मिक चिकित्सा से लोगों की सेहत सुधारने का कार्य कर रहे हैं।
पत्रिका से विशेष बातचीत में डॉ. पिंगले ने कहा कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट भी कहती है कि चिकित्सा में सोशल हेल्थ भी सबसे अहम हिस्सा है। सोशल हेल्थ आध्यात्मिकता से जुड़ कर ही मिल सकता है। इसकी मदद आज कई अलग-अलग विकसित देश ले रहें। इसके माध्यम से वह लोगों को जल्द उनकी बीमारियों से मुक्त करा रहे हैं। उसी दिशा में भारत में हमारा यह कदम है। यह हमारी ही पद्धति रही है। हम सनातन पद्धति के विधान के माध्यम से चिकित्सा का प्रचार कर रहे हैं।
डॉ पिंगले ने कहा कि कश्मीर भारत मां का मस्तक है। कश्मीर के खंडित होने से भारत का सोशल हेल्थ खराब हो गया है। भारत के शीश पर जो घाव लगा है, उसका इलाज होना चाहिए। लोगों के बीच जन जागरूकता पहुंचाने के लिए विस्थापित कश्मीरियों का पुनर्स्थापन जरूरी है। डॉ. पिंगले ने कुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 15 में कश्मीरी विस्थापितों पर प्रदर्शन भी लगाई है।