राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक जाने की तैयारी
विवि प्रशासन द्वारा छात्रसंघ चुनाव के बैन करने के निर्णय का विरोध बढ़ रहा है ,दुसरे दिन भी परिसर में हंगमा रहा ,अब पूर्व पदाधिकारी भी लामबंद हो रहे है। पूर्व अध्यक्ष श्याम कृष्ण पांडे ने बताया की पूर्व पदाधिकारियों की बैठक तय की जा रही है, अगर विवि प्रशासन बात नहीं सुनता है तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने का समय लिया जाएगा। छात्र संघ का चुनाव बैन नहीं करना चाहिए कैम्पस को संभालने और चलाने के कई और तरीके हो सकते है। विवि प्रशासन को विचार करना चहिये यहाँ आंदोलन का बड़ा इतिहास रहा है आंदोलन के बल पर तमाम बड़ी जीत मिली है।
पांच साल तक बैन था चुनाव
गौरतलब है की इविवि में एकेडमिक काउंसिल ने इलाहाबाद विवि में छात्रसंघ समाप्त करने का फैसला किया है, जिसका विरोध हो रहा है 2005 में छात्र संघ उम्मीदवार की हत्या के बाद पांच सालों तक चुनाव बंद रहा 2012 में छात्र संघ की बहाली हुई जिसके बाद एक बार फिर अराजकता और हत्या अपराध को वजह बनाते हुए विवि प्रशासन की एकेडमिक काउंसिल ने चुनाव समाप्त करने की तैयारी की है। इविवि छात्र संघ का गौरव शाली इतिहास रहा है,ब्रिटिश काल में पहला बड़ा छात्र आंदोलन इलाहाबाद में हुआ जो आईसीएस की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए हुआ था, बता दें की पहले आईसीएस की परीक्षा देने के लिए लोगों को लंदन जाना होता था जिससे बहुत से लोग वंचित रह जाते थे। यह आंदोलन यहाँ से देश भर में गया जिसके कुछ समय बाद एशिया का पहला छात्रसंघ गठित हुआ।
1921 में हुई थी छात्र संघ की स्थापना
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ की स्थापना 1921 में हुई विवि के पहले अध्यक्ष 1923 में शिव गोपाल तिवारी निर्वाचित हुए। आजाद भारत की बात करें तो पहले अध्यक्ष नारायण दत्त तिवारी चुने गये थे।विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष रामाधीन सिंह कहते हैं,छात्र आंदोलनों की बात होती है तो राजनीतिक दलों का चेहरा उभर कर सामने आता है, छात्रनेता राजनितिक दलों का झंडा उठाये दिखते हैं। छात्र नेताओं पर हत्या, ठेकेदारी जैसे तमाम दाग लगे हैं। यह भी इस परंपरा को समाप्त करने का बड़ा कारण बन गया है। रामाधीन सिंह ने बताया की छात्रसंघ का गठन देश भर में नौजवानों की आवाज को बुलंद करने और एकजुट के लिए हुआ था। लेकिन छात्र संघ बड़ी साजिश का शिकार हो गया जिसका परिणाम सामने देखा जा रहा है।
छात्रसंघ नेताओं की साजिश का शिकार
रामाधीन सिंह कहते है की देश के लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए छात्र संघ से निकलने वाले नौजवान तेज़ी से अपनी पहचान देश भर में बना रहे थे हर राज्य में छात्रों का संगठन मजबूती से उभर रहा था। जो बड़े नेताओं को खटकने लगा छात्र नेता जेल जाकर आंदोलन में लाठियां खाकर सत्याग्रह करके देश में अपने को स्थापित कर रहे थे। जो राजनीतिक घरानों के लिए बड़ा खतरा था,उनके बच्चों से ज्यादा छात्र नेता सम्मान पाते थे। आने वाले समय में वह सांसद विधायक बन सकते हैं। अपनी राजनितिक विरासत अपने परिवार में चलाने के लिए छात्रसंघ के साथ बड़ा खेल हुआ और लिंगदोह की अगुवाई में कमेटी बनाई गई। इसकी सिफारिशें लागू हुईं। इसके मुताबिक छात्र परिषद गठन करने की भी बात थी। इससे आंदोलन कमजोर हुए छात्र नेता भविष्य तलाशने लगे कुछ पार्टी का झंडा उठा लियाए कुछ ठेकेदार हुए जिसका परिणाम आज सबके सामने है।
राजनीत में वंशवाद से नुकसान
रामाधीन सिंह आरोप लगाते हैं कि गाँव में प्रधान से प्रधानमंत्री तक सभी परिवारवाद को बढ़ावा देते रहे। आज छात्र राजनीति का एक ढांचा बचा है, जिसे सभी दल अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं। विवि प्रशासन अपनी मनमर्जी कर रहा है। छात्रसंघ जिस हालत में है उसका बड़ा फायदा पार्टियों को मिल रहा है यही उनका उद्देश्य था लेकिन आज के दौर में इसे कोई समझने वाला नही है। छात्र संघ में छात्रों की भलाई के आलावा सारा काम होता है।छात्र संघ पर बैन से लोकतंत्र नही टूटेगा लेकिन एक बड़ा उद्देश्य समाप्त हो जायेगा जिसके यह बनाया गया था ।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भले ही विश्वविद्यालय के छात्र नहीं रहे लेकिन उनको छात्र संघ ने मानद सदस्य सम्मान दिया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस छात्रसंघ भवन से मानद सदस्य रहे। आगे चल कर डॉ राम मनोहर लोहिया और अटल विहारी बाजपेयी को भी छात्र संघ का मानद सदस्य सम्मान दिया गया। पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, पूर्व उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन मदन मोहन मालवीय, यूपी के पूर्व सीएम पंडित गोविंद वल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा यहाँ छात्र रहे ।पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ,पूर्व पीएम चंद्रशेखर, नारायण दत्त तिवारी , गुलजारी लाल नंदा, पूर्व राज्यपाल डॉ राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी एमपी के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह, बिहार के पूर्व सीएम सत्येन्द्र नारायण सिन्हा छात्र संघ के पदाधिकारी रहे।