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देश के सबसे पुराने छात्रसंघ पर कब्जे के लिए यों नहीं होती जोर आजमाइश,यहाँ जीतने वालों ने फहराया है लाल किले पर तिरंगा

locationप्रयागराजPublished: Oct 02, 2018 05:25:46 pm

इविवि: छात्रसंघ चुनाव में भाजपा, सपा, कांग्रेस के छात्र संगठनों ने लगाई पूरी ताकत

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प्रसून कुमार पाण्डेय

इलाहाबाद: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव की प्रक्रिया तेजी पर है। नामांकन और दक्षता भाषण के बाद चुनावी सरगर्मी सातवें आसमान पर पंहुच चुकी है। छात्रसंघ भवन की प्राचीर से शपथ लेने के लिए छात्र नेताओं और संगठनों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। कभी देश की राजनीति की दिशा और दशा इविवि छात्रसंघ चुनाव के परिणाम से तय होती थी। हालांकि समय के साथ यहां भी बलदलाव हुए। कभी राष्ट्रीय मुद्दों को आवाज़ देने वाले विश्विद्यालय की राजनीति अब स्थानीय मुद्दों और जातीयता तक सिमटती जा रही है। वहीं, छात्र नेताओं के भी तेवर अलग हो गए हैं।

एक समय था जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव मे झंडा फहराने के लिए राजनीतिक दलों के दिग्गजों का जमावड़ा लगता था। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, वीपी सिंह जैसे शीर्ष नेता यहां का चुनाव परिणाम जानने के लिए आतुर रहते थे। छात्रसंघ में जीत दर्ज करने के लिए छात्र संगठनों से लेकर राजनीतिक दलों तक की ताकत लगाई जाती थी। देश की राजनीति में लोकतंत्र की नर्सरी कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ भवन की प्राचीर से खड़े होकर शपथ लेना शहर में लालकिले की प्राचीर से कम नहीं था। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल प्रतिष्ठित छात्रसंघ पर कब्जा जमाने के लिए पूरा जोर लगाए हैं।

समाजवादी छात्रसभा रही हावी
छात्रसंघ चुनाव में चार दशक तक कांग्रेस के छात्र संघठन एनएसयूआई का कब्जा रहा। 2005 में केंद्रीय दर्जा मिलने के बाद सात साल तक छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए। इसके बाद चुनाव शुरू हुए तो तस्वीर उलट रही। आलम यह है कि 2018 के छात्रसंघ चुनाव में कांग्रेस की छात्र इकाई को चुनाव लड़ने के लिए पूरे नेता नहीं मिले। वहीं छह दशक तक अध्यक्ष पद पाने के संघर्ष करने वाली एबीवीपी को 2017 में अध्यक्ष मिला। वहीं समाजवादी छात्रसभा ने सबसे ज्यादा समय कब्जा रखा।

इस बार सीधी टक्कर
पांच साल के आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो इस बार फिर समाजवादी छात्रसभा और विद्यार्थी परिषद में कांटे की टक्कर दिख रही है। हालांकि अब तक सबसे ज्यादा बार अध्यक्ष सपा से जीते हैं। 2012 में समाजवादी छात्र सभा से दिनेश यादव अध्यक्ष चुने गए। 2013 के छात्रसंघ चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप सिंह केडी ने कब्जा जमाया। 2014 में समाजवादी छात्र सभा ने फिर बाजी मारी और भूपेंद्र सिंह विश्वविद्यालय के अध्यक्ष बने। 2015 में इतिहास रचते हुए पहली महिला अध्यक्ष के तौर पर ऋचा सिंह ने शपथ ली। वहीं, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बैनर से रोहित मिश्रा 2016 में अध्यक्ष बने। छात्र सभा ने बाजी पलटी और 2017 में अवनीश यादव अध्यक्ष चुने गए।

इस बार इनके बीच दिख रही लड़ाई
माना जा रहा है कि इस बार के छात्र संघ चुनाव विद्यार्थी परिषद बनाम समाजवादी छात्र सभा है। दक्षता भाषण में समाजवादी छात्र सभा से अध्यक्ष प्रत्याशी उदय प्रकाश ने जोरदार समर्थन मांगा तो विद्यार्थी परिषद के अतेन्द्र सिंह ने भी जीत का दावा किया। निर्दलीय प्रत्याशी कुंवर साहेब सिंह भी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। हालांकि दावों के बीच यह दो दिन बाद तय होगा कि छात्रसंघ का अध्यक्ष कौन चुना गया।

तीन पूर्व प्रधानमंत्री छात्रसंघ से निकले
इविवि का छात्रसंघ एशिया का सबसे पुराने छात्रसंघ में से एक है। इसकी स्थापना 1921 में हुई। 1923 में सबसे पहले एसबी तिवारी अध्यक्ष चुने गए। 1949 अध्यक्ष चुने गए विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के आठवें प्रधानमंत्री बने। विश्वविद्यालय छ़ात्रसंघ के पदाधिकारी रहे चंद्रशेखर भी प्रधानमंत्री बने। गुलजारी लाल नंदा विश्वविद्यालय के महामंत्री रहे जो कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे।

इन दिग्गजों ने यहीं सीखा राजनीति का ककहरा
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री रहे दिवंगत भाजपा नेता मदनलाल खुराना ने भी इविवि की राजनीति की थी। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री सूर्य बहादुर थापा ने इस विश्वविद्यालय में कई सालों तक छात्र राजनीति की। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक भी इसी विश्वविद्यालय के छात्र रहे। पंडित मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन, यूपी के मुख्यमंत्री रहे पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, संघ प्रमुख राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, मप्र के मुख्यमंत्री हरे अर्जुन सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री रहे एसएन सिन्हा, और संविधानविद सुभाष कश्यप भी इविवि के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे हैं।

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