यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने मोहन स्वरूप व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने बहस की। इनका कहना है कि याचीगण 29 जून 1991 से लगभग 28 वर्षाें से वन विभाग में कार्यरत है। वन विभाग के नियमित कर्मचारियों के समान कार्य कर रहे हैं। तीन दशक से कार्य कर रहे दैनिक कर्मियों को अभी नियमित किया जाना बाकी है। याची का कहना है कि कर्मियों को 6ठें वेतन आयोग के अनुसार न्यूनतम वेतन दिया जा रहा था।
7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए मार्च 17 से 18 हजार न्यूनतम वेतन चतुर्थ श्रेणी के बराबर भुगतान किया जाता रहा और अचानक मार्च 18 से बढ़ा हुए न्यूनतम वेतन यह कहते हुए रोक दिया गया कि सातवां वेतन आयोग केवल नियमित कर्मचारियों पर ही लागू होता है। इसे याचिका में चुनौती दी गयी। सुप्रीम कोर्ट ने पुत्ती लाल केस में वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मियों को न्यूनतम वेतन देने का निर्देश दिया है।
क्षेत्रीय वन अधिकारी महोफ वन पीलीभीत ने वेतन रोकते हुए सरकार से सलाह मांगी है कि सातवां वेतन आयोग का लाभ दैनिक कर्मियों को मिलेगा या नहीं। सरकार का अनुमोदन न होने से बढ़ा हुआ न्यूनतम वेतन रोक दिया गया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रथम दृष्टया न्यूनतम वेतन न देना गलत है।
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