दुकानदार अंकित जाखेटिया ने पत्रिका को बताया कि मार्च 2017 में बीस रुपए प्रतिकिलो के दाम बढ़ाए गए थे। इससे मालपुए 360 रुपए प्रतिकिलो की दर से बेचे जा रहे थे। किसानों को मार्च में सात फेट के दूध के 41 रुपए प्रतिकिलो के भाव से दिए जाते थे। लेकिन बरसात नहीं होने से चारा महंगा हो गया। वहीं हाल ही में प्रदेश की गहलोत सरकार ने दो रुपए प्रति किलो का बोनस देने की घोषणा कर दी। इससे दूध महंगा हो गया।
अब दूधियों से उसी सात फेट का दूध 54 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदना पड़ रहा है।
इन सभी कारणों से चालीस रुपए प्रतिकिलो की दर से भाव बढ़ा दिए गए हैं तथा अब पुष्कर के साधारण चीनी की चाशनी से लबरेज देशी की रबड़ी के मालपुए 360 रुपए प्रतिकिलो से बढ़ाकर चार सौ रुपए प्रति किलो कर दिए गए हैं।
शुद्धता की चैकिंग का झंझट न इनकेम टैक्स का भय पुष्कर में देशी घी के नाम से बेची जा रही मिठाइयों की शुद्धता को लेकर स्वास्थ्य विभाग लम्बे समय से लापरवाह साबित हुआ है। यही कारण है कि माल्पुअओं व मावे से बनी मिठाइयों में मिलावट को लेकर सेम्पलिंग तक नही की गई है। दुकानदार अपने स्तर पर ही मैदा, दूध, घी, शक्कर मिलाना तय करते हैं। चाशनी से लबरेज मालपुए देशी घी के भाव बेच रहे हैं। वहीं आयकर विभाग की अनदेखी से व्यापारी मनमाने तरीके से बैठकें करके अपने स्तर पर भाव तय कर रहे हैं। सैकड़ों किलो रोजाना मालपुए व मिठाइयों बेचने पर भी एक बार भी सर्वे तक नहीं किया गया है।