अजमेर में दावेदार वरिष्ठ नेताओं के निष्ठावान कार्यकर्ता जो उनसे वर्षों से जुड़े हुए हैं वह आमजन या मतदाताओं से संपर्क साधने की बजाय अपने आकाओं के साथ तैयारियों में जुट गए हैं। हालाकि अभी टिकट को लेकर बहुत से स्तर पार करने हैं फिर भी दावेदार तो मजबूती से ताल ठोकर कर अप्रत्यक्ष रूप से खुद को तय मान कर चुनानी संपर्क में जुट गए हैं। अजमेर में संगठन स्तर पर आम कार्यकर्ताओं के लिए दो बड़ी परेशानियां सामने नजर आ रही है। संगठन स्तर पर अभी डीसीसी का विस्तार व ब्लॉक कार्यकारिणी का ऐलान होना है।
दोनों ही प्रदेश मुख्यालय से होंगे। डीसीसी में 93 व चारों ब्लॉक में 53 के अनुसार 212 कार्यकर्ताओं को कार्यकारिणी में जगह मिलनी है। कार्यकर्ता इस इंतजार में है। उन्हें दायित्व मिले तो वह काम में जुटे। इसी के चलते बूथ कमेटियों व वार्ड अध्यक्षों से जुड़ाव नहीं हो पा रहा है। मतदाताओं से जुडऩे के लिए यह दो महत्वपूर्ण कडिय़ां ही काम नहीं कर रही है।
लोकसभा जैसी उर्जा नहीं आ रही नजर कांग्रेस ने लोकसभा उपचुनाव में जिस प्रकार जिला संगठन स्तर से लेकर वार्ड तक कड़ी से कड़ी जोड़ कर काम किया था और पार्टी को सफलता दिलाई थी वो जोश अब बिल्कुल नदारद है। ब्लॉक कार्यकारिणी नहींहोने से कार्यकर्ता सक्रिय नहीं हो रहा। वह इस बात का इंतजार कर रहा है कि उसे दायित्व मिले तो वह जुटे। इसी प्रकार डीसीसी का भी यही हाल है। प्रदेश आलाकमान अभी टिकिटों को लेकर व्यस्त राजनीतिक हल्कों में चर्चाहै कि प्रदेश स्तर पर इस समय टिकिटों को लेकर मंथन चल रहा है ऐसे में संगठन के काम सुस्त पड़ गए हैं।
जानकारों का कहना है कि संगठन को सक्रिय करने के लिए प्रदेश आलाकमान को जिले के बकाया कामों को जल्द पूरा करना होगा। जो घोषणाएं या ऐलान करना है वह होने के बाद ही आम कार्यकर्ता चुनाव में जुटेगा ऐसा लगता है।
प्लीज करवा दीजिए ये काम शोध करने के इच्छुक विद्यार्थियों को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय की पीएचडी प्रवेश परीक्षा का इंतजार है। विश्वविद्यालय कार्यक्रम बनाने में जुटा है। कुलपति की मंजूरी मिलने के बाद परीक्षा के आवेदन लेने शुरू होंगे।
पहले कोर्स वर्क बनाने में देरी हुई यूजीसी के निर्देश पर सभी विश्वविद्यालयों ने देश में वर्ष 2009-19 से पीएचडी प्रवेश परीक्षा कराना शुरू किया। इसमें महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय भी शामिल है। विश्वविद्यालय ने वर्ष 2010, 2011, 2015 और 2016 में परीक्षा कराई। यूजीसी के प्रतिवर्ष परीक्षा कराने के निर्देशों की यहां कभी पालना नहीं हुई। पहले कोर्स वर्क बनाने में देरी हुई।
फिर कोर्स वर्क को लेकर कॉलेज और विश्वविद्याल में ठनी रही। कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी के प्रयासों से पीएचडी के जटिल नियमों में बदलाव हुए। विश्वविद्यालय ने 2015 और 2016 में परीक्षा कराई। काफी प्रयासों के बाद 2017 में परीक्षा कराई गई।
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