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पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी सोनल को नफरत है ‘बेचारी शब्द से

locationअहमदाबादPublished: May 22, 2019 10:42:54 pm

९० फीसदी विकलांग युवती १७ देशों में कर चुकी हैं भारत का प्रतिनिधित्वकई मेडल दिलाएं हैं देश की झोली में

Para Table Tennis Player

पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी सोनल को नफरत है ‘बेचारी शब्द से

अहमदाबाद. दोनों पैर और एक हाथ लकवे (शरीर का ९० फीसदी हिस्सा विकलांगता) का शिकार होते हुए भी सोनल पटेल ने पैरा टेबल टेनिस में कमाल किया है। यह युवती १७ देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। कई मेडल देश को दिलाए भी हैं। सोनल ने एशियन गेम में गजब का प्रदर्शन कर रजत पदक जीता। उनका दावा है कि पैरा टेबल टेनिस में देश को यह पहला अवार्ड हांसिल हुआ है। उन्हें बेचारी शब्द से नफरत है। वे कहती भी हैं कि उन्हें कोई बेचारी न समझे।
अहमदाबाद जिले की विरमगाम तहसील के चणोथिया गांव निवासी सोनल पटेल का पूरा ध्यान अब २०२० में टोक्यो में होने वाले ऑलम्पिक गेम पर है। जिसकी तैयारी और रेंकिंग के लिए अगले माह इजिप्त में होने वाले टेबल टेनिस टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगी। पिछले वर्ष एशियन गेम में देश के लिए सिल्वर पदक दिलाने वाली सोनल वर्ष २०१३ में इजिप्त में खेले गए पैरा टेबल टेनिस में स्वर्ण पदक जीत चुकी है। पैरा टेबल टेनिस में फिलहाल देश में नंबर वन रेंंकिंग का दावा करने वाली सोनल का कहना है कि एशियन कप के दौरान उन्हें देश में सबसे पहले सिल्वर पदक मिला था। वर्ष २०१७ में राष्ट्रपति ने भी उन्हें बेस्ट स्पॉर्टपर्सन का अवार्ड प्रदान किया। सोनल के अनुसार काफी बुरा लगता है जब उन्हें कोई बेचारी कहता है या समझता है। हालांकि अब ‘बेचारीÓ शब्द उनकी उपलब्धियों में कहीं गुम हो गया है। जब वे गांव में रहती थीं तो लोग उन्हें दया भाव से देखते थे और कोसते भी थे कि जीवन भर माता-पिता पर बोझ बनकर रहेगी। अब सोनल जब कभी गांव जाती है तो लोग उन्हें गांव की शान समझते हैं।

प्रति दिन आठ घंटे पति कराते हैं अभ्यास
दिव्यांगों के हित में काम करने वाली संस्था ब्लाइंड पीपुल्स एसोसिएशन (बीपीए) में वर्ष २००९ में आईटीआई में प्रवेश लिया था। उस दौरान दिव्यांगों के लिए होने वाले खेल में से उन्होंने पेरा टेबल टेनिस को चुना था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस खेल के प्रति उन्हें ऐसी रुची है कि प्रतिदिन सात से आठ घंटे तक प्रेक्टिस करती हैं। ३१ वर्षीय सोनल के पति रमेश चौधरी प्रेक्टिस में उनका साथ देते हैं। रमेश भी दोनों पैरों से विकलांग हैं। पालनपुर के रहने वाले चौधरी पैरा टेबल टेनिस में उनके साथ ऑलम्कि गेम्स में (पुरुष) भारत का नेतृत्व करेंगे।
बीपीए से मिला प्लेटफार्म
यदि बीपीए में प्रवेश नहीं लिया होता तो संभवत: उन्हें यह मुकाम नहीं मिलता। सत्रह देशों में खेलने का मौका मिला है वह बीपीए की ही देन है। यही कारण है कि अब भी प्रेक्टिस बीपीए परिसर में ही रहकर की जाती है।

-सोनल पटेल, पेरा टेबल टेनिस खिलाड़ी


दिव्यांगों के प्रति बदले सोच
आमतौर पर समाज में दिव्यांगों के प्रति ऐसी सोच होती है कि दोनों पैरों से, हाथों से या नेत्रों से विकलांग लोग आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यदि ऐसी सोच के बजाए समाज उनका आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करे तो काफी बदलाव आ सकता है। आज बीपीए में कई ऐसे लोग हैं जो दिव्यांग होने के बावजूद बहुत आगे निकल गए हैं।
-डॉ. भूषण पुनानी, निदेशक बीपीए

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