अहमदाबाद. औद्योगिक इकाईयों के प्रदूषित जल का उपयोग कर भी अब शुद्ध सब्जियां और धान की पैदावार की जा सकती है। इतना ही नहीं, किसी रसायन का उपयोग किए बिना पैदावार में २० प्रतिशत तक की वृद्धि भी की जा सकेगी।
गांधीनगर स्थित भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआईआई) के सेंटर फॉर एडवांसिंग एंड लॉन्चिंग एन्टरप्राइज (क्रेडल) के स्टार्टअप फायकोलिंक टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक डॉ. मयूर जोशी, अंकित पटेल और सुमित मोहंती ने जीवित सूक्ष्म शैवाल आधारित प्राकृतिक उत्पाद की मदद से प्रांरभिक तौर पर सफल प्रयोग किया है। अब वैज्ञानिक अध्ययन और प्रमाणन का कामकाज जारी है।
प्रारंभिक प्रयोग उत्तरप्रदेश के कानपुर शहर में चमड़े की फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित जल के जरिए धान की फसल की सिंचाई करने वाले किसान के खेत में और ईडीआई परिसर में किया गया। इसमें काफी हद तक सफलता पाई गई वहीं सकारात्मक परिणाम मिले।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के परतापुर गांव निवासी डॉ. जोशी बताते हैं कि शुरूआती प्रयोग में उन्हें काफी साकारात्मक परिणाम मिले, लेकिन अब इसका वैज्ञानिक अध्ययन व प्रमाणन कार्य चल रहा है।
पटेल बताते हैं कि इसके लिए उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कृषि विभाग की मदद ली जा रही है। लाइव माइक्रो एल्गी बेस्ड प्रोडक्ट का उपयोग कर उत्तरप्रदेश के कानपुर जिले में कानपुर के चमड़ा उद्योग से निकलने वाले प्रदूषित जल से किसान धान की फसल कर रहे हैं। इसमें से चुनिंदा किसानों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया जा रहा है।
गांधीनगर स्थित भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआईआई) के सेंटर फॉर एडवांसिंग एंड लॉन्चिंग एन्टरप्राइज (क्रेडल) के स्टार्टअप फायकोलिंक टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक डॉ. मयूर जोशी, अंकित पटेल और सुमित मोहंती ने जीवित सूक्ष्म शैवाल आधारित प्राकृतिक उत्पाद की मदद से प्रांरभिक तौर पर सफल प्रयोग किया है। अब वैज्ञानिक अध्ययन और प्रमाणन का कामकाज जारी है।
प्रारंभिक प्रयोग उत्तरप्रदेश के कानपुर शहर में चमड़े की फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषित जल के जरिए धान की फसल की सिंचाई करने वाले किसान के खेत में और ईडीआई परिसर में किया गया। इसमें काफी हद तक सफलता पाई गई वहीं सकारात्मक परिणाम मिले।
राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के परतापुर गांव निवासी डॉ. जोशी बताते हैं कि शुरूआती प्रयोग में उन्हें काफी साकारात्मक परिणाम मिले, लेकिन अब इसका वैज्ञानिक अध्ययन व प्रमाणन कार्य चल रहा है।
पटेल बताते हैं कि इसके लिए उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कृषि विभाग की मदद ली जा रही है। लाइव माइक्रो एल्गी बेस्ड प्रोडक्ट का उपयोग कर उत्तरप्रदेश के कानपुर जिले में कानपुर के चमड़ा उद्योग से निकलने वाले प्रदूषित जल से किसान धान की फसल कर रहे हैं। इसमें से चुनिंदा किसानों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया जा रहा है।
ऐसे काम करता है उत्पाद में सूक्ष्म शैवाल जीवित अवस्था में रहते हैं। बिना केमिकल के इसे प्राकृतिक तरीके से विकसित किया जाता है। यह द्रव (जेल) के रूप में रहता है। उत्पाद की बुवाई करने से पहले की जाने वाली परेवट के दौरान पानी में घोलकर खेत में डाला जाता है। एक एकड़ में एक किलो पर्याप्त है। इसे एक बार डालने पर छह महीने से एक वर्ष तक काम करता है।
ये सूक्ष्म जीवित शैवाल खेत में जाने के बाद मिट्टी में जीवित रहकर प्रदूषित पानी में रहने वाले सीओडी (कैमिकल ऑक्सिडेशन डिमांड), बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सिडेशन डिमांड) को खत्म करते हैं। अमोनिया और फास्फोरस भी खाते हैं। धातु आयन (हैवी मेटल) को क्षीण करते हैं। फसल के विकास में मददरूप बैक्टीरिया को मजबूत करते हैं। सूक्ष्म शैवाल में सूर्य के प्रकाश को लेकर ऑक्सीजन देने की शक्ति होती है। इसमें नाइट्रोजन ऑर्गेनिक होती है, जिससे पैदावार बढ़ाने में भी कारगर होता है।
ये सूक्ष्म जीवित शैवाल खेत में जाने के बाद मिट्टी में जीवित रहकर प्रदूषित पानी में रहने वाले सीओडी (कैमिकल ऑक्सिडेशन डिमांड), बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सिडेशन डिमांड) को खत्म करते हैं। अमोनिया और फास्फोरस भी खाते हैं। धातु आयन (हैवी मेटल) को क्षीण करते हैं। फसल के विकास में मददरूप बैक्टीरिया को मजबूत करते हैं। सूक्ष्म शैवाल में सूर्य के प्रकाश को लेकर ऑक्सीजन देने की शक्ति होती है। इसमें नाइट्रोजन ऑर्गेनिक होती है, जिससे पैदावार बढ़ाने में भी कारगर होता है।
शुद्ध सब्जी, धान मिलने से गंभीर बीमारियों से भी बचाव इस उत्पाद के जरिए ऐसे किसान पानी की कमी के चलते प्रदूषित पानी से सब्जी, धान की फसल सिंचित करते हैं। इससे सिंचित होने के चलते प्रदूषित कण सब्जियों व धान में आ जाते हैं। उन्हें खाने से यह हमारे शरीर के अंदर भी आ जाते हैं। जिससे कैंसर, डायरिया व अन्य कई प्रकार की गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है। ऐसे खतरे को कम किया जा सकता है। इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा।
झांसी की झील, मौसम नदी,अलीगढ़ के एक तालाब कर चुके हैं शुद्ध ईडीआईआई क्रेडल की मदद से विकसित इस स्टार्टअप के जरिए विकसित सूक्ष्म शैवाल आधारित उत्पाद से उत्तरप्रदेश के झांसी की झील और अलीगढ़ के एक तालाब को प्रदूषण मुक्त कर चुके हैं। महाराष्ट्र की मौसम नदी भी शुद्ध कर चुके हैं। इन्हें वाइब्रेंट गुजरात समिति में अवार्ड भी मिल चुका है। बीआईआरएसी से ५० लाख, गुजरात सरकार से २० लाख और एक निजी बैंक से 21 लाख रुपए की आर्थिक मदद भी प्राप्त कर चुके हैं।