मौत के बाद भी कहे अमानवीय शब्द आयोग ने इस मामले में पूरी तरह मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. जयेश पटेल का शराब पी हुई अवस्था में अस्पताल आकर बच्ची को जांचकर उसे मृत घोषित करना अनुचित है। इतना ही नहीं, बच्ची की मौत के बाद ‘पिक्चर खत्म हो गया, ले जाओ’ और ‘जाओ, जाकर पोस्ट मार्टम करा लो’ जैसी अमानवीय, असंवेदनशील शब्द कहना चिकित्सकीय व्यवसाय के लिए लांछन समान है। यह टिप्पणियां यह बताती है कि चिकित्सक ने बच्ची की मौत के बाद मृतक व उसके परिवार की गरिमा का सम्मान नहीं किया। इस तरह इस प्रकरण में मानव अधिकार और बच्ची की गरिमा का उल्लंघन किया गया।
आयोग के मुताबिक शराब पीए हुए वरिष्ठ चिकित्सक का आचरण तथा जिन परिस्थितियों में बच्ची को अस्पताल प्रशासन की ओर से दो दिनों तक गंभीरता से नहीं लिया गया, यह गरीब व कमजोर वर्ग के मरीजों के प्रति हीन भावना दर्शाती है। सार्वजनिक अस्पताल के चिकित्सकों व स्टाफ को मृतक के परिजनों के साथ संवेदना दिखाने की जरूरत होती है, लेकिन जिस हिसाब से इनके साथ आचरण किया गया, वह मानव अधिकार की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्ची के पिता दो दिनों से अपनी बच्ची के उपचार को लेकर परेशान थे। सांस की समस्या से ग्रस्त होने के बावजूद अस्पताल प्रशासन की ओर से दो दिनों तक बच्ची को घर भेजा गया। हालांकि चिकित्सकों की चिकित्सकीय लापरवाही की बात नहीं मानते हुए भी यह पूरी तरह स्पष्ट है कि बच्ची की जिंदगी को तब तक गंभीरता से नहीं लिया गया जब तक सब कुछ खत्म हो गया था। यह विपदा को समय पर ध्यान से उपचार देकर टाला जा सकता था।
आयोग ने कहा कि चिकित्सक का शराब पीकर अस्पताल आना काफी चौंकाने वाला है। यदि कोई वीआईपी मरीज होता तो चिकित्सक शराब पीकर आने की हिमाकत करता?
आयोग के मुताबिक शराब पीए हुए वरिष्ठ चिकित्सक का आचरण तथा जिन परिस्थितियों में बच्ची को अस्पताल प्रशासन की ओर से दो दिनों तक गंभीरता से नहीं लिया गया, यह गरीब व कमजोर वर्ग के मरीजों के प्रति हीन भावना दर्शाती है। सार्वजनिक अस्पताल के चिकित्सकों व स्टाफ को मृतक के परिजनों के साथ संवेदना दिखाने की जरूरत होती है, लेकिन जिस हिसाब से इनके साथ आचरण किया गया, वह मानव अधिकार की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बच्ची के पिता दो दिनों से अपनी बच्ची के उपचार को लेकर परेशान थे। सांस की समस्या से ग्रस्त होने के बावजूद अस्पताल प्रशासन की ओर से दो दिनों तक बच्ची को घर भेजा गया। हालांकि चिकित्सकों की चिकित्सकीय लापरवाही की बात नहीं मानते हुए भी यह पूरी तरह स्पष्ट है कि बच्ची की जिंदगी को तब तक गंभीरता से नहीं लिया गया जब तक सब कुछ खत्म हो गया था। यह विपदा को समय पर ध्यान से उपचार देकर टाला जा सकता था।
आयोग ने कहा कि चिकित्सक का शराब पीकर अस्पताल आना काफी चौंकाने वाला है। यदि कोई वीआईपी मरीज होता तो चिकित्सक शराब पीकर आने की हिमाकत करता?
सामान्य बुखार से दो दिनो में हो गई मौत! मामले के अनुसार इस वर्ष 9 जनवरी को रूही को गंभीर अवस्था में एल. जी. अस्पताल लाया गया। ओपीडी के चिकित्सकों ने बताया कि बच्ची को सामान्य बुखार है। दो सिरप बताए जाने के बाद बच्ची को घर ले जाने को कहा गया। स्थिति नहीं सुधरने पर अगले दिन सुबह तीन बजे फिर से अस्पताल पहुंचा। तब चिकित्सकों ने स्टीम इन्हेलेशन दिया और एक्स रे किया। फिर बच्ची को सामान्य बताते हुए घर भेज दिया गया। इसी दिन सुबह 9 बजे फिर रूही के पिता अपनी बच्ची को अस्पताल लेकर पहुंचे। चिकित्सकों ने एक्सरे रिपोर्ट देखकर यूनिट-3 में दाखिल करने को कहा। इस पर रूही के पिता व चिकित्सकों के बीच बहस हुई। रूही के पिता ने चिकित्सकों से कहा कि रात को ही उसे तुरंत उपचार क्यों नहीं दिया गया। रूही के पिता के स्टाफ नर्स को पूछने पर यह बताया गया कि दवा दी गई और थोड़ी देर में स्थिति का पता चल जाएगा। इस समय डॉ. जयेश पटेल वहां उपस्थित था और बच्ची की उचित ढंग से उपचार करने के बाद वह चला गया। जब रूही के पिता ने बच्ची के बारे में पूछा तो डॉ. पटेल कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल गया। शाम चार बजे बच्ची की स्थिति और ख्रराब हो गई। अस्पताल के स्टाफ ने बच्ची को पीडियाट्रिक आईसीयू में रेफर कर दिया और चिकित्सकों को बुलाया गया, लेकिन किसी भी चिकित्सक ने बच्ची का उपचार नहीं किया। रात आठ बजे बच्ची की स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। जूनियर चिकित्सक ने बच्ची को वेंटिलेटर पर रखा और डॉ. जयंत पटेल को तुरंत बुलाया। आधे घंटे बाद डॉ. पटेल शराब पी हुई अवस्था में पहुंचे और बच्ची को मृत घोषित कर दिया। यही नहीं, बड़े ही असंवेदनशील तरीके से बात करते हुए मृत बच्ची के मुंह से पाइप हटा दिया।