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टीटीजेड की बैठक में केशो मेहरा ने रखे तथ्य तो अफसर बगलें झांकने लगे, आगरा मेट्रो को भी अनुमति नहीं दी, देखें वीडियो

locationआगराPublished: Jun 10, 2019 08:55:42 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

टीटीजेड को आगरा, मथुरा, हाथरस, फिरोजाबाद और भरतपुर (राजस्थान) जिलों के संबंध में तमाम निर्णय लेने का अधिकार है। खास तौर पर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से।

Kesho mehra

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आगरा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित ताज ट्रेपेजियम जोन प्रदूषण- टीटीजेड (निवारण तथा नियंत्रण) प्राधिकरण की 47वीं बैठक मंडलायुक्त सभागार में हुई। काफी दिनों से इस बैठक का इंतजार था। बैठक में जब गैर सरकारी सदस्य और पूर्व विधायक केशो मेहरा ने नियम, परिनियम, शासनादेश के साथ तथ्य रखे तो अधिकारियों पर कोई जवाब नहीं सूझा। इसके बाद केशो मेहरा ने तय किया है कि वे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से मिलकर तथ्य रखेंगे। उन्हें महसूस हुआ है कि टीटीजेड कोई निर्णय नहीं लेना चाहता है।
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नहीं लिया कोई निर्णय

टीटीजेड को आगरा, मथुरा, हाथरस, फिरोजाबाद और भरतपुर (राजस्थान) जिलों के संबंध में तमाम निर्णय लेने का अधिकार है। खास तौर पर पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से। उद्योग बंद कराना है, कोयला आधारित भट्ठियां बंद करानी हैं तो टीटीजेड सक्रिय भूमिका निभाता है। जब हवाई अड्डा निर्माण, मेट्रो, आगरा बैराज आदि के संबंध में अनुमति की बात आती है तो अधिकारी पीछे हट जाते हैं। इन मुद्दों पर जब केशो मेहरा ने तथ्यात्मक विवरण रखा तो भी टीटीजेड प्राधिकरण के अध्यक्ष एवं मंडलायुक्त अनिल कुमार ने कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया। पर्यावरण मंत्रालय से बात करने की कहते रहे।
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आगरा मेट्रो के लिए भी अनाप्त्ति नहीं दी

बैठक में आगरा मेट्रो के लिए अनुमति लेने के लिए लखनऊ से अधिकारी आए। टीटीजेड प्राधिकरण ने उनसे कुछ सूचनाएं मांगीं हैं। इस बारे में केशो मेहरा और उमेश शर्मा का कहना था कि स्मार्ट सिटी के अंतर्गत मिट्टी के तमाम कार्य हो रहे हैं, कोई अनुमति नहीं है। आगरा मेट्रो के लिए भी इसी तरह से काम किया जा सकता है। आगरा मेट्रो के लिए अनापत्ति दी जाए। इसके बाद आगरा मेट्रो के लिए निर्माण स्थल की स्मारकों से दूरी के बारे में जानकरी मांगी। केशो मेहरा ने यह भी कहा कि आगरा बैराज क्यों नहीं बनाया जा रहा है जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है।
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सिविल एन्क्लेव और उद्योगों के लिए सॉलिड तर्क

आगरा के ग्रामीण क्षेत्र धनौली/बल्हेरा/अभयपुरा में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा प्रस्तावित नए सिविल एनक्लेव के निर्माण के लिए टीटीजेड प्राधिकरण की अनुमति एवं क्लीयरेंस का प्रस्ताव केशो मेहरा ने रखा। उन्होंने अवगत कराया कि 29 अप्रैल, 2019 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, इन्दिरा पर्यावरण भवन, नई दिल्ली में राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा की अध्यक्षता में बैठक हुई थी। इसमें सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सीके मिश्रा ने अवगत कराया था कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार एनवायरमेंटल इम्पेक्ट असेसमेंट रिपोर्ट प्राप्त हो गई है। इसे सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया गया है। यह रिपोर्ट सकारात्मक है। इसकी रिपोर्ट सदस्यों को दी जाए। उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी, आगरा द्वारा नामित अधिकारी की अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा छह सितम्बर, 2018 को जनसुनवाई की गई थी। इस दौरान अवगत कराया गया कि एयरपोर्ट का निर्माण उद्योग की श्रेणी में नहीं आता है, बल्कि पब्लिक के इस्तेमाल के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर है, अतः इस पर उद्योग के नियम लागू नहीं होते हैं। पर्यावरण मंत्राय ने भी 17 जनवरी, 2019 की बैठक में इसे ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ की श्रेणी में रखा है। जिन इकाइयों में किसी कच्चे माल से कोई नया उत्पाद नहीं बनाया जाता है, उसे उद्योग की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। आगरा में सिविल एनक्लेव, रोड निर्माण, हाईवे, सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन्स, होटल, हॉस्पिटल आदि उद्योग की परिभाषा के अनुसार उद्योग की श्रेणी में नहीं आते हैं। अतः इन्हें उद्योग की श्रेणी से हटाकर नई श्रेणी ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ में रखा जाए।
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सिविल एनक्लेव की तत्काल अनुमति दी जाए

केशो मेहरा ने कहा कि एक ओर पर्यावरण मंत्रालय ने सिविल एनक्लेव के निर्माण को इन्फ्रास्ट्रक्चर श्रेणी में माना है, वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा जारी उद्योगों की सूची में एयरपोट्र्स एवं कॉमर्शियल एयरस्ट्रिप्स को क्रमांक 23 पर लाल श्रेणी में रखा है, जिससे भ्रम उत्पन्न होता है। सिविल एनक्लेव, आगरा का निर्माण क्योंकि भारत सरकार के अधीन भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा किया जा रहा है, अतः सिविल एनक्लेव का निर्माण उपरोक्त वर्णित श्रेणी के अनुसार ‘उद्योग’ की श्रेणी में नहीं आता है, यह ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर’ की श्रेणी में आता है। इसलिए टीटीजेड प्राधिकरण सिविल एनक्लेव के निर्माण हेतु अनापत्ति और क्लियरेंस प्रदान करे।
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उद्योगों पर तदर्थ रोक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन

केशो मेहरा ने कहा कि ताज ट्रपेजियम जोन में नए उद्योगों की स्थापना एवं स्थापित उद्योगों की क्षमता बढ़ाने पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय आठ सितम्बर, 2016 को लगाई गई है। पर्यावरण (संरक्षण) नियमावली 1986 व सिविल रिट याचिका संख्या 13381/1984, एम0सी0 मेहता बनाम भारत सरकार व अन्य में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 30 दिसम्बर, 1996 को दिए गए निर्णय के विरुद्ध है, इसलिए इसे प्रभावी न माना जाए।पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, इन्दिरा पर्यावरण भवन, नई दिल्ली में राज्यमंत्री डॉ. महेश शर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक में सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सी0के0 मिश्रा ने अवगत कराया कि ताज ट्रपेजियम जोन में लगाई गई तदर्थ रोक केवल बैठक में लिया गया निर्णय है, मंत्रालय द्वारा कोई भी अधिसूचना निर्गत नहीं की गई थी। जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत मांगी गई जानकारी के उत्तर में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि मंत्रालय द्वारा तदर्थ रोक के सम्बन्ध में कोई गजट नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया। तदर्थ रोक के कारण ताज ट्रपेजियम जोन में उद्योग नहीं लग पा रहे हैं और न ही स्थापित उद्योगों की क्षमता में वृद्धि हो पा रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय 30 दिसम्बर, 1996 में उद्योगों के विकास को राष्ट्र की आर्थिक प्रगति के लिए अत्यन्त आवश्यक बताया है, साथ ही पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर दिया है। इसलिए तदर्थ रोक को प्रभावी न माना जाए।
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उद्योग लगाने और क्षमता बढ़ाने पर रोक नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने 22 मार्च, 2018 ताज ट्रपेजियम जोन में status quo (यथास्थिति) आदेश उस अवधि तक के लिए दिया था, जब तक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विजन डॉक्युमेंट न्यायालय में प्रस्तुत न किया जाए। ताज ट्रपेजियम जोन प्रदूषण (निवारण और नियन्त्रण) प्राधिकरण की 46वीं बैठक में अवगत कराया गया है कि विजन डॉक्युमेंट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड के माध्यम से 21 फरवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में status quo (यथास्थिति) स्वतः समाप्त हो गया है। इसलिए टीटीजेड घोषित करे कि ताज ट्रपेजियम जोन में नए उद्योग लगाने एवं स्थापित उद्योगों की क्षमता बढ़ाने पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं है।
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पीएम10 व पीएम2.5 की मात्रा कम करने के लिए अनुपालन हो

श्री मेहरा ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार ने पीएम10 और पीएम2.5 की मात्रा निर्धारित मानकों के अन्तर्गत रहे, इस हेतु 25 जनवरी, 2018 को भारत का राजपत्र (गजट नोटिफिकेशन) निर्गत कर पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 की धारा 6 एवं 25 के द्वारा तदर्थ शक्तियों का प्रयोग करते हुए नियमावली में संशोधन किया है। इसके बिन्दु क्रमांक 106(प) में लिखा है, ”पर्याप्त धूल उपशमन उपायों के बिना मिट्टी की खुदाई नहीं की जाएगी।“ 106(पअ) में लिखा है, ”कोई भी मिट्टी या रेत का निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट या धूल वाली अन्य कोई निर्माण सामग्री बिना ढके नहीं छोड़ी जाएगी। इसका अनुपालन किया जाना चाहिए।
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