कंधों पर थी बड़ी जिम्मेदारी
फतेहपुरा गांव निवासी राजेंद्र के कंधों पर पूरे परिवार का जिम्मा था। उनके घर में उनके अलावा बूढ़े मां बाप, तीन बेटियां, एक बेटा व पत्नी हैं। राजेंद्र को वर्ष 2004 में प्राथमिक विद्यालय फतेहपुरा में शिक्षामित्र के पद पर नियुक्ति मिली थी। वर्ष 2014 में समायोजन के बाद प्रथम बैच में विकास खंड फतेहाबाद में वे शिक्षामित्र से शिक्षक के पद पर समायोजित किए गए थे। उस समय उनका वेतनमान 39 हजार रुपए प्रतिमाह हो गया था। लेकिन वर्ष 2017 में फिर से शिक्षामित्र बना दिए गए। वेतनमान सिर्फ दस हजार रुपए प्रतिमाह रह गया। इसके बाद भी जिंदगी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी। लेकिन पिछले तीन माह से वेतन न मिलने के कारण उनकी हिम्मत टूट गई थी। वे काफी तनाव में चल रहे थे। लंबे समय से जेब खाली होने के कारण उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने जिंदगी से तंग आकर मौत की राह को चुन लिया।
फतेहपुरा गांव निवासी राजेंद्र के कंधों पर पूरे परिवार का जिम्मा था। उनके घर में उनके अलावा बूढ़े मां बाप, तीन बेटियां, एक बेटा व पत्नी हैं। राजेंद्र को वर्ष 2004 में प्राथमिक विद्यालय फतेहपुरा में शिक्षामित्र के पद पर नियुक्ति मिली थी। वर्ष 2014 में समायोजन के बाद प्रथम बैच में विकास खंड फतेहाबाद में वे शिक्षामित्र से शिक्षक के पद पर समायोजित किए गए थे। उस समय उनका वेतनमान 39 हजार रुपए प्रतिमाह हो गया था। लेकिन वर्ष 2017 में फिर से शिक्षामित्र बना दिए गए। वेतनमान सिर्फ दस हजार रुपए प्रतिमाह रह गया। इसके बाद भी जिंदगी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी। लेकिन पिछले तीन माह से वेतन न मिलने के कारण उनकी हिम्मत टूट गई थी। वे काफी तनाव में चल रहे थे। लंबे समय से जेब खाली होने के कारण उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने जिंदगी से तंग आकर मौत की राह को चुन लिया।