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पुत्र प्राप्ति के लिए होती है पूजा, जानिए पौष पुत्रदा एकादशी, मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि और कथा

locationआगराPublished: Jan 17, 2019 01:57:54 pm

पौष का महीना बहुत पावन माना जाता है, इस महीने में आने वाली एकादशियां, अमावस्या एवं पूर्णिमा का भी विशेष महत्व माना जाता है

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आगरा। पौष का महीना बहुत पावन माना जाता है, इस महीने में आने वाली एकादशियां, अमावस्या और पूर्णिमा का भी विशेष महत्व माना जाता है। पौष में शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि इस एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जिन्हें संतान होने में बाधाएं आती हैं उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। यह व्रत बहुत ही शुभ फलदायक है। मान्यता है कि इस दिन बैकुंठ का द्वार खुला होता है, जो लोग इस दिन व्रत करते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक शुक्ल का कहना है कि इस दिन की पूजा से मनचाही संतान प्राप्त होती है

पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारम्भ : 17 जनवरी 2019 को 00:03 बजे
एकादशी तिथि समाप्त : 17 जनवरी 2019 को 22:34 बजे

18 जनवरी को पारण (व्रत तोड़ने का) समय : 07:18 से 09:23

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय : 20:22
पौष पुत्रदा एकादशी का महत्व
एकादशी का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास व श्रावण मास में आने वाली पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखने और विधिवत पूजन करने वाले जातकों की गोद सूनी नहीं रहती। उन्हें संतान सुख जरूर प्राप्त होता है। यह एकादशी सभी पापों को नाश करने वाली होती है। इसके करने से किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौष पुत्रदा एकादशी की पूजा व व्रत विधि
सबसे पहले सुबह उठकर घर की सफाई करें और स्नान करें. फिर साफ वस्त्र धारण करें।
भगवान विष्णु के सामने घी का दीप जलाएं और व्रत करने का संकल्प लें।
मौसमी फल, फूल, तिल व तुलसी चढ़ाएं।
कथा का पाठ करें. आरती गाएं।
शाम को फल ग्रहण कर सकते हैं।
इस दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
एकादशी के दिन रात्रि में जागरण और भजन कीर्तन करें।
द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें
अंत में स्वयं भोजन करें
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नगर में राजा सुकेतुमान का शासन था। उनकी पत्नी का नाम शैव्या था। सालों बीत जाने के बावजूद संतान नहीं होने के कारण पति-पत्नी दुःखी और चिंतित रहते थे। इसी चिंता में एक दिन राजा सुकेतुमान अपने घोड़े पर सवार होकर वन की ओर चल दिए। घने वन में पहुंचने पर उन्हें प्यास लगी तो पानी की तलाश में वे एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी हैं और वहां ऋषि-मुनी वेदपाठ कर रहे हैं। पानी पीने के बाद राजा आश्रम में पहुंचे और ऋषियों को प्रणाम किया। राजा ने ऋषियों से वहां जुटने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे सरोवर के निकट स्नान के लिए आए हैं। उन्होंने बताया कि आज से पांचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है। जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है, उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। इसके बाद राजा अपने राज्य पहुंचे और पुत्रदा एकादशी का व्रत शुरू किया और द्वादशी को पारण किया। व्रत के प्रभाव से कुछ समय के बाद रानी गर्भवती हो गई और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। अगर किसी को संतान प्राप्ति में बाधा होती है तो उन्हें इस व्रत को करना चाहिए। व्रत के महात्म्य को सुनने वाले को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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