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मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजराती भाषा में वाद कार्यवाही का प्रस्ताव भेजा था, देखें वीडियो

locationआगराPublished: Jan 19, 2020 12:37:59 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

-हिन्दी से न्याय के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली के प्रांत अध्यक्ष घोषित
-वादकारी को यह जानने का मौलिक अधिकार कि वकील और न्यायाधीश ने क्या समझा

chandra shekhar Upadhyay

chandra shekhar Upadhyay

आगरा। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में फैसले हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में हों, इसके लिए न्यायविद चन्द्रशेखर उपाध्याय पिछले तीन साल से ‘हिन्दी से न्याय’ देशव्यापी अभियान चला रहे हैं। हिन्दी माध्यम से एलएलएम करने वाले वे पहले भारतीय विद्यार्थी हैं। आगरा आए चन्द्रशेखर उपाध्याय ने बताया कि संविधान की धारा 348 में संशोधन हो जाए तो सारी समस्या समाप्त हो जाएगी। उन्होंने बताया कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र सरकार को 2012 में प्रस्ताव भेजा था कि गुजरात हाईकोर्ट में गुजराती भाषा में काम हो। अब वे भारत के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन इस विषय में कुछ हुआ नहीं है। हमारा कहना है कि गुजरात में ही प्रारंभ करा दें। फिर प्रतीक के तौर पर हम सारे देश में लागू करा देंगे।
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तीन प्रांतों के अध्यक्ष घोषित

उन्होंने बताया कि हिन्दी से न्याय के लिए उत्तर प्रदेश के प्रांत अध्यक्ष डॉ. देवी सिंह नरवार को नियुक्त किया है। एक कार्यकारी अध्यक्ष होगा। उत्तराखंड का अध्यक्ष धर्मेन्द्र डोडी को बनाया गया है। झुग्गीझोपड़ी निवासियों के लिए काम करने वाले गौतम रोहित को दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया है। जोधपुर में 25 हजार किसानों की सभा की है। किसानों ने कहा कि अंग्रेजी न पढ़ पाने के कारण बहुत समस्या हो रही है।
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दक्षिण भारत में संगठन का नाम दूसरा

उन्होंने बताया कि भारत के दक्षिण राज्यों में भी जा रहे हैं। दक्षिण भारत में संगठन का नाम हिन्दी एवं अन्य भारती भाषाओं से न्याय होगा। हिन्दी से न्याय हमारा बीजमंत्र है। बाकी पूर्ण मंत्र है। जिन भारतीय भाषाओं की लिपि हमारे पास है, उनके लिए भी संगठन काम कर रहा है।
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वादकारी का मौलिक अधिकार

चन्द्रशेखर उपाध्याय ने बताया कि हमारा कहना है कि भारत में 90 प्रतिशत वादकारी अपनी भाषा वाला है। वह संपत्ति बेचकर मुकदमा लड़ने आ रहा है। उसे यह जानने का मौलिक और विधिक अधिकार है कि न्यायालय में अधिवक्ता ने क्या कहा और न्यायाधीश ने क्या समझा तथा क्या निर्णय किया। ये अपनी भाषा में ही हो सकता है। हम आपसे ताज नहीं मांग रहे हैं। हम अंग्रेजी का विरोध नहीं कर रहे हैं। हम हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की बात कर रहे हैं। हमारा कोई दुराग्रह नहीं है।
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