जैनमुनि विहर्ष सागरः चातुर्मास आत्मा की शुद्धि के लिए होता है। धर्म करने के लिए होता है। चार माह कृषि और ऋषि के लिए महत्वपूर्ण है। वेद और पुराणों में यही बत आई है कि कृषि में से चार माह निकाल दें तो आजीविका का साधन गड़बड़ हो जाएगा। ऋषि-मुनि चार माह एक स्थान पर रुक जाते हैं, क्योंकि बारिश का मौसम होता है। जीव उत्पन्न हो जाते हैं। जीवों की हिंसा से बचने के लिए चार माह एक स्थान पर बैठकर अपना और लोगों का कल्याण करते हैं।
जैनमुनि विहर्ष सागरः यह बात बिलकुल सही है। आचार्यों ने कहा है कि ऐसा उपाय निकाला जाए, जिससे हमें सब चीज मिल जाए। अगर हम लौकिकता की चीज मांगेंगे तो जरूरी नहीं है कि साथ में धर्म मिल जाए। अगर हम धर्म मांगेंगे तो लौकिक चीज नियम से मिलती है।
जैनमुनि विहर्ष सागरः बिना कपड़े के रहने का लॉजिक है। कपड़ा वासना को ढाकने का, साधन होता है। कपड़ों की टेंशन है, धोने, रखने, सुखाने की, फट जाए तो सिलवाने की। कपड़े के लिए हमें समाज के सामने हाथ फैलाना पड़ेगा। इसलिए नो कपड़ा-नो लफड़ा।
जैनमुनि विहर्ष सागरः सर्दी से बचने के लिए चाहिए कम्बल। जिनके बास कम बल है, सर्दी और गर्मी उनको लगती है। जिनके पास बल ही बल है, उनके लिए किसी कम्बल या कपड़े की जरूरत नहीं होती है।
जैनमुनि विहर्ष सागरः साइंस भी इस बात को मानता है कि शरीर को चौबीस घंटे में एक बार भोजन और जल मिल जाए तो सदियों तक ऐसा रह सकता है। लोग बार-बार खाते रहते हैं इसलिए बीमारियां बढ़ गईं। रोग बढ़ गए। घरों में अशांति हो गई, क्योंकि रोगों ने घर बना लिया। पचाने की मशीन को आराम नहीं मिलता है। इसलिए आचार्यों ने कहा कि एक बार खाओ और आराम से शरीर से काम लेते रहो।
जैनमुनि विहर्ष सागरः पहले साधुगण जंगल में रहा करते थे। वे बिना सूचना के जंगल से आते थे। पहले घर-घर में भोजन शुद्ध बनता था। बाजार की चीजें नहीं लाते थे। स्वयं गेहूं पीसते थे। मसालों को लाकर स्वयं बनाते थे। हम लोग आलसी हो गए। पिसा आटा, पिसे मसाले बाजार से लाते हैं। अब तो सब्जी वाला ही काटकर देता है। मिठाई रेडीमेड आ गई हैं। बाजार से आने वाली चीजों मांसाहार है या नहीं, पता नहीं। धर्म भ्रष्ट हो रहा है। पहले हम इस सबसे बचे रहते थे। अब हर व्यक्ति को तैयारी करनी होती है इसका मतलब है कि शुद्ध नहीं खाते हैं। हमारा प्रयास है कि सब शुद्ध खाएं।
जैनमुनि विहर्ष सागरः हर व्यक्ति के पास एक ताजमहल है, जिसका नाम है आत्मा। अपन लोगों ने आत्मा के ताजमहल को देखने की दीक्षा ली है। बाहर की चीजें आँखों को सुकून देती हैं। जो चीज आँखों को सुकून देती है, उससे हमारे अंदर विकार बढ़ते हैं। तरह-तरह के जोक बनते हैं। आत्मा के ताजमहल से सुंदर दुनिया में कोई दूसरी चीज नहीं है।
जैनमुनि विहर्ष सागरः कपड़े वालों के बीच में नग्न रहना सबसे बड़ा चमत्कार है। सारी जिन्दगी कपड़ों वालों के बीच रहना और खुश रहना, यह भी चमत्कार है। खड़े होकर हाथ की अंजुली से एक बार ही भोजन करना चमत्कार है। सारी इंडिया में पैदल-पैदल विहार करना भी चमत्कार है।
जैनमुनि विहर्ष सागरः आगरा की धरती से मैं एक ही संदेश दूंगा कि संत, सड़क, कुंआ ये किसी का न हुआ। ये सभी के हैं। सारी दुनिया को मैं अपना मानता हूं। आप संतों में भी भेदभाव न करें। संतों को कोई जाति नहीं होती है। आप यह न सोचें कि ये जैन या मुसलमानों के संत हैं। संतों की वाणी अच्छी लगे तो उसे फॉलो करें। सारी दुनिया में संत ही हैं जो चार बातें ज्ञान की हमारे हित के लिए देते हैं। इसलिए संतों की जरूत है। मैं सारी दुनिया से कहूंगा कि हम कहीं भी रहें, लौकिकता कितनी ही आ जाए, लेकिन अपने लक्ष्य को न भूलें और लक्ष्य है हमारी आत्मा। बाहर की चमक-दमक यहीं छूट जाती है। मरने के बाद व्यक्ति अपने साथ कुछ नहीं ले जाता है। ले जाता है तो अपना शुभ व्यवहार, शुभ आचार, शुभ विचार। महापुरुषों के पदचिह्नों पर चलें और खुद को भी महापुरुष मानें।
जैनमुनि विहर्ष सागर का जन्म 7 मार्च 1970 को वीना (मध्य प्रदेश) में हुआ। मित्र और परिवार के सदस्य उन्हें बंटी भैया कहते थे। बचपन में शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। तीव्र बुद्धि के स्वामी हैं। 21 वर्ष की आयु में बंटी भैया आचार्य वीरसागर महाराज के संपर्क में आए। इसके बाद सब कुछ बदल गया। किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह शरारती बच्चा सबसे अधिक पूजित और महान जैन संत में से एक बन जाएगा। मुनिश्री अपने आध्यात्मिक विचारों को फैला रहे हैं। लोगों के जीवन को बदलने का श्रेय मुनिश्री को जाता है। उन्होंने “जियो और जीने दो” के एक आदर्श वाक्य के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। हँसमुख स्वभाव के हैं। लाखों लोग उनकी बात को शांतिपूर्वक सुनते हैं।