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25 जून, 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी। पहले तो कुछ लोग समझ ही नहीं पाए, लेकिन जब इसका प्रभाव पड़ना शुरू हुआ, तो लोगों के दिल डर से सहम उठे। पुलिस पूरी तरह निरंकुश हो चुकी थी। चाहे जिसे भी पकड़ लिया और जेल में बंद कर दिया। सरकार के खिलाफ बोलने वाले जेल में ठूंसे जा रहे थे। हर तरफ दहशत थी। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था।
25 जून, 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी। पहले तो कुछ लोग समझ ही नहीं पाए, लेकिन जब इसका प्रभाव पड़ना शुरू हुआ, तो लोगों के दिल डर से सहम उठे। पुलिस पूरी तरह निरंकुश हो चुकी थी। चाहे जिसे भी पकड़ लिया और जेल में बंद कर दिया। सरकार के खिलाफ बोलने वाले जेल में ठूंसे जा रहे थे। हर तरफ दहशत थी। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था।
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पत्रिका टीम ने लोकतंत्र सेनानी और जयपुर हाउस, आगरा निवासी संजय गोयल से बात की, तो उन्होंने बताया कि उस समय उनके घर से लोक संघर्ष नाम से अखबार छपता था। ये अखबार हाथ से लिखकर तैयार किया जाता था। इसे मोड़कर सुबह के समय बांटा जाता था। इस अखबार में बहुत सी खबर नहीं छपती थीं। एक पन्ने के अखबार को घर के आस पास, राजामंडी रेलवे स्टेशन और दुकानों के नीचे से डाल दिया करते थे।
पत्रिका टीम ने लोकतंत्र सेनानी और जयपुर हाउस, आगरा निवासी संजय गोयल से बात की, तो उन्होंने बताया कि उस समय उनके घर से लोक संघर्ष नाम से अखबार छपता था। ये अखबार हाथ से लिखकर तैयार किया जाता था। इसे मोड़कर सुबह के समय बांटा जाता था। इस अखबार में बहुत सी खबर नहीं छपती थीं। एक पन्ने के अखबार को घर के आस पास, राजामंडी रेलवे स्टेशन और दुकानों के नीचे से डाल दिया करते थे।
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संजय गोयल ने बताया कि 2 जनवरी, 1976 को विजय नगर कॉलोनी स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में परीक्षा चल रही थी। वे कक्षा सात के छात्र थे। उसी समय कक्षा के बच्चों ने परीक्षा बहिष्कार का ऐलान कर दिया। पेपर फाड़ते हुये 14 छात्र नारेबाजी करते हुए स्कूल से बाहर निकल आए। इस दौरान वहां आई पुलिस ने सभी 14 छात्र और तीन शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया। करीब सवा महीने तक वे जेल में रहे, उसके बाद 17 फरवरी, 1976 को वे जेल से छूट कर आए। उनके साथ उनके भाई महेश गोयल और विजय गोयल भी जेल गए थे।
संजय गोयल ने बताया कि 2 जनवरी, 1976 को विजय नगर कॉलोनी स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में परीक्षा चल रही थी। वे कक्षा सात के छात्र थे। उसी समय कक्षा के बच्चों ने परीक्षा बहिष्कार का ऐलान कर दिया। पेपर फाड़ते हुये 14 छात्र नारेबाजी करते हुए स्कूल से बाहर निकल आए। इस दौरान वहां आई पुलिस ने सभी 14 छात्र और तीन शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया। करीब सवा महीने तक वे जेल में रहे, उसके बाद 17 फरवरी, 1976 को वे जेल से छूट कर आए। उनके साथ उनके भाई महेश गोयल और विजय गोयल भी जेल गए थे।
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संजय गोयल ने बताया कि उस समय बचपन था, बहुत सी बातों को समझते नहीं थे, लेकिन हर बच्चे की जुबां पर नसबंदी का खौफ था। उन्होंने बताया कि वे स्वयं नहीं जानते थे कि ये होती क्या है। उस दौरान एक नारा भी दिया गया था, नसबंदी के तीन दलाल, इन्दिरा, संजय बंसीलाल। संजय गोयल ने बताया कि नसबंदी इस तरह हावी थी, कि पुलिस किसी को पकड़ ले और उसे छोड़ने के लिये बोला जाए, तो पुलिस साफ कहती थी कि पहले नसबंदी का एक केस लाओ, तो छोड़ दिए जाओगे।
संजय गोयल ने बताया कि उस समय बचपन था, बहुत सी बातों को समझते नहीं थे, लेकिन हर बच्चे की जुबां पर नसबंदी का खौफ था। उन्होंने बताया कि वे स्वयं नहीं जानते थे कि ये होती क्या है। उस दौरान एक नारा भी दिया गया था, नसबंदी के तीन दलाल, इन्दिरा, संजय बंसीलाल। संजय गोयल ने बताया कि नसबंदी इस तरह हावी थी, कि पुलिस किसी को पकड़ ले और उसे छोड़ने के लिये बोला जाए, तो पुलिस साफ कहती थी कि पहले नसबंदी का एक केस लाओ, तो छोड़ दिए जाओगे।