चित्रक अपमानित स्थिति में, क्रोध की ज्वाला में भरा घर पहुंचा। प्रतिशोध की ज्वाला में वह जल रहा था। चित्रक की पत्नी कुशला ने समझाया- स्वामी यह प्रतिशोध की अग्नि आपको नष्ट कर देगी। प्रतिशोध का सही तरीका मैं बतलाती हूं। भोजन के बाद कुशला ने सारी व्यवस्थाओं के साथ चित्रक को विद्याध्ययन के लिए वाराणसी भेज दिया। दस वर्ष तक कठोर तप, विद्याध्ययन और इंद्रियसंयम ने उन्हें आचार्य चित्रक बना दिया। उनकी ख्याति चारों और फैल गई।
आचार्य चित्रक प्रतिदिन पादुकाओं की पूजा करते थे। महाराज मिलने आते तो देखते कि उनकी पादुकाओं की पूजा हो रही है। एक दिन महाराजा ने पूछा- आचार्यप्रवर, पुरानी पादुकाएं, वह भी मेरे जैसे साधारण पुरुष की, आप क्यों इनकी पूजा करते हैं। चित्रक ने कहा- महाराज, आज मैं जो कुछ भी हूं, इनकी वजह से ही हूं। मैं प्रतिशोध में जल रहा था, जब आपने इन्हें मेरे सिर पर मारा था। पत्नी ने काशी भेजा, तब मैं आचार्य बन सका। महाराजा बहुत शर्मिन्दा हुआ और उन्होंने आचार्य चित्रक को राजपुरोहित बना दिया।