ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि अल्ट्रासाउंड से महिला व पुरुष दोनों के बांझपन का पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक बांझपन के इलाज में भी बेहद मददगार साबित हो रही है। अल्ट्रासाउंड गाइडेट ट्रीटमेंट से बांझपन दूर करने में काफी मदद मिल रही है। ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन डा. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया कि अल्ट्रासाउंड से बांझपन की विभिन्न वजहों जैसे फैलोपिन ट्यूब में रुकावट, अंडे का न बनना, छोटी या बड़ी बच्चेदानी का पता लगाया जा सकता है। इसी तरह टेस्टिस का छोटा या बड़ा होना और शुक्राणुओं के कम बनने के बारे में पता लगाया जा सकता है। जांच के बाद बांझपन का अल्ट्रासाउंड गाइडेड ट्रीटमेंट किया जा सकता है। इस विधि की मदद से महिलाओं में छोटी गांठ को नली डालकर महज पांच मिनट में निकालकर बांझपन का इलाज किया जा सकता है। मरीज सिर्फ दो घंटे बाद घर जा सकती है। इस दौरान डा. प्रशांत आचार्य, डा. गीता कॉलर, डा. पीके शाह, डॉ प्रतिमा राधाकृष्णन, डॉ. बीएस रामामूर्ति, डॉ. पीके शाह, डॉ. एस सुरेश, डॉ. सुशीला वविलाला आदि ने भी महत्वपूर्ण जानकारी दी।
गर्भ को बचाएं एक्टोपिक प्रेग्नेंसी सेः डॉ. ऋषभ बोरा
अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ डॉ. ऋषभ बोरा ने बताया कि जब भ्रूण गर्भाशय की जगह फैलोपिन ट्यूब में ठहर जाता है तो उसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। जितनी जल्दी इस परेशानी का पता चल जाए, इलाज उतने बेहतर तरीके से संभव है। यह एक ऐसा गर्भ है जो अपने स्थान से हटकर अन्य कहीं स्थापित हो जाता है, लेकिन इस तरह के गर्भ से अक्सर गर्भपात हो जाता है। लेकिन कई बार गर्भ का पूरा विकास भी हो जाता है, जो मां की जान के लिए खतरनाक होता है।
वरिष्ठ अल्ट्रासाउंड विशेषज्ञ डॉ. चंदर लुल्ला ने बताया कि जन्म से पहले भ्रूण में अनगिनत बीमारियों की पहचान और समय रहते उपचार संभव है। अल्ट्रासाउंड के जरिए समय रहते इनका पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा कई बार प्रसव के बाद नवजात का बेहतर इलाज भी किया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड के जरिए आकस्मिक रक्तस्त्राव, क्रोमोसोमल विसंगतियों की जांच, आंवल नाल की स्थिति, अपरिपक्व प्रसव आदि परेशानियों का पता लगाया जा सकता है।
डॉ. अनीता कॉल ने फीटल ब्रेन डैमेज और ब्रेन स्ट्रोक के बारे में जानकारी दी। कहा कि अल्ट्रासाउंड की मदद से कई मामलों में गर्भ में शिशु की दिमागी या सिर से जुड़ी समस्याओं का पता भी लगाया जा सकता है। सिर का सही आकार में न बनना, सिर में पानी भर जाना। इसके अलावा दिल से संबंधित आकार विकार, नाभि एवं पेट की सतह में विकार, गुर्दे, हाथ-पैरों की विषमताएं, क्रोमोसोमल विसंगतियां आदि समस्याओं का पता लगाया जा सकता है।
सम्मेलन का पहला दिन ज्ञानवर्धन और प्रशिक्षण के लिहाज से खास रहा। कुल आठ सत्रों में 46 व्याख्यान हुए। इसके अलावा लाइव वर्कशॉप, पेपर प्रजेंटेशन और पैनल डिस्कशन का दौर जारी रहा। डॉ. बीएस रामामूर्ति ने सेप्टम पर, डॉ. प्रतिमा राधाकृष्णन ने कार्डियक डिफेक्ट्स पर,
डॉ. क्रिस्टिन गबनर ने फीटल एचक्यू नई तकनीक पर, डॉ. ज्योति चैबल ने कार्डियक चैंबर पर, डॉ. माला सिबल ने आईओटीए पर, डॉ. विवेक कश्यप ने एंडोमेट्रिओमा, डॉ. मीनू अग्रवाल ने थिन एंडोमेट्रिअम पर, डॉ. अंकिता कौल ने फीटल स्ट्रोक पर, डॉ. भूपेंद्र आहूजा ने जेनेटिक एंड अल्ट्रासाउंड पर महत्वपूर्ण जानकारी दी। डॉ. अशोक खुराना और डॉ. प्रतिमा की देखरेख में प्रारंभिक गर्भावस्था का मूल्यांकन आदि विषय पर पैनल डिस्कशन हुए।