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Guru Purnima यहां जन्मे थे Radhasoami मत के प्रथम गुरु स्वामी जी महाराज, देखें वीडियो

यहां आज भी वह पवित्र स्थान है, जहां Soami Ji Maharaj साधना किया करते थे। उन्होंने ही 1861 में Basant Panchami के दिन राधास्वामी मत की स्थापना की।

आगराJul 09, 2017 / 02:35 pm

Bhanu Pratap

radhasoami swamiji maharaj

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

आगरा। आज Guru Purnima है। गुरु की पूजा का दिन। आज हम आपको ऐसे गुरु के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने Radhasoami Mat की स्थापना की। आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि Soami Ji Maharaj (सेठ शिवदयाल सिंह) आगरा के बदनाम मोहल्ले में जन्मे, लेकिन उन्होंने Agra का नाम पूरी दुनिया में कर दिया। राधास्वामी मत को मानने वाले पूरे विश्व में हैं। Kashmiri Bazar के निकट है पन्नी गली। यहां आज भी वह पवित्र स्थान है, जहां Soami Ji Maharaj साधना किया करते थे। उन्होंने ही 1861 में वसंत पंचमी के दिन राधास्वामी मत की स्थापना की।

swami gabh mandir
Dayalbagh Mandir के नाम से मशहूर Soami Bagh Mandir

1818 में हुआ था जन्म
पहले जानते हैं जीवन परिचय। Shivdayal Singh का जन्म 24 अगस्त, 1818 को Janmashtami के दिन हुआ था। उन्हें हिन्दी, अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू का ज्ञान था। Banda में नौकरी की, लेकिन उनका मन तो अध्यात्म की ओर था। नौकरी छोड़कर साधना में लग गए। 1861 में Basant panchami के दिन Radha Soami की स्थापना की। कहा जाता है कि उन्होंने पांच वर्ष की आयु में ही Surat Shabd Yog की साधना कर ली थी। इसके बाद वे स्वामी जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए। दुनियाभर में उन्हीं के शिष्य राधास्वामी मत को चला रहे हैं। स्वामी जी महाराज का निधन 15 जून, 1878 को हुआ। इनकी समाधि Soami Bagh (आगरा) में बनाई गई है। यह एक भव्य भवन है।


पन्नी गली में है ऐतिहासिक स्थल
पत्रिका टीम शनिवार की दोपहर में पन्नी गली पहुंची। यहां सिर्फ दुपहिया वाहन से ही पहुंचा जा सकता है। हमें मिले वरिष्ठ फोटो पत्रकार असलम सलीमी। वे उस भवन तक ले गए, जहां शिवदयाल सिंह का जन्म हुआ था। पहले तो यह सामान्य स्थान था, लेकिन अब बड़ा स्थल है। पत्रिका ने वह स्थान देखा, जहां स्वामी जी महाराज साधनारत रहा करते थे। इस स्थान की फोटोग्राफी मनाही है। यह स्थान स्वामीबाग के अधीन है। यहां इस समय काम चल रहा है। 2018 में स्वामीजी महाराज का 200 वां जन्मोत्सव है, जिसकी तैयारी चल रही है।

swamiji maharaj birth place
पन्नी गली, आगरा में गुरुद्वारा राधास्वामी, यहां जन्मे थे स्वामी जी महाराज

यहां आना जरूरी
पन्नी गली में इस स्थान को Gurudwara Radha Soami कहा जाता है। यहां कुछ सेवादार रहते हैं, जिन्हें सामान्य जानकारी ही है। एक सेवादार को तो सुनाई तक नहीं पड़ता है। असलम सलीमी ने बताया कि यहां Janmashtami और Basant Panchami पर भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसा कहा जाता है कि राधास्वामी मत के अनुयायियों की आगरा यात्रा तभी सफल होती है, जब वे यहां आते हैं।


बदनाम मोहल्ला था
Kashmiri Mohalla की स्थापना मुगलों के समय की गई थी। कहा जाता है कि कश्मीर से महिलाएं बुलाई गई थीं, जो नृत्य और संगीत विधा में पारंगत थीं। फिर इस संगीत साधना ने रूप ले लिया देहव्यापार का। कश्मीर बाजार का नाम आते ही ध्यान में Sex Worker आती हैं। इसी से सटी हुई है पन्नी गली। इतनी विषमताओं के बीच Soami Ji Maharaj रहे और सदैव साधना में लीन रहे। उनकी प्रकृति उत्तम थी, इस कारण आसपास के गंदे माहौल का कोई असर नहीं हुआ। रहीम दास ने जी ने कहा है- जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग, चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।

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द्वितीय आचार्य रहे हजूरी भवन में
Radha Soami mat के द्वितीय Acharya Rai Saligram Bahadur ‘Hazur Maharaj’ थे। वे स्वामी जी महाराज की सेवा में रहा करते थे। उन्होंने अपना साधना स्थल Hazuri Bhawan (पीपल मंडी, आगरा) को बनाया। वर्तमान Acharya Dadaji Maharaj (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं। 


नित्य-कर्म की जरूरत नहीं थी
Radha Soami Mat के अनुयायी डॉ. अमी आधार निडर बताते हैं परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज के पिता राय दिलवाली सिंह लेन-देन का व्यवसाय करते थे। परिवार के सभी सदस्य अत्यन्त धार्मिक एवं निष्ठावान भक्त थे। शैशव से ही गहन धार्मिकता उनका स्वभाव एवं वृत्ति थी। छह वर्ष की अल्पायु में उन्होंने योगाभ्यास शुरू कर दिया। इनका अधिकांश समय अभ्यास में व्यतीत होता था। वह स्वयं को एक छोटे कमरे में कई दिनों के लिए बन्द कर लेते और उन्हें नित्य कर्म की भी आवश्यकता अनुभव न होती थी। शीघ्र ही परम संत के रूप में उनकी ख्याति चहुँओर फैलने लगी।



Satguru की सेवा करने का आदेश
उन्होंने बताया कि Soami Ji के अनुसार कुल मालिक से आविर्भूत होने वाली आध्यात्मिक धारा इस संसार में मानव रूप में प्रकट हुई है तथा यह तब तक सक्रिय बनी रहेगी, जब तक सभी जीवों का उद्धार नहीं होगा। आध्यात्मिक धारा के मानवीयकरण की निरन्तर प्रक्रिया के कारण समय के सतगुरु का महत्व और स्थान इस मत में असाधारण होना आवश्यक है। इसीलिए स्वामीजी जीवों को आदेश देते हैं कि वक्त का सतगुरु ढूँढो और जब वह सौभाग्य से मिल जाए तो तन, मन और धन से उनकी सच्ची सेवा करो। वह पुनः कहते हैं कि ऐसे लोग, जो मोक्ष के इच्छुक हैं, सतगुरु के चरणों में एकनिष्ठ भक्ति और प्रेम धारण करें। केवल सतगुरु ही जीवों के अन्तर में पवित्र नाम उद्भासित कर सकते हैं, जिससे वे चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाएँ। 


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स्वामीजी महाराज का जन्मस्थल, पीपलमंडी, आगरा

भ्रम का निवारण ऐसे कर सकते हैं
डॉ. निडर ने बताया कि स्वामीजी की रचनाएँ ऐसे निर्देशों से पर्याप्त परिपूर्ण हैं कि जीवों को नियमित तथा आवश्यक रूप से ‘वक्त के सतगुरु’ की खोज करने के लिए क्या साधन अपनाने चाहिए? उन्होंने भक्त के लिए Satsang में सम्मिलित होने की आदर्श गुरु भक्ति की विधि भी वर्णित की है। वह कहते हैं कि सतसंग से भक्त के हृदय में प्रेम और भक्ति उपजेगी तथा मन निर्मल हो जाएगा। वह सतसंग को, संत सतगुरु अथवा साधु गुरु के संग और मालिक की वन्दना के लिए एकत्रित संगत के सन्दर्भ में परिभाषित करते हैं। सतसंग में भक्तजन तथा अन्य सभी संत सतगुरु के प्रवचन को सुनते हैं, जिससे उन्हें ‘वक्त गुरु’ की परख पहचान हो सकती है जिनसे वह अपनी समस्या का समाधान तथा भ्रम का निवारण कर सकते हैं तथा लौकिक एवं अलौकिक आचरण के लिए उचित निर्देश भी प्राप्त कर सकते हैं। नियमित सतसंग से प्रेमी-भक्त को सफल आन्तरिक अभ्यास करने का लाभ प्राप्त होगा। 

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