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कुर्बानी यानी अल्लाह की राह में कुर्बान करना, जानिये क्या है इस त्योहार की पूरी कहानी

locationआगराPublished: Aug 21, 2018 07:23:53 pm

ईद-उल-अजा यानी बकरीद का त्योहार भी मुसलमानों में अहम त्योहार माना जाता है।

आगरा। या अल्लाह हमें भी इस लायक बना कि हम भी अल्लाह की राह में जानवर की कुर्बानी कर सकें, यह उस गरीब इंसान की दुआ रहती है, जो अपने पड़ोस में रहने वाले उस परिवार को देखता है, जो इस लायक है कि वह अपने खुद एवं अपनी बीबी बच्चों के नाम पर बकरे, दुमबे, ऊंट, भैंस, बगैरह की कुर्बानी दे रहा है। ईदुल फितर के बाद ईद-उल-अजा यानी बकरीद का त्योहार भी मुसलमानों में अहम त्योहार माना जाता है। इस ईद-उल-अजा के मौके पर हर वह शख्स, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत के अनुसार रकम हो तो उस पर कुर्बानी फर्ज हो जाती है। अगर जो शख्स इस पर अमल करता है जो उस शख्स को अल्लाह की बारगाह में उस जानवर जिसकी कुर्बानी दी है के हर बाल के बदले उसको शबाव हासिल होता है।

कुर्बानी अल्लाह के मुकद्स खलील हजरत इब्राहीम और हजरत इस्माईल की उनके रब से ऐसी अजीम मोहब्बत की याद दिलाती है कि रजाए इलाही के लिए अपनी जान और अपनी औलाद की परवाह किये बगैर हजरत इब्राहीम अलैस्लाम का अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहस्लाम को उनकी वालिदा हजरत हाजरा के साथ सुनसान मैदान में छोड़ देना और फरिश्तों के जरिए हजरत इब्राहीम पर उनके बेटे हजरत इस्माईल की मोहब्बत के गलबा का इलजाम लगाए जाने की सूरत में अल्लाह पाक का दुनिया के सामने हजरत इब्राहीम की कल्बी कैफियत को वाशिगाफ करना कि मेरा खलील सिर्फ और सिर्फ मुझसे ही हकीकी मोहब्बत करता है और मेरी रजा व खुशनूदी के लिए अपनी औलाद की भी कुर्बानी दे सकता है और इब्राहीम का अपने बेटे हजरत इस्माईल को अपने खुदाई हुक्म से बाखबर फरमाना और सआदतमद बेटे हजरत इस्माईल का अल्लाह के नाम पर अपनी जिन्दगी का सरमाया कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाना और हजरत इस्माईल की जगह जन्नत से हुक्मे खुदाबन्दी फरिश्तों के सरदार जिब्राईल अलैह-स्लाम का दुम्बा (भेड़) लेकर हाजिर होना और दोनों अजीम हस्तियों का अपने खुदाई इम्तिहान में ऐसे कामयाब होना कि सुबह कमायत तक अल्लाह का उनकी यादगार कायम फरमाना और इन्सानों की जगह जानवरों की कुर्बानी का हुक्म देना हम उम्मेद-ए-मोहम्मदिया पर अल्लाह का बेपनाह अजीम एहसान है और साथ ही अल्लाह के मुकद्दस खलील हजरत इब्राहीम और हजरत इस्माईल की उनके रब से अजीज मोहब्बत ऐसी मोहब्बत जिसके मुकाबले में न तो बीबी की मोहब्बत कायम रह सकी और न ही बेटे की मोहब्बत की दीवार आड़े आ सकी। बल्कि यह साबित कर दिखाया कि मौहब्बत का तसव्वुर सिर्फ और रजाए-इलाही है और उसके बिल मुकाबिल जो चीजें हायल हो उसे राहे हक में कुर्बान कर देना चाहिये, ताकि कुर्बे खुदाबन्दी का हुसूल आसान हो और रहमतें इलाही के हकदार हो सके। इस्लाम मजहब के पांच रुकूनों में से एक हज भी है।
डाॅ. सिराज कुरैशी
कबीर पुरस्कार से सम्मानित
वरिष्ठ पत्रकार

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