यह भी पढ़ें हिन्दी के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाकर संविधान की धारा 348 में संशोधन तत्काल किया जाए, देखें वीडियो पत्रिकाः केन्द्र और प्रदेश में सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मत की है और आप भी संघ से जुड़े हैं, फिर भी हिन्दी के लिए मांग उठानी पड़ रही है, इसका क्या कारण है?
चन्द्रशेखर उपाध्यायः मैं लगातार पहले दिन से कह रहा हूं कि ‘हिन्दी से न्याय’ व्यक्ति निरपेक्ष, धर्मनिरपेक्ष, पंथ निरपेक्ष, गालीगलौज निरपेक्ष आंदोलन है। 1925 में नागपुर के मोहिते के बाड़े से विजयादशमी के दिन सांस्कृतिक राष्ट्रीय यज्ञ शुरू हुआ, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहते हैं। इसके अधिकांश प्रचारक केन्द्र और प्रांत की सरकारों में हैं। उनका बीज मंत्र हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान था। मैं तो हिन्दी की बात कर रहा हूं। यह प्रश्न उनसे किया जाना चाहिए कि वे हिन्दी के प्रति इतने अगंभीर क्यों हैं।
पत्रिकाः क्या आपने हिन्दी के लिए प्रधानमंत्री से समय मांगा है? चन्द्रशेखर उपाध्यायः प्रधानमंत्री के ओडीसी से पत्राचार चला है। नरेन्द्र मोदी ने सुरेश भाई सोनी को आश्वस्त किया कि एक वर्ष बाद दिल्ली आ रहा हूं, कुछ करूंगा इस पर। कुछ नहीं हुआ।
पत्रिकाः क्या राष्ट्रपति को कुछ अधिकार है इस मामले में? चन्द्रशेखर उपाध्यायः भारत की संसद करेगी। पत्रिकाः राज्यपाल को कोई अधिकार है? चन्द्रशेखर उपाध्यायः राज्यपाल को यह अधिकार है कि संपूर्ण वाद कार्यवाही हिन्दी में करा सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 348 में यह व्यवस्था है। मैं राज्यपाल और मुख्यमंत्री से भी मिल रहा हूं।
यह भी पढ़ें भारत का भविष्य: संघ का दृष्टिकोण समझाने बरेली पहुँचे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पत्रिकाः आगरा क्यों आए हैं? चन्द्रशेखर उपाध्यायः आगरा में इसलिए हूं कि यह हिन्दी आंदोलन की आद्यभूमि है। आगरा से हिन्दी के लिए कालिन्दी के तट पर संकल्प हुआ था। मैं आगरा से शक्ति और संजीवनी लेने आया हूं।
पत्रिकाः आगरा में डॉ. मुनीश्वर गुप्ता, आपने, डॉ. जितेन्द्र चौहान ने कुछ काम किया, इसके बाद हिन्दी के लिए कुछ काम ही नहीं हुआ? चन्द्रशेखर उपाध्यायः सब अपने-अपने स्तर पर काम कर रहे हैं। हम तो अपने प्रयत्नों से काम कर ही रहे हैं।
पत्रिकाः क्या हिन्दी के लिए कोई आंदोलन सड़क पर होगा? चन्द्रशेखर उपाध्यायः अगर आवश्यकता पड़ी तो संसद पर आंदोलन होगा। हम पहले भी संसद पर आंदोलन कर चुके हैं। संसद में पर्चे फेंके तो लाठीचार्ज हुआ था। अभी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने जा रहे हैं। भारत सरकार को बता रहे हैं कि देश की बहुसंख्य जनता यह चाहती है। सरकार नहीं सुनेगी तो आगे के रास्ते प्रांत के लोग तय करेंगे। आवश्यकता पड़ी तो पुराने रूप में फिर आएंगे।