क्या हुआ था
भाजपा आगरा महानगर अध्यक्ष होने के नाते पुरुषोत्तम खंडेलवाल की लोकप्रियता चरम पर थी। वे इतने लोकप्रिय हो गए थे कि अध्यक्ष के चुनाव में विजय दत्त पालीवाल को हरा दिया था। बावजूद इसके कि पालीवाल को भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया था। पुरुषोत्तम खंडेलवाल को लेकर कार्यकर्ताओं ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। सरस्वती शिशु मंदिर, सुभाष पार्क में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई। कार्यकर्ताओं ने संगठन की मंशा के विपरीत पुरुषोत्तम खंडेलवाल को महानगर अध्यक्ष पद पर चुना। बस यही बात संगठन को चुभ गई। सत्य प्रकाश विकल के निधन के बाद जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो प्रत्याशियों का चयन हुआ। कहा जाता है कि सूची में पुरुषोत्तम खंडेलवाल का नाम सबसे ऊपर था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी ने पुरुषोत्तम खंडेलवाल का नाम कलम से इतनी बार काटा कि पन्ना ही फट गया था। फिर जगन प्रसाद गर्ग को टिकट दे दिया गया। इसके बाद भी पुरुषोत्तम खंडेलवाल पार्टी की सेवा में लगे रहे। हर बार चुनाव में उनका नाम चलता, लेकिन टिकट नहीं मिलता। लम्बे समय बाद उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया।
भाजपा आगरा महानगर अध्यक्ष होने के नाते पुरुषोत्तम खंडेलवाल की लोकप्रियता चरम पर थी। वे इतने लोकप्रिय हो गए थे कि अध्यक्ष के चुनाव में विजय दत्त पालीवाल को हरा दिया था। बावजूद इसके कि पालीवाल को भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया था। पुरुषोत्तम खंडेलवाल को लेकर कार्यकर्ताओं ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। सरस्वती शिशु मंदिर, सुभाष पार्क में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई। कार्यकर्ताओं ने संगठन की मंशा के विपरीत पुरुषोत्तम खंडेलवाल को महानगर अध्यक्ष पद पर चुना। बस यही बात संगठन को चुभ गई। सत्य प्रकाश विकल के निधन के बाद जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो प्रत्याशियों का चयन हुआ। कहा जाता है कि सूची में पुरुषोत्तम खंडेलवाल का नाम सबसे ऊपर था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक पदाधिकारी ने पुरुषोत्तम खंडेलवाल का नाम कलम से इतनी बार काटा कि पन्ना ही फट गया था। फिर जगन प्रसाद गर्ग को टिकट दे दिया गया। इसके बाद भी पुरुषोत्तम खंडेलवाल पार्टी की सेवा में लगे रहे। हर बार चुनाव में उनका नाम चलता, लेकिन टिकट नहीं मिलता। लम्बे समय बाद उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया गया।
समय बदला
21 साल बाद समय बदला। फिर से उपचुनाव हो रहे हैं। पुरुषोत्तम खंडेलवाल को प्रत्याशी बनाया गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं की मंशा 21 साल बाद पूरी हो रही है। हालांकि तब पुरुषोत्तम खंडेलवाल के लिए टिकट की पैरवी करने वाले तमाम कार्यकर्ताओं का देहावसान हो चुका है। भाजपा में नए कार्यकर्ताओं की फौज आ चुकी है, जिनकी पुरुषोत्तम खंडेलवाल से निकटता नहीं है। फिर भी जो पुराने कार्यकर्ता हैं, उनका पुरुषोत्तम खंडेलवाल के नाम पर कोई विरोध नहीं है।
21 साल बाद समय बदला। फिर से उपचुनाव हो रहे हैं। पुरुषोत्तम खंडेलवाल को प्रत्याशी बनाया गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं की मंशा 21 साल बाद पूरी हो रही है। हालांकि तब पुरुषोत्तम खंडेलवाल के लिए टिकट की पैरवी करने वाले तमाम कार्यकर्ताओं का देहावसान हो चुका है। भाजपा में नए कार्यकर्ताओं की फौज आ चुकी है, जिनकी पुरुषोत्तम खंडेलवाल से निकटता नहीं है। फिर भी जो पुराने कार्यकर्ता हैं, उनका पुरुषोत्तम खंडेलवाल के नाम पर कोई विरोध नहीं है।
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