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ब्लैक हॉल, जहां मासूम गए, लेकिन नहीं लग सका सुराग

locationआगराPublished: May 18, 2018 12:28:39 pm

आगरा के कुछ ऐसे फेमस केस, जिसमें गुम हुए बच्चों का अभी तक पुलिस पता नहीं लगा सकी है।

children missing

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आगरा। ताजमहल की नगरी कहे जाने वाला आगरा एक ब्लैक हॉल भी रखता है, जहां न जाने मासूम कहां गायब हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता है। पुलिस विभाग के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो ये चौंकाने वाले हैं। आगरा के कई चर्चित मामले ऐसे रहे, जिनमें पुलिस आज तक खाली हाथ है, फिर चाहे 2016 में लापता हुआ बिट्टू हो या फिर सूर्यांश। जमकर हंगामा हुआ, बवाल हुआ, लेकिन पुलिस इनका पता लगाने में नाकाम रही।
ये हैं सरकारी आंकड़ें
2005 से आगरा में कुल 106 बच्चे लापता हुए हैं। जिसमें से एत्माद्दौला से सर्वाधिक 25 बच्चे लापता हुए हैं। वहीं शाहगंज से 2014 में 17, 2013 में 15 और 2012 में 13 बच्चे लापता हुए हैं। वहीं थाना सदर से भी डेढ़ दर्जन बच्चे गायब हो चुके हैं। सिकंदरा और शाहगंज थाना क्षेत्र से भी इतनी ही संख्या में बच्चे गायब हुए हैं। 2002 से अब तक गायब हुए बच्चों में सबसे अधिक चर्चा में कमला नगर निवासी बिट्टू का अपहरण रहा है। बिट्टू की तलाश में पुलिस ने कई सारे प्रयास किए। बिट्टू के परिजनों का नार्कों टेस्ट भी कराया गया लेकिन, कुछ भी हासिल नहीं हो सका। इतने लापता बच्चों में से कुछ मिल गए, लेकिन 2007 से 2017 तक अभी भी 56 बच्चे ऐसे हैं, जिनका कोई सुराग नहीं लग सका है।
गुम होने के पीछे का ये है कारण
चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट नरेश पारस ने बताया कि 12 साल से छोटी उम्र के बच्चों की तस्करी होती है। इनको उठा लिया जाता है और कई सारे धंधे, जैसे भीख मांगना आदि कार्यों में लगा दिया जाता है। 13 से 18 साल की उम्र के बच्चों में देखा ये गया है कि ये बच्चे खुद व खुद घर छोड़ देते हैं। इनमें कारण ये होता है परिवार का दबाव, पढ़ाई का प्रेशर, बाहर की चमक धमक की दुनिया देखने की चाहत रहती है। इसी चाहत में ये बच्चे घर से पैसा चुराकर भाग जाते हैं। जब पैसा खत्म होते तो कुछ तो वापस आ जाते हैं और कुछ गिरोह के चंगुल में फंस जाते हैं, जो चाहकर भी वापस लौट सकते हैं।
इसलिए नहीं हो पाते ट्रेस
बाल संरक्षण गृह हैं, उनमें रहने वाले बच्चों की ट्रैकिंग ठीक तरह से नहीं हो पाती है। कई बार बाल गृहों में ऐसे बच्चे मिले हैं, जो इन बाल गृहों में हैं और वे कहीं न कहीं से खो गए हैं। ये बच्चे कहीं न कहीं लापता हुए होंगे, हो सकता है इनकी रिपोर्ट भी दर्ज हो, लेकिन सरकारी जो व्यवस्था है, वो इन बच्चों को मैच नहीं कर पाती है। इसलिए इन बच्चों की बरामदगी भी नहीं हो पा रही है। सीधा कहना ये है कि कुछ बच्चे गिरोह के चंगुल में हैं, और कुछ इन बाल गृहों में हैं।
थाना स्तर पर होनी चाहिए जनसुनवाई
नरेश पारस ने बताया कि एसएसपी को इन मामलों में थाना स्तर पर जनसुनवाई करानी चाहिए। बच्चों के परिजनों को बुलवाया जाए, वहीं थाने के जांच कर्ता को बुलवाया जाए। इसमें उन लोगों को भी बुलवाया जाए, तो बाल संरक्षण गृह के अधीक्षक हैं। ऐसा करने से पुलिस की ढील खत्म हो जाएगी। जांच कर्ताओं में अधिकारियों का एक भय रहेगा, जिससे वे ऐसे मामलों को गंभीरता से लेंगे।
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