गौरतलब है कि गुजरात में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सुर्खियों में आए पाटीदार नेता अब मध्यप्रदेश में भी प्रभाव जमाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वे विधानसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए हार्दिक पटेल
गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल शनिवार से मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए। शुरुआत में उज्जैन के महाकाल में दर्शन करने के बाद उन्होंने चुनावी दौरे शुरू कर दिए। दोपहर में मां बगलामुखी के दर्न करने के बाद नलखेड़ा में युवा संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे हैं। इसी दिन शशाम तक वे ओंकारेश्वर में भी पूजा-अर्चना करेंगे। पटेल शनिवार रात को ही इंदौर में दलित परिवार के घर रात में रुकेंगे। जबकि रविवार को इंदौर में एक दिन का उपवास कार्यक्रम रखने के बाद दमोह के लिए रवाना हो जाएंगे। पटेल दमोह जिले के पथरिया में उपवास और धरना कार्यक्रम में भाग लेंगे। इसके बाद 23 अक्टूबर को सतना पहुंचकर दस दिनों से आमरण अनशन कर रहे सीमेंट फैक्ट्री के श्रमिकों से मिलेंगे।
इसलिए करते हैं तंत्र साधना
आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर स्थित है मां बगलामुखी का मंदिर। यह मंदिर धार्मिक व तांत्रिक दृष्टि से काफी अहम माना जाता है। यहां पर हवन करने वालों की कष्ट दूर हो जाते हैं। वहीं मां बगलामुखी सत्ता की देवी भी मानी जाती है। इसी देवी का एक मंदिर दतिया में है, जो पीताम्बरा पीठ के नाम से ख्यात है। इन दोनों ही मंदिरों में देश के दिग्गज नेता तंत्र साधना कर चुके हैं। जबकि नेताओं का यह क्रम आज भी जारी है। इस देवी को सत्ता की देवी माना जाता है, जो प्रसन्न होने पर सत्ता पर विराजमान कर देती है। मान्यता है कि इस मंदिर में मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। त्रिशक्ति मां का मंदिर भारतवर्ष में दूसरा कहीं नहीं है। यहां मां बगलामुखी के साक्षात होने का प्रमाण मिलता है।
250 साल पुराना सभामंडप
मंदिर परिसर में ही 16 खम्भों वाला सभामंडप है, जो 252 साल पहले 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर तुलाराम ने बनवाया था। इसी सभा मंडप में मां की और मुख करता एक कछुआ है, जो यह सिद्ध करता है कि पुराने समय में मां को बलि चढ़ाई जाती थी। मंदिर के ठीक सम्मुख लगभग 80 फीट ऊंची दीपमालिका है। कहा जाता है कि इसका निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था।
इसलिए चढ़ाते हैं पीली वस्तुएं
मां की उत्पत्ति के विषय में प्राण तोषिनी में शंकरजी पार्वती को इस प्रकार बताया है-एक बार सतयुग में विश्व को विनिष्ट करने वाला तूफान आया। इसे देखकर जगत की रक्षा में परायण श्री विष्णु को चिंता हुई। तब उन्होंने सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर तपस्या शुरू की। उस समय मंगलवार चतुर्दशी को अद्र्ध रात्रि के समय माता बगला का अविर्भाव हुआ। त्रैलोक्य स्तभिनी महाविधा भगवती बगला ने प्रसन्न होकर श्रीविष्णु को इच्छित वर दिया, जिसके कारण विश्व विनाश से बच गया। भगवती बगला को वैष्णव तेजयुक्त ब्रह्मामास्त्र-विद्या एवं त्रिशक्ति भी कहा गया है। ये वीर रात्रि है। कालिका पुराण में लिखा है की सभी दसमहाविधाएं सिद्ध विघा एवं प्रसिद्ध विद्या है इनकी सिद्धि के लिए न तो नक्षत्र का विचार होता है और न ही कलादिक शुद्धि करनी पड़ती है। ना ही मंत्रादि शोधन की जरूतर है। महादेवी बगलामुखी को पीत-रंग (पीला) अत्यंत प्रिय है। यही कारण है की मां को ये पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती है।