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भोपाल

सुप्रीम कोर्ट का फैसला- धर्म के आधार पर नहीं मांग सकते वोट

सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने एक बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई करते कहा कि चुनाव के दौरान धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। 

भोपालJan 02, 2017 / 01:00 pm

gaurav nauriyal

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भोपाल. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने एक बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुत्व मामले में कई याचिकाओं पर सुनवाई करते कहा कि चुनाव के दौरान धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगा जा सकता। इधर इस फैसले के बाद मध्यप्रदेश की सियासत की बात करें तो यहां की राजनीति में हमेशा से ही धर्म का घालमेल रहा है। 

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रत्याशी और उसके विरोधी व एजेंट की धर्म, जाति और भाषा का इस्तेमाल वोट मांगने के लिए नहीं किया जा सकता है। इस फैसले की नजर से देखें तो मध्य प्रदेश के कई हैवी वेट नेताओं की राजनीति का फ्रेम गड़बड़ा जाएगा। इनमें सबसे पहला नाम खुले तौर पर केंद्रीय मंत्री उमा भारती का आएगा।

मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रही उमा भारती की पूरी राजनीति ही हमेशा से धर्म के नाम पर रही है। उमा की राजनीति के केंद्र में हमेशा हिंदुत्व का मुद्दा रहा है। उमा ने राजनीति में आने से पहले ही सन्यास ले लिया था। उमा का दावा रहा है कि वो 5 वर्ष की उम्र से धार्मिक प्रवचन देती आई हैं। उमा वर्ष 1984 से भारतीय जनता पार्टी से जुडी हुई हैं।

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहते हुए भी उमा भारती ने सीएम हाउस में एक मंदिर का निर्माण किया था। मुख्यमंत्री रहते उनके तांत्रिक अनुष्ठानों पर भी राजनेता चुटकी लेते रहे हैं।


बाबरी कांड में निभाई सक्रिय भूमिका
उमा भारती की राजनीति राष्ट्रीय फलक पर बाबरी मस्जिद के विवादित ढाँचे को गिराने के बाद ही उभरकर सामने आई थी। बाबरी कांड में उमा की सक्रिय भूमिका पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, लेकिन उमा ने कभी भी इसका अफ़सोस नहीं किया। उमा भारती ने साध्वी ऋतम्भरा के साथ राम जन्मभूमि आन्दोलन का चर्चित चेहरा थी। इस दौरान उन्होंने एक नारा भी दिया था-‘श्री रामलला घर आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे।’

छठी तक पढ़ी-लिखी, बन गई थी CM
-हिन्दू महाकाव्य में अच्छी पकड़ रखने वाली उमा भारती का जन्म 3 मई 1959 को टीकमगढ़ के लोधी राजपूत परिवार में हुआ था।
– उमा मात्र छठी तक पढ़ी हैं। उमा का लाल-पालन ग्वालियर घराने की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने किया था। वे ही उन्हें पार्टी में लेकर भी आई थीं।
– उमा एक आत्मविश्वासी राजनीतिज्ञ हैं। साध्वी की वेशभूषा में हमेशा रहने वाली उमा ने अविवाहित रहकर अपना जीवन धर्म को समर्पित कर दिया।
– 1984 में BJP से जुड़ गई और पहला चुनाव हार गईं।
– 1989 के चुनावों में फिर जोर आजमाया और वे जीत कर विधानसभा पहुच गईं।
– खुजराहो लोकसभा सीट से 1991 में चुनाव लड़कर वे चर्चाओं में आ गईं।
– उसके बाद तीन बार लगातार वे इसी सीट पर जीतती गईं। 1999 में भोपाल संसदीय सीट से लड़कर वे लोकसभा पहुंच गईं।
– वाजपेयी सरकार में उमा केंद्रीय मानव संसाधन, पर्यटन, खेल और युवा मामले, कोयला और खाद्यान्न मंत्रालय की मंत्री रहीं।
– वर्ष 2003 के चुनाव में उमा भारती के दम पर प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई। उमा ने दिग्विजय सिंह सरकार को बुरी तरह परास्त किया और वे MP की मुख्यमंत्री बन गईं।
– इसके बाद गलत बयानबाजी के कारण उमा की सदस्यता छिन गई और उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया। बाद में भारतीय जन शक्ति पार्टी बनाकर उन्होंने संघर्ष किया। उनके वापसी का दौर शुरू हुआ और वे केंद्रीय मंत्री हैं।
– 7 जून 2011 को भाजपा में उमा भारती की वापसी हुई। इसके बाद उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति सुधारने का काम सौंपा। तो उन्होंने “गंगा बचाओ” अभियान चलाया।
– रायसेन जिले के बांद्राभान में आश्रम। यहां उमा भारती अक्सर धार्मिक अनुष्ठान के लिए आया करती हैं। लोग इस आश्रम को उमा भारती के आश्रम के नाम से ही जानते हैं। 

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…और क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया की अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो ये जनप्रतिनिधित्व कानून (RP Act) के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। ये जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) की जद में होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न केवल प्रत्याशी बल्कि उसके विरोधी उम्मीदवार के धर्म, भाषा, समुदाय और जाति का इस्तेमाल भी चुनाव में वोट मांगने के लिए नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि भगवान और मनुष्य के बीच का रिश्ता व्यक्तिगत मामला है। कोई भी सरकार किसी एक धर्म के साथ विशेष व्यवहार नहीं कर सकती। एक धर्म विशेष के साथ खुद को सरकार नहीं जोड़ सकती। चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और चुने गए उम्मीदवार का कार्यकलाप भी धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए।


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(अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा कारसेवकों ने ढहाया, उसके बाद भाजपा नेता इकट्ठे हुए। उसी दौरान उमा भारती आईं और खुशी के चलते तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी से लिपट गईं। ग्वालियर के एक फोटो-जर्नलिस्ट ने यह फोटो क्लिक कर लिया, जो बाद में मामले का प्रमुख सुबूत और दुनिया भर के अखबारों- मैग्जीन्स की सुर्खियां बना।)
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