भोपाल. शुक्रवार सुबह फिल्म अभिनेता ओम पुरी का हार्ट अटैक से निधन हो गया है। ओम पुरी की शक्सियत ही कुछ ऐसी थी कि उनका जादू आम दर्शकों से लेकर उनके साथ काम करने वाले कलाकारों पर भी गहरा पड़ा।
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले सामान्य चेहरे-मोहरे वाले दर्जनों एक्टर्स के लिए ओम पुरी हमेशा उम्मीद का दूसरा नाम रहे तो फिल्म के जानकारों के लिए एक उम्दा अभिनेता, जिसने हिंदी सिनेमा को एक अलग मुकाम दिया। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकले अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ओम पुरी के ऐसे ही कई किस्सों को लेकर ‘पत्रिका’ के लिए गौरव नौड़ियाल से बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…
ओम पुरी को आप कैसे याद कर रहे हैं?
मैंने जब थियेटर शुरू किया तभी ओम जी के काम को देखना शुरू किया। जब गंभीर सिनेमा को देखना हमने शुरू किया था तब लगा कि ये आदमी जरा अलग है। तब मेरी भी सिनेमा की दूसरी धाराओं को लेकर समझ बढ़ रही थी। सामान्य से चेहरे वाला शख्स जिसके चेहरे पर चेचक के दाग थे वो हमारी प्रेरणा रहा है। एनएसडी के एक्टर्स ने हिम्मत ही इन लोगों (नसीर, ओम पुरी इत्यादि) के मुंबई आने के बाद दिखानी शुरू की। ओम पुरी का जलवा तो एनएसडी के दिनों से ही रहा है…बाद में सिनेमा ने उन्हें और ज्यादा शोहरत दी। मेरे जैसे कई अभिनेताओं के लिए ओम पुरी प्रेरणा थे।
ओम के काम को एक अभिनेता के तौर पर आप कैसे देखते हैं?
मैं तब व्यक्तिगत तौर पर ओम पुरी साहब को नहीं जानता था। खैर, उनके काम को तो सभी जानते थे। उनके काम ने मुझे बहुत गहरे तक हमेशा से प्रभावित किया है। जब ‘अर्धसत्य’, ‘आक्रोश’ जैसी फिल्में देखी तब लगा कि ये लोग बाकी भीड़ से कुछ अलग कर रहे हैं। वो बिल्कुल भी सामान्य वाला सिनेमा तो कहीं से नहीं था। हमने अद्भुत अभिनेता खो दिया है। ओम पुरी का स्पेस कोई नहीं भर सकता।
आप खुद को ओम पुरी से कैसे रिलेट करते हैं?
बाद में मैं जब नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा पहुंचा तो लगा, चलो रास्ता तो हम भी वही तय कर रहे हैं। ओम पुरी साहब भी सामान्य परिवार से थे।…जैसे मैं। मैं बिहार के ठेट देहाती हिस्से से नाता रखता हूँ। इसलिए उनसे मैं खुद को और ज्यादा रिलेट करता था। बाद में हमने साथ में काम भी किया। मुंबई पहुंचा तो फिर मिलना-जुलना लगा रहा।
कोई किस्सा जो आपको ओम जी के साथ का याद आ रहा हो इस वक़्त?
एक बार हम भुज में शूटिंग कर रहे थे। रात में मजमा लगा था। ओम जी के कमरे में बैठकी जमी हुई थी। सब तरंग में थे। उनके हाथ बहुत कांपते थे गिलास पकड़ने में तो हमने उनसे कहा कि सर आप थोड़ी एक्सरसाइज कर लिया करो। इस पर उन्होंने हंसते हुए हमारी बात टाल दी और बोले जीवन जीना था जी लिया। अब इस उम्र में क्या एक्सरसाइज करनी!
शूटिंग के दौरान की कोई ऐसी बात जिसे आप भूल नहीं पाते?
उनका दिल बच्चे जैसा प्योर था। भुज में शूटिंग के दौरान एक एक्टर था जो हमारे साथ ही ठहरा हुआ था। उन्होंने रात को डेढ़ बजे हमें बच्चों की तरह सलाह दी और कहा कि तुम 4-6 लोग जाओ और उसके दरवाजे पर जोर-जोर से हँसना…चिल्ला-चिल्ला कर हँसना, जिससे वो जाग जाए। फिर तुम वहां से चले आना, ताकि जब वो देखे तो उसे वहां कोई न दिखे। तब मुझे लगा कि ओम पुरी जो गंभीर सिनेमा की पहचान हैं…जिनके अलग-अलग पहलू हमने सिनेमा के जरिए देखे, वो बच्चों जैसा दिल भी रखते हैं। मैं अचंभित था एक अभिनेता के तौर पर जिसकी पहचान कुछ और है वो शख्स हमें ऐसी चीज़ें सुझा रहा है। ओम जी के कहने पर हमने ऐसा किया भी था।
ओम पुरी प्रोफेशनल लाइफ में कैसी शक्सियत रहे?
हम भुज में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। हमारे दो-तीन दिन बाद ही वो शूट पर पहुंचे थे। तीन दिन बाद ही उन्होंने हम लोगों से पूछा कि तुम लोग कितने दिन से हो? हमने बताया कि 5-6 दिन हो गए तो वो बोले कैसे झेल रहे हो इस आदमी को? उन्होंने कहा कि वो जा रहे हैं। तीसरे दिन ही वो चले भी गए और हम लोग भी लौट आए। वो फिल्म बंद हो गई थी। वो इम्पल्सिव पर्सनैलिटी की शक्सियत रखते थे। वो अपने काम को खूबसूरती से अंजाम देते थे।
किस सब्जेक्ट पर ये फिल्म बननी थी?
मलाला यूसफजई पर वो फिल्म बन रही थी। दरअसल वो डारेक्टर यूँ ही था। काम ऐसे ही हो रहा था, जिससे ओम पुरी परेशान हो गए थे। शायद इस फिल्म की नियति यही रही हो कि हमें ओम जी के साथ तीन दिन गुजारने रहे होंगे!
शूट के दौरान किन मुद्दों को लेकर आपकी बात होती थी?
हमारी कभी भी सिनेमा को लेकर बहुत ज्यादा बातें नहीं हुई।…उनसे समाज और राजनीति के सन्दर्भ में हमारी बातें होती थी। जो भी दुनियाभर में चल रहा था वो उसको लेकर बात करते थे। पिछले दिनों उनके सर्जिकल स्ट्राइक पर दिए बयान को मीडिया ने गलत ढंग से पेश किया था, जिसके बाद बवाल भी हुआ था। वो सजग व्यक्ति थे। सजग व्यक्ति ही अच्छा अभिनेता होता है। पत्रकारिता के गिरते स्तर को लेकर भी ओम जी चिंतित थे।
ओम साहब ने अपने दौर में ‘अर्धसत्य’, ‘जेनेसेस’ और ‘मिर्च मसाला’ भी की तो ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ जैसी फिल्में भी… उन्होंने कमजोर फिल्में क्यों चुनी… आप क्या मानते हैं?
उन्होंने कभी पीआर के कहने पर अपनी इमेज बिल्डिंग नहीं की। वो अंदर से जैसे थे वैसे ही बाहर से भी थे। इनोसेंस कभी नहीं खोया उन्होंने अपना। एक्टर भी कई दफा पैसे के लिए फ़िल्में करता है। ओम साहब ने भी। इसलिए बुरी फिल्मों के आधार पर ओम साहब को जज नहीं किया जा सकता। कई दफा एक्टर रिश्तों के लिए भी फिल्में स्वीकार कर लेता है… इनमें वो फिल्में भी शामिल होती हैं जो कि बाद में परदे पर बहुत ही कमजोर नजर आती हैं।
मसलन ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ भंवरी देवी कांड पर मज़ेदार फिल्म हो सकती थी, लेकिन स्क्रिप्ट से पर्दे तक आते-आते वो हल्की पड गई। हाँ, उन्होंने बुरी फिल्में भी की जो उन्हें नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन एक अभिनेता से इतर एक व्यक्ति के तौर पर उनके सामने कौन सी मजबूरियां थी ये तो नहीं कहा जा सकता? मैं भी एक फिल्म जिसका नाम ‘लॉलीपॉप’ था, उसके पोस्टर में ओम जी को देखकर दुखी हो गया था।
कबीर खान की ‘ट्यूबलाइट’ के बारे में क्या चर्चा है?
‘ट्यूबलाइट’ में उनका मज़ेदार रोल है। सलमान खान के साथ वो नजर आएंगे। उन्होंने इस फिल्म के लिए अपनी शूटिंग भी पूरी कर ली थी शायद। मैं फिर कहूँगा कि हमने एक अद्भुत अभिनेता खो दिया है। ओम पुरी का स्पेस कोई नहीं भर सकता। वो चेचक के दाग वाला शख्स हमें प्रेरणा देता रहेगा, जिसके भीतर किरदार पलते थे।