भोपाल. दिग्गज अभिनेता ओम पुरी का शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने के बाद निधन हो गया है। इस अभिनेता को हर कोई अपना-अपने ढंग से याद कर रहा है, लेकिन अभिनेता आशुतोष ने अनूठे अंदाज में ओम पुरी को याद किया है। ओम पुरी के बहाने वो अभिनेताओं को उनकी सीख भी दे रहे हैं।
आशुतोष राणा ने ओम पुरी को याद करते हुए फेसबुक पर उनसे जुडा एक संस्मरण पोस्ट किया है। आशुतोष मध्य प्रदेश के गाडरवाला के रहने वाले हैं। यहाँ हम आगे आशुतोष राणा द्वारा लिखे गए संस्मरण को शब्दशः पेश कर रहे हैं….
रात के 8 बजे थे सर्दी अभी शुरू ही हुई थी, मैं ओम पुरी साहब के साथ पुष्कर तीर्थ के ब्रह्म कुंड पर बैठा था। हम हिंदी फ़िल्म ‘डर्टी पॉलिटिक्स’ की शूटिंग कर रहे थे। बात ही बात में मैंने उनसे पूछ लिया की पुरी साब लम्बे-लम्बे डायलॉग को याद करने का आपका तरीक़ा क्या है? उन्होंने बहुत तीव्रता से अपनी पैनी आँखें मुझ पर गड़ा दीं, आँखों में भाव बिलकुल वैसा था जैसे कोई सिद्ध गुरु गूढतम रहस्य के उद्घाटन के पहले शिष्य की मनोभूमि की क्षमता को आंकता है.. फिर अपनी अत्यंत गहरी आवाज़ में बोले ..शब्द क्यों याद रखते हो? भाव याद रखो। भाषा तो भाव का घोड़ा है पंडित जी।
जी, पुरी साहब मुझे लाड़ से पंडित जी कहते थे। पुरी साहब बोले ..मेरे लिए किन शब्दों में कहा गया ये महत्वपूर्ण नहीं होता, क्या कहा गया ये महत्वपूर्ण होता है, इसलिए कैसे कहना है ये अपने आप आ जाता है। भाव एक्टर का वार होता है, जो भाषा रूपी घोड़े पर सवार होता है। बोले दुनिया सिर्फ वार को और सवार को ही याद रखती है।
(आशुतोष राणा की फेसबुक वॉल का प्रिंटशॉट)
मैंने कहा आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? इतिहास में जितना महत्व राणा प्रताप का है उतना ही महत्वपूर्ण चेतक भी है। वो बोले पंडित जी महाराणा के वार क़ातिल थे वे कमाल के सवार थे, इसलिए उनका घोड़ा लोगों को याद रह गया। ऐसा ही अपने धंधे में है जब किसी ऐक्टर के भाव प्रभावशाली होते हैं, दर्शक के मर्म पर चोट करते हैं तो लोगों को उसकी भाषा भी याद रह जाती है। इसलिए सिर्फ़ अच्छी भाषा के चक्कर में मत पड़ो सच्चे भाव को सिद्ध करो, भाषा की तारीफ़ लोग ख़ुद ब ख़ुद करने लगेंगे।
धरती जीतना बहुत आसान है पंडित जी, बात तो तब है जब दुनिया का दिल जीत के बताओ। महत्व इस बात का नहीं है कि अपने शहर में कितने मकान बना लिए महत्वपूर्ण ये है की आप कितनों के मन में जगह बनाते हो। याद रखिए हम एक्टर्स भी योद्धा ही होते हैं। हमारी जगह लोगों के मकानों में नहीं… लोगों के मनों में होती है। हम सिर्फ़ पैसे से नहीं महाराज, प्रशंसा से पलते हैं। पैसा कमाना जितना आसान है, प्रशंसा कमाना उतना ही मुश्किल है। पैसा तो भीख माँगने पर भी मिल जाता है लेकिन प्रशंसा कोई भीख में नहीं देता। तभी हमारे डारेक्टर ने पैक अप की घोषणा कर दी।
पुरी साहब उठे प्रेम से मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले अच्छा पंडित जी चलते हैं और वे चल दिए.. आज वे सदा के लिए चले गए, लेकिन मेरे जैसे करोड़ों करोड़ लोगों के दिलों को हमेशा हमेशा के लिए जीतकर। अस्तित्व ने जन्म से ही पुरी साहब को प्रतिकूल परिस्थितियाँ जैसे उपहार में दी थीं, और पुरी साहब ने अस्तित्व से मिले प्रतिकूल परिस्थितियों के इस उपहार को गरीमा सहित स्वीकार किया और लग गए चुन चुन कर प्रतिकूल को अनुकूल बनाने में। ॐ के नाद से यदि इस सृष्टि का निर्माण हुआ है तो इस धीरनायक ने ब्रह्मनाद को ही अपना नाम बना लिया। कभी ना चुकने वाले धैर्य को धारण करने वाला कला जगत का यह सूर्य आज मनोराज्य पर अपनी विजय पताका को फहराने के बाद ब्रह्मराज्य की ओर प्रयाण कर गया । असाधारण प्रतिभा के धनी कालजयी अभिनेता श्रद्धेय ओम पुरी साहब आपको भावपूर्ण विनम्र श्रद्धांजलि…शत् शत् नमन। शिवास्तु ते पँथनाह- आशुतोष राणा।