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ग्वालियर

जानिए किसने दिया था हुमायुं को बेशकीमती हीरा “कोहिनूर” 

लंदन के संग्रहालय में रखे कोहिनूर हीरे का नाता ग्वालियर से भी रहा है। ग्वालियर के तोमर राजा ने पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बेमिशाल कोहिनूर  को मुगल राजकुमार हुमायूं को सौंपा था।

ग्वालियरApr 22, 2016 / 10:45 am

Gaurav Sen

kohinoor diamond

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ग्वालियर। लंदन के संग्रहालय में रखे कोहिनूर हीरे का नाता ग्वालियर से भी रहा है। ग्वालियर के तोमर राजा ने पानीपत के प्रथम युद्ध के बाद बेमिशाल कोहिनूर को मुगल राजकुमार हुमायूं को सौंपा था।

ये सुपुदर्गी आगरा में 1526 में हुई थी, जहां तक इस बेशकीमती कोहिनूर के स्वामित्व का सवाल है, करीब सात सौ सालों तक भारत में, जिसके पास ताकत रही, उसी के ताज में ये महामणि जड़ा गया। पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर के खिलाफ इब्राहिम लोदी का साथ ग्वालियर के तोमर राजपूत राजाओं ने दिया था। लोदी की पराजय के बाद उसके खजाने का भार ग्वालियर 
के तोमर राजा अजीत सिंह पर था। उनके अपने खजाने में कोहिनूर भी था।

बाबरनामा में है उल्लेख
बाबरनामा में इस बात का उल्लेख है कि पानीपत के प्रथम युद्ध में ही अजीत सिंह के भाई विक्रमादित्य तोमर धराशायी हुए थे। उनका समूचा परिवार (महिलाओं सहित) मुगलों के कब्जे में था। हुमायूंं ने तोमर राज परिवार के अपने कब्जे में होने का दबाव बनाकर अजीत ङ्क्षसह तोमर से कोहिनूर अपने कब्जे में ले लिया। कुछ ऐेतिहासिक दस्तावेज ये भी साफ करते हैं कि हुमायूं को ये कोहिनूर हीरा तोमर राजा विक्रमादित्य की विधवा ने सौंपा। अलबत्ता ये तय है कि ये हीरा ग्वालियर के तोमर राजाओं के पास रहा था। बाबर के रूसी जीवनीकार परिमकुल कादिरोव ने भी इस घटनाक्रम का उल्लेख किया है।

तब कोहिनूर का वजन था 320 रत्ती 
तोमर राजाओं के इतिहास की आधिकारिक खोज करने वाले हरिहर निवास द्विवेदी ने तोमर राजाओं के इतिहास से जुड़ी अपनी किताब में साफ किया है कि तब कोहिनूर का वजन 320 रत्ती था। इसकी कीमत के संदर्भ में एक किवदंती है कि इसकी कीमत में उस समय समूची आधी दुनिया को ढाई दिन तक भोजन कराया जा सकता था। बाबरनामा में बाबर ने लिखा है कि इस हीरे को अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण से लेकर आया था। बाद में ये हीरा मालवा के खिलजियों के पास आया। मालवा के होशंगशाह खिलजी को तोमरों ने पराजित कर कोहिनूर को हासिल किया। मुगल काल में भारत आए टेवरनियर ने शाहजहां के पास इस हीरे को देखने का दावा किया था। मुगलों से ये हीरा नादिरशाह ने छीना। इसके बाद ये हीरा पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और बाद में ब्रिटेन की महारानी तक पहुंचा। 

जब हुमायूं से बाबर ने पूछी इसकी कीमत
हुमायूं नामा में उल्लेख है कि हुमायूं ने अपने पिता बाबर को जब ये बेशकीमती कोहिनूर सौंपा तो उससे कीमत जाननी चाही। फारसी में दिए उत्तर का हिंदी में अनुवाद कुछ इस प्रकार है ‘जिसकी कीमत लाठी में है। जिसकी लाठी में जितना जोर है, ये उसी का होता है। यहां ये बताना उचित होगा कि कोहिनूर हीरा भारत में लाने को लेकर हाल ही में भारत सरकार ने प्रतिबद्धता जाहिर की है। इससे पहले न्यायालय में जवाब दिया था कि ये हीरा तत्कालीन ब्रिटिश शासक को तोहफे में दिया गया है। 
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