सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज होता है। इलाज करवाने के लिए वहां घंटों इंतजार करना होता है। सरकारी अस्पतालों का स्टाफ भी मरीज व उसके परिजनों को परेशान करता है। निजी अस्पतालों में चैकअप व जांचों के नाम पर मोटी फीस ली जाती है। कई नामी अस्पतालों ने इसे बिजनेस बना लिया है। यहां आए दिन नई बीमारियों के नाम सुनने को मिलते है। इनका इलाज केवल निजी अस्पतालों में ही संभव होता है। लोग अपनी जमा पूंजी लुटाने को विवश होते है।
अशोक कुमार शर्मा, जयपुर।
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स्वास्थ्य सेवाएं मानव के लिए आवश्यक सेवाएं हैं। आश्चर्य की बात है कि सरकार, इतनी आवश्यक सेवाओं के लिए गंभीर नहीं है। बडे बडे निजी अस्पताल खुल रहे हैं। सरकार को आबादी के हिसाब से सरकारी अस्पतालों की संख्या बढ़ानी चाहिए। वहां अच्छी सुविधाएं देनी चाहिए। चिकित्सा अधिकारी, नर्स, तकनीशियन आदि की कमी को दूर करना चाहिए। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों पर मरीजों का दबाव रहता है। इसकी वजह से मरीजों के प्रति सहानुभूति न के बराबर रहती है। डॉक्टर्स की सोच व्यावसायिक होती जा रही है। उनका निजी प्रेक्टिस पर जोर अधिक रहता है।
—डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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कोरोना काल में स्वास्थ्य सेवाओं का व्यवसायीकरण स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। अस्पतालों में डाॅक्टरों ने अपनी फ़ीस दुगुनी कर दी थी, वहीं दवाओं की भी कालाबाज़ारी हो रही थी। इससे न जाने कितने मरीजों की जान चली गई थी। निजी अस्पतालों में इलाज कराना लोगों की मजबूरी है। वहां मंहगे टेस्ट व दवाइयां लिखी जाती हैं। भारतीयों की कमाई का बड़ा हिस्सा अनचाही बीमारियों में चला जाता है। सरकारी अस्पतालों में दी जाने वाली मुफ़्त दवाओं को भी केमिस्ट गरीब मरीजों को न देकर दूसरे मरीजों से पैसे लेकर बेच देते हैं।
— विभा गुप्ता, मैंगलोर
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स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से व्यापार बन चुकी हैं। निजी अस्पताल बीमारियों के पैकेज देते हैं। हॅास्पीटल की बिल्डिंग होटल की तरह बन गई है। इलाज व खाने पीने के लिए कई सुविधाएं मौजूद हैं। व्यक्ति की बीमारी को ठीक करने के बजाय अस्पताल प्रबंधन का लक्ष्य मरीज से अधिक से अधिक धन वसूलना होता है। इसके लिए डीलक्स रूम, वीआईपी सुविधा, अलग अलग तरह के टेस्ट आदि कई माध्यम हैं। दवाइयों व जांचों में डॉक्टरों का कमीशन अलग से है। इस तरह से स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से व्यावसायिक बन गई हैं।
— आशुतोष मोदी, सादुलपुर (चूरु)
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स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से व्यवसाय बन चुकी हैं। निजी अस्पतालों में जरूरत न होने पर भी मरीज को भर्ती कर लिया जाता है। आवश्यक न होने पर भी जांचें लिख दी जाता हैं, जिससे मरीज को न चाहते हुए भी जांचों में अपना धन व समय खर्च करना पडता है।
— राशि विश्वकर्मा, भोपाल मध्य प्रदेश
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वर्तमान में चिकित्सा सेवा की बढ़ती लागत, कमीशनखोरी, चिकित्सकों द्वारा प्रलोभन में आकर बड़ी कम्पनियों की महंगी दवाएं लिखना, अपने लाभ के लिए अनावश्यक रूप से जांच कराना आदि से आम आदमी का चिकित्सा पेशे से विश्वास समाप्त होने लगा है। इसके लिए सरकारी चिकित्सकों द्वारा अपनी निजी प्रेक्टिस पर रोक लगानी चाहिए। साथ ही सरकार को भी सख्ती दिखानी होगी।
प्रकाश भगत, कुचामन सिटी, नागौर