भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क में राष्ट्रवाद सर्वोपरि है। स्थानीय चुनावो में जनता महंगाई जैसे विषय को अधिक महत्व प्रदान करती है, पंरतु केंद्र के चुनावों में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दो के निराकारण को महंगाई की तुलना में अधिक महत्व प्रदान किया है। भारतीय जनता आज “हम रहे या ना रहे ये मातृभूमि रहनी चाहिए” के सिद्धांत पर कार्य करती है।।
विनायक गोयल, रतलाम, मध्यप्रदेश
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चुनाव में महंगाई अब कोई मुद्दा नहीं रह गया है। शायद लोगों ने मान लिया है कि भविष्य में वस्तुओं व सेवाओं के दाम बढ ही सकते हैं, कम नहीं हो सकते। सरकारें थोडी—बहुत राहत दे सकती हैं। महंगाई से राहत दिलवाने का वादा, केवल आश्वासन ही बन कर रह जाता है। यह मुद्दा केवल औपचारिक बन कर रह गया है। महंगाई के स्थान पर जाति, धर्म, आरक्षण जैसे मुद्दों को राजनीतिक दल अधिक उपयोगी समझते हैं।
—आशुतोष शर्मा, जयपुर
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वर्तमान में राजनीति में मुख्य मुद्दे गौण होते जा रहें हैं । राजनेता एक —दूसरे पर व्यक्तिगत आरोप लगाते हैं। वे मुख्य मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाते हैं। इससे मतदाता ठगा सा रह जाता है। आज भी मंहगाई, बेरोजगारी, आरक्षण और गरीबी आदि मुख्य मुद्दे हैं जिस पर राजनेता ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा के लिए अच्छा नहीं है।
— कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर (चूरु)
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लगातार बढ़ती महंगाई आज चिंता का विषय है। यह मुद्दा आम जनता को परेशान करता है। चुनी हुई सरकार से यह उम्मीद रहती है कि वह महंगाई पर नियंत्रण करे। लोगों को रोजमर्रा का खर्च चलाना भारी पड़ रहा है। प्रत्याशियों को आम लोगों की परेशानियों को समझना चाहिए और बढती महंगाई का मुद्दा बनाकर उसे दूर करने का हर संभव प्रयास करना होगा।
— साजिद अली, इंदौर
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वर्तमान में आम जनता के लिए तो महंगाई ही सबसे बड़ा मुद्दा है और होना भी चाहिए। प्रश्न है कि महंगाई मुद्दा है या नहीं ? जवाब है — बिल्कुल नहीं। प्रत्याशियों को अपनी जीत चाहिए। वोटों का झुकाव किस ओर है, जातिगत समीकरण व धर्म से वोटों को उनकी ओर मोड़ा जा सकता हैै। पूरे देश को जनता को एकजुट होकर महंगाई ही मुद्दा बनाना चाहिए, जिससे गरीब आदमी को दो समय की रोटी के जुगाड में सारे समय चिंता नहीं करनी पड़े।
—निर्मला देवी वशिष्ठ, राजगढ़ अलवर
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बढती महंगाई की मार आम लोगों के लिए है। राजनेताओं के लिए नहीं। उन्हें तो बस चुनाव जीतने से मतलब है। यदि जातिगत समीकरण, धर्म—संप्रदाय आदि के नाम से आसानी से वोट मिल जाते हैं तो महंगाई की किसको फिक्र। लोगों को थोडी कमाई से ही परिवार पालना होता है, उस पर सरकारी भ्रष्टाचार की मार। प्रत्याशियों व राजनीतिक दलों को महंगाई से राहत दिलाने के मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
-रानिया सेन ,जयपुर
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नफरत की राजनीति ने लोगों को धर्मांध बना दिया है। देश की जनता को राजनीतिक दलों ने वोटर में बांट दिया है। इसलिए अब इनके लिए महंगाई कोई मुद्दा नहीं रहा।
— याकूब मोहम्मद छीपा, आयड़, उदयपुर
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