गौरतलब है कि 22 अप्रैल को लॉकडाउन के बीच रिलायंस जियो और फेसबुक में ई रिटेल शॉपिंग में उतरने को बड़ी डील हुई है। फेसबुक ने जियो प्लेटफॉर्म्स में 5.7 अरब डॉलर लगाकर 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। अब रिलायंस का जियोमार्ट और फेसबुक का वाट्सएप प्लेटफॉर्म मिलकर भारत के करीब 3 करोड़ खुदरा कारोबारियों और किराना दुकानदारों को पड़ोस के ग्राहकों के साथ जोड़ने का काम करेंगे। इनके लेन-देन डिजिटल होने से पड़ोस की दुकानों से ग्राहकों को सामान जल्द मिलेगा और छोटे दुकानदारों का कारोबार भी बढ़ेगा। भारत में वाट्सएप के करीब 40 करोड़ यूजर्स हैं, जबकि जियो के 38 करोड़ ग्राहक हैं।
इसी तरह जहाँ एमेजॉन, फ्लिपकार्ट-वालमार्ट और स्नैपडील जैसी अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियों ने भारत में किराना और ऑफलाइन स्टोर को अपने साथ जोडऩे की नई पहल शुरू की है, वहीं ऑफलाइन रिटेल एसोसिएशन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने भी उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के साथ मिलकर देश के 7 करोड़ कारोबारियों के लिए राष्ट्रीय ई-कॉमर्स बाजार तैयार करने का रणनीति तैयार करने का संकेत दिया है। सीएआईटी का कहना है कि इस रणनीति के तहत एक ऐसी व्यवस्था विकसित की जाएगी, जहाँ स्थानीय किराना दुकानें ऑनलाइन ऑर्डर लेने में सक्षम हो सकेंगी और दूरदराज तक निर्बाध किफायती आपूर्ति और डिजिटल भुगतान दोनों ही सुनिश्चित हो सकेंगे।
निश्चित रूप से कोविड-19 ने भारत में ई-कॉमर्स बाजार की डगर को चमकीला बना दिया है। डेलॉय इंडिया और रिटेल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट 2019 में बताया गया था कि भारत का ई-कॉमर्स बाजार वर्ष 2021 तक 84 अरब डॉलर का हो जाएगा, जोकि 2017 में महज 24 अरब डॉलर था। लेकिन अब कोविड-19 के बाद जिस तरह ई-कॉमर्स बढ़ने की संभावना दिखाई दे रही है। उससे अनुमान किया गया है कि वर्ष 2028 तक यह कारोबार 200 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।
निसंदेह ई-कॉमर्स ने देश में खुदरा कारोबार में क्रांति ला दी है। देश में इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की संख्या इस समय करीब 62 करोड़ से भी अधिक होने के कारण देश में ई-कॉमर्स की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाने और दुनिया की सर्वाधिक करीब 1.9 प्रतिशत विकास दर के स्तर की संभावना के पीछे भी एक कारण भारत का ई-कॉमर्स बाजार भी है। कोविड-19 के बाद आगामी वित्त वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने की जो संभावना वैश्विक संगठनों ने बताई है, उसके पीछे भी ई-कॉमर्स की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
यह बात महत्वपूर्ण है कि देश में खुदरा कारोबार में जैसे-जैसे विदेशी निवेश बढ़ा वैसे-वैसे ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ती गई। अब कोविड-19 के परिदृश्य में इस समय देश में ई-कॉमर्स नीति में बदलाव की जोरदार जरूरत अनुभव की जा रही है। केन्द्र सरकार पिछले एक वर्ष से वर्तमान ई-कॉमर्स नीति को बदलने की डगर पर आगे बढ़ते हुए दिखाई भी दी है। ई-कॉमर्स नीति में बदलाव के लिए केन्द्र सरकार के उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग के द्वारा विचार मंथन हेतु नई ई-कॉमर्स नीति का मसौदा विभिन्न पक्षों को विचार-मंथन के लिए जारी किया जा चुका है।
इस मसौदे में ऐसी कुछ बातें खासतौर पर कही गई हैं जिनका संबंध ई-कॉमर्स की वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराने से है ताकि छूट और विशेष बिक्री के जरिए बाजार को न बिगाड़ा जा सके। मसौदे में कहा गया है कि यह सरकार का दायित्व है कि ई-कॉमर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा बाजार भी विफलता और विसंगति से बचा रहे। इस मसौदे के तहत ई-कॉमर्स कंपनियों के द्वारा ग्राहकों के डेटा की सुरक्षा और उसके व्यावसायिक इस्तेमाल को लेकर तमाम पाबंदी लगाए जाने का प्रस्ताव है। इस मसौदे में ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार, बुनियादी ढांचा, नियामकीय और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे बड़े मुद्दे शामिल हैं। इस मसौदे में यह मुद्दा भी है कि कैसे ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के माध्यम से निर्यात बढ़ाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि अब तक नई ई-कॉमर्स नीति के इस मसौदे पर ई कॉमर्स कंपनियों के साथ-साथ विभिन्न संबंधित पक्षों ने कई सुझाव प्रस्तुत किए हैं। देश के उद्योग-कारोबार संगठनों ने यह साफ कर दिया है कि वे मसौदा नीति में पूरी तरह से सुधार चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इसमें छोटे खुदरा कारोबारियों और ट्रेडर्स के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए। चूंकि ई-कॉमर्स में विदेशी निवेश के मानक बदले गए हैं जिससे ई-कॉमर्स कंपनियों में ढांचागत बदलाव की आवश्यकता है। ई-कॉमर्स नीति में सिर्फ विदेशी कारोबारियों को ही नहीं, बल्कि घरेलू कारोबारियों की भी अहम भूमिका होना चाहिए।
यह जरूरी है कि कोविड-19 के मद्देनजर देश की नई ई-कॉमर्स नीति बनाने के साथ-साथ डेटा संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाए। कोविड-19 के बाद नई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के तहत भविष्य में डेटा की वही अहमियत होगी जो आज कच्चे तेल की है। अतएव ई-कॉमर्स नीति के नए मसौदे में डेटा के स्थानीय स्तर एवं भंडारण के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया जाना होगा और इसे एक अहम आर्थिक संसाधन के रूप में मान्यता देनी होगी। सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह डेटा पर नियंत्रण चाहती है और खास डेटा को भारत में ही रखना चाहती है। डेटा स्वामित्व भविष्य में देश की वृद्धि के लिहाज से अहम भी है। निसंदेह पिछले कुछ समय में भारत के उपभोक्ताओं से संबंधित डेटा का विदेशी कंपनियों ने जमकर उपयोग किया है। निश्चित रूप से डेटा संरक्षण से संबंधित ऐसा ही नियम ई-कॉमर्स कंपनियों पर भी लागू किया जाना होगा।
निश्चित रूप से अब कोविड-19 के मद्देनजर नई ई-कॉमर्स नीति के तहत सरकार के द्वारा भारत के बढ़ते हुए ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाना होगा। सरकार के द्वारा नई ई-कॉमर्स नीति के तहत देश में ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना होगा जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है। यह पाया गया है कि कई बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां टैक्स की चोरी करते हुए देश में अपने उत्पाद बड़े पैमाने पर भेज रही हैं। ये कंपनियां इन उत्पादों पर गिफ्ट या सैंपल का लेबल लगाकर भारत में भेज देती हैं। नई ई-कॉमर्स नीति में अनुमति मूल्य, भारी छूट और घाटे के वित्तपोषण पर लगाम लगाने की व्यवस्था करना होगी, जिससे सबको काम करने का समान अवसर मिल सके।
हम उम्मीद करें कि सरकार कोविड-19 की वजह से भारत में छलांगे लगाकर बढ़ने वाले ई-कॉमर्स की चमकीली संभावनाओं के बीच ई-कॉमर्स कंपनियों तथा देश के उद्योग-कारोबार से संबंधित विभिन्न पक्षों के हितों के बीच उपयुक्त तालमेल के साथ अर्थव्यवस्था को लाभांवित करने वाली नई ई-कॉमर्स नीति को अंतिम रूप देने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। हम उम्मीद करें कि देश में ई-कॉमर्स का उपयुक्त नया ताना-बाना कोविड-19 के बाद देश के करोड़ों उपभोक्ताओं की संतुष्टी और विकास दर को बढ़ाने में भी प्रभावी भूमिका निभाएगा।