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कोरोना के साथ टिड्डियों का आतंक

कोरोना वायरस ने पहले से बेहाल किया हुआ था। अब टिड्डियों ने सबसे ज्यादा मुसीबतें किसानों के सामने खड़ी की हैं। कई राज्यों में खलबली मचाई मचाते हुए ये खड़ी फसलों को चौपट कर रही हैं।

May 28, 2020 / 02:50 pm

Prashant Jha

कोरोना के साथ टिड्डियों का आतंक

कोरोना के साथ टिड्डियों का आतंक

रमेश ठाकुर, वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार

शायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि ऐसा वक्त भी देखने को मिलेगा जब कीड़े-मकोड़े भी परेशानी का सबब बन जाएंगे और उनको लेकर सरकार को हाई अलर्ट तक जारी करना पड़ेगा। कोरोना वायरस ने पहले से बेहाल किया हुआ था , अब रही सही कसर टिड्डियों ने पूरी कर दी। टिड्डियों ने सबसे ज्यादा मुसीबतें किसानों के सामने खड़ी की हैं। कई राज्यों में खलबली मचाई हुई है। ये खड़ी फसलों को चौपट कर रही हैं। इस वक्त खेतों में आम, कद्दू, खीरा, खरबूजा, तरबूज, लौकी, करेला व पान की फसलें लगी हैं टिड्डी दल जमकर नुकसान पहुंचा रही हैं।

टिड्डियों ने सबसे पहले दस्तक सर्दियों में यानी जनवरी-फरवरी में दी थी। इनका आगमन पांच-छह माह पहले सरहद पार पाकिस्तान से हुआ था। वहां से हिंदुस्तान पहुंची हजारों लाखों की तादाद में टिड्डियों ने बड़े पैमाने पर फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया है। टिड्डियां ने सबसे पहले बाॅर्डर से सटे राज्यों राजस्थान, पंजाब और गुजरात में उत्पात मचाना शुरू किया। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों के इलाके में हजारों एकड़ खड़ी फसलों को टिड्डियों ने चैपट करने के बाद हमारे यहां का रूख किया था।

टिड्डियां का हमला बीते साल दिसंबर से आरंभ हुआ है। टिड्डियां ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह होने का आंकड़ा राज्य सरकार ने पेश किया है। टिड्डियों के आतंक को देखते हुए गुजरात सरकार ने प्रभावित किसानों को 31 करोड़ रुपये मुआवजे का ऐलान किया है। वैज्ञानिकों की माने तो इस किस्म की टिड्डी पांच महीने तक जीती है। इनके अंडों से दो सप्ताह में बच्चे निकल सकते हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के उपक्रम फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर इलाके में आठ करोड़ टिड्डी हो सकती हैं। एक साथ चलने वाला टिड्डियों का एक झुंड एक वर्ग किलोमीटर से लेकर कई हजार वर्ग किलोमीटर तक फैल सकता है। पाकिस्तान से दिसंबर में हिंदुस्तान में जितनी संख्या में टिड्डियां आईं थीं, अब उनसे सौ गुना की बढ़ोतरी हो चुकी है। इनके प्रजनन का सिलसिला लगातार जारी है। केन्या, इथियोपिया और सोमालिया टिड्डी के आतंक से सबसे ज्यादा आहत हुए। कई सालों तक वहां इनका आतंक रहा। इस समय जो टिड्डियां फसलों को बर्बाद कर रही हैं वह न पाकिस्तान की जन्मी हैं और न भारत की। अफ्रीका के इथियोपिया, युगांडा, केन्या, दक्षिणी सूडान से निकलकर ओमान होते हुए पाकिस्तान और उसके बाद भारत पहुंची हैं।

नई किस्म ये टिड्डियां कुछ ही घंटों में फसलों को चट कर जाती हैं। ये टिड्डियां छह से आठ सेंटीमीटर आकार की कीड़ानुमा हैं इनकी खासियत यही है ये हमेशा लाखों-हजारों की समूह में उड़ती हैं। टिड्डियों का दल एक साथ खड़ी फसलों पर हमला करता है। पाकिस्तान सरहद से भारत के तीन राज्य राजस्थान, पंजाब और गुजरात की सीमाएं मिलती हैं। इन तीन राज्यों में सर्दियों के वक्त टिड्डियों जमकर कहर बरपाया था। अब ये दूसरे राज्यों में फैल गईं हैं। खेतों में इस वक्त ज्यादातर हरी सब्जियों और फलों की फसलें उगी हुई हैं जिनकी मुलायम पत्तियों को टिड्डियां चबा-चबा कर बर्बाद कर रही हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान इनके आतंक से खासे परेशान हैं। किसान अपने फसलों को बचाने के लिए दिन-रात चैबीस घंटे खेतों की रखवाली कर रहे हैं। टिड्डियों को भगाने के लिए कई देशी और आधुनिक तरीके भी अपना रहे हैं। महिलाएं ढोल और बर्तन लिए खेतों में खड़ी हैं। आवाज से टिड्डियां कुछ समय के लिए तितर-बितर हो जाती हैं, लेकिन जैसे ही आवाज धीमी पड़ती हैं टिड्डियों का झुंड फिर से हमलावर होता है। औरैया, इटावा, एटा जिलों में लोग टिड्डियों को भगाने के लिए पानी की बौछारें कर रहे हैं। कीटनाशक स्प्रे भी कर रहे हैं। लेकिन टिड्डियां फिर भी नहीं भागती।

परेशान होकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार से इस टिड्डियों से निपटने को लेकर मदद मांगी है। राजस्थान में अभी तक हजारों एकड़ फसलें टिड्डियों के आतंक से चैपट हो चुकी हैं। आकाश में मंडराती टिड्डियां एक साथ फसलों पर हमला करती हैं। उन्हें भगाने के कारण कुछ लोग घायल भी हुए हैं। टिड्डियों ने किसानों पर भी हमला किया है। मधुमक्खी की भांति टिड्डियां इंसानों पर हमलावर हो रही हैं। टिड्डियां इंसानों के सीधे आंखों पर चोट मारती हैं। राजस्थान को पार करके टिड्डियां पंजाब में भी दस्तक दे चुकी हैं। पंजाब में भी टिड्डियों को लेकर सतर्कता बरतनी शुरू हो गई है। खेतों में ढोल-नगाड़ों का इंतजाम किया हुआ है। टिड्डियों के झुंड़ को देखते ही किसान तेजी से ढोल बजाने लगते हैं। ढोल की आवाज सुनकर टिड्डियां भाग जाती हैं।

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