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बिना स्कूल गए कॉलेज में कदम रखेगी अनुराधा, पिता की जिद थी स्कूल न भेजने की

Published: Jul 20, 2017 01:16:00 pm

मुंबई के अजीत मांडलिक की बेटी अनुराधा मांडलिक एक दिन भी स्कूल नहीं गई। इसके बावजूद उसने दसवीं काफी अच्छे अंकों से पास की और अब वह कॉलेज में कदम रखने जा रही है। यह सबकुछ उसके पिता की एक जिद से संभव हुआ कि स्कूल भेजे बगैर भी बच्चे को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है।

Ajit Mandlik

father and daughter

मुंबई के महाराष्ट्रियन चाल कॉम्प्लेक्स की रहने वाली अनुराधा मांडलिक 15 वर्ष के अपने जीवन में एक दिन भी स्कूल नहीं गई है। इसके बावजूद उन्होंने 71.2 प्रतिशत अंकों के साथ दसवीं की परीक्षा पास करने में सफलता हासिल की है। वह अपनी इस सफलता का श्रेय अपने पिता अजीत मांडलिक को देती है।
अनुराधा अब एसएनडीटी कॉलेज से म्यूजिक में उच्च शिक्षा हासिल करेंगी, ताकि वह क्लासिंकल सिंगर बनने का अपना सपना पूरा कर सकें। ऐसा करने वाली संभवत: वह देश की पहली लडक़ी है, जिसने बिना किसी औपचारिक विद्यालयी शिक्षा के यह कारनामा किया है। अब वह उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए कॉलेज में कदम रखने जा रही है।

पिता को अपने निर्णय पर गर्व

मांडलिक ने बेटी को स्कूल न भेजने का निर्णय उसके जन्म के कुछ महीने बाद ही ले लिया था। पत्नी माधवी को इस बात के लिए राजी करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। अजीत का कहना है कि आखिर स्कूल में पढऩे की अनिवार्यता क्यों? अगर कोई बच्चा योग्यता रखता है तो बिना स्कूल गए भी वह बेहतर कर सकता है। इस बात को वह साबित करना चाहते थे। और अपने इस निर्णय पर उन्होंने अमल भी किया। उन्होंने तय कर लिया कि अपनी बेटी को स्कूल नहीं भेजेंगे। उसे घर पर ही पढ़ाएंगे। लेकिन उनकी पत्नी माधवी इस बात के लिए तैयार नहीं थीं। उन्होंने इसका विरोध किया। लेकिन किसी तरह उन्होंने अपनी पत्नी को इस बात के लिए आखिरकार राजी कर लिया। आज उन्हें 15 वर्ष पूर्व लिए अपने निर्णय पर गर्व है। उनकी बेटी का भी कहना है कि उसकी सफलता का श्रेय पापा को जाता है।
अजीत मांडलिक कहते हैं कि सदियों से शिक्षा जिस रूप में दी जा रही है। आज भी उसका स्वरूप वही है, जबकि आज जरूरत है कि इसमें बदलाव लाया जाए। अभिनव प्रयोग किए जाएं। शिक्षा के क्षेत्र में देश-समाज में इस तरह के और प्रयोगों की बेहद जरूरत है।

बेटी के लिए छोड़ा बिजनेस

मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले मांडलिक की पत्नी माधवी मांडलिक रेलवे में नौकरी करती है। इसलिए बेटी का अच्छे से लालन-पालन करने के लिए अजीत ने अपने छोटे से कारोबार का त्याग कर दिया। इसके अलावा उनका एक मकसद और था। वह यह था कि वह घर पर रहकर बेटी को खुद पढ़ा सके और कारोबार के साथ ऐसा करना संभव नहीं था। इसलिए उन्होंने घर पर ही रहने का निर्णय लिया। जब उनकी बेटी की उम्र पढ़ाई की हुई तो उन्होंने उसे खुद पढ़ाना शुरू किया। सभी विषयों के बेसिक्स के बारे में उसे गहन विस्तार से समझाया। अनुराधा के माता-पिता का कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए घर में ही कुछ मानदंड निर्धारित कर रखे थे। लेकिन उसे पढऩे के लिए कभी मजबूर नहीं किया। वह स्वतंत्र थी कि जब मन करे तभी पढ़े। हां घर में हम सबने यह जरूर तय कर लिया था कि सुबह में अंग्रेजी में बात करेंगे और शाम के वक्त मराठी बोलेंगे।

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